Varanasi News: शिव के त्रिशूल पर विराजित है बनारस

 
Varanasi News: शिव के त्रिशूल पर विराजित है बनारस

वाराणसी। जीवन के सभी रसों को अपने में समेटे बनारस हर-हर महादेव के मंत्रोच्चार से जब गूंज उठता है, तब हर भक्त का रोम-रोम खिल उठता है। 


मंदिरों में बजती घंटियां और मंगल आरती का नजारा जिसने देख लिया समझो उसने साक्षात भगवान शिव के दर्शन पा लिए।

महादेव की इस नगरी को कोई बनारस, कोई वाराणसी तो कोई काशी कहकर पुकारता है, नाम कोई भी हो आस्था एक ही है... हर-हर महादेव। 

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वाराणसी विश्व की सबसे प्राचीन और जीवंत शहर है। मान्यता है भगवान भोले नाथ ने स्वयं इसको बसाया है। यह शहर भगवान भोलेनाथ का प्रिय स्थान है। यहां पे उन्होंने मां अन्नपूर्णा को भी बुलाया और स्थान दिया हुआ है।

एक मान्याता और है, इस शहर को भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल पर बसाया हुआ है और अपने भक्तों का सब संकट हर लेते हैं।

महादेव के त्रिशूल पर टिके इस प्राचीन शहर में ना जाने कितने साधक आए जो अपना डेरा-डंडा जमाकर बस यहीं के होकर रह गए। कहते हैं बनारस की उत्पत्ति का इतिहास 5 हजार साल पुराना है और स्वयं भोलेनाथ ने इस नगरी की स्थापना की है। 

ऋग्वेद, स्कंदपुराण और महाकाव्यों में बनारस की महिमा का बखान मिलता है। इस धरती पर बनारस ही ऐसा शहर है जो अपने प्रारंभ से लेकर वर्तमान तक बसा हुआ है और दिन पर दिन इसकी विकास यात्रा लंबी होती जा रही है।

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बनारस के लोगों के लिए शिव अटल सत्य हैं, जिसमें उनकी आस टिकती है और सांस भी तो वहीं उनकी जटाओं से निकली गंगा के बिना उनका जीवन शून्य के समान है।  गंगा में डुबकी और हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ उनके दिन का आरंभ होता है।


कहते हैं बनारस गुरु घंटालों का शहर है, और यहाँ  की संकरी गलियों का ऐसा मकड़जाल है जिसका एक छोर कहीं तो दूसरा कहीं निकलता है। 


खान और पान का जैसा गठजोड़ आपको बनारस में मिलेगा वैसा आपको संसार में ढूंढे नहीं मिलेगा। 

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संगीत, साहित्य, योग साधना का ये शहर केंद्र है, तो सच्चे गुरू वैराग की खोज में ना जाने यहाँ कितने भटकते मिल जाएंगे।

जीवन और मरण के बंधन से मुक्ति के लिए तो बनारस लोगों की सूंची में पहले स्थान पर है।

बनारस ही दुनिया का एकमात्र ऐसी जगह है जहां पर लोग अपने प्राण त्यागने के लिए आते हैं, इसीलिए कहने वाले कह गए कि जिस शहर के जीवन में इतने रंग और लोगों के स्वभाव में इतने रस घुले हों उसका नाम बना 'रस'  से बेहतर और क्या हो सकता था। 

बनारस की सुबह जितनी अलबेली है तो शाम उतनी ही सुरमई। यहां आने वाला हर यात्री इन दोनों पहर का आनंद लेने के लिए एक दिन जरूर रूकता है।


 यहां होने वाली गंगा आरती को देखना सौभाग्य का सूचक माना गया है। आदिकेशव से लेकर अस्सी घाट तक अर्धचंद्राकर बसे गंगा घाटों का अपना इतिहास है और यहां रहने वालों के अपने किस्से कहानियां, सच मानों तो इन घाटों में एक पूरी संस्कृति रची बसी मिलती है।

बनारस को अगर हिदुओं का काबा कहा जाता है तो ये बौद्ध,जैन धर्म के अलावा कबीरपंथी,रैदासी और अघोरपंथियों जैसे मतों और सम्प्रदायों के लिए पूजनीय है।

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गौतम बुद्ध ने बनारस से 15 किलोमीटर दूर सारनाथ में ही अपना प्रथम उपदेश दिया और यहीं से बौद्ध धर्म की जड़ें पूरे विश्व में फैली वहीं जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म भी बनारस में ही हुआ था। बनारस में ही कबीरदास और उनके समकालीन रैदास का भी जन्म हुआ था, इसके अलावा बनारस में अघोर संप्रदाय भी है, जिनकी साधना पद्धति आज भी रहस्यमयी है और जिनके साधकों को दुनिया अघोरी के नाम से जानती है।


दुनिया के लिए अघोरपंथ और अघोरी ऐसे अनसुने किस्से की तरह हैं जिनका रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया। 


बनारस में अगर बड़े मॉल खुल रहे हैं तो गलियों में चलने वाली दुकानों की रौनक कहीं से फ़ीकी नहीं पड़ी है। मॉर्डन ड्रेस ने अगर अपनी जगह बनाई है तो बनारसी साड़ियां आज भी महिलाओं के वार्डरोब की रौनक बढ़ा रही हैं। ये बनारसी साड़ियों का ही कमाल है कि इससे करीब 6 लाख लोगों की आजीविका चल रही है और करीब 6 अरब रुपये का इसका सालाना कारोबार है।

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बनारस देश के प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र है और वो बड़ी लगन से बनारस की धरोहरों को संरक्षित करते हुए उसके विकास को भी गति देने में जुटे हुए हैं।

बाबा विश्वनाथ के धाम के नवनिर्माण का कार्य उनके निर्देशन में पूर्ण हुआ जो काशी कॉरिडोर के रूप में अपनी छटा बिखेर रहा है।

जो लोग बनारस को करीब से जानते समझते है वो कहते हैं कि भले दुनिया बदल जाये लेकिन बनारस जैसे सदियों से रहा वैसे ही रहेगा भी और जियेगा भी, निसंद्देह ये सच बनारस को सार्थक भी करता है और संपूर्ण भी।

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