देश में बीते कई दिनों से चर्चा का विषय बने हुए कोलकाता डॉक्टर रेप और मर्डर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं-लड़कियों के खिलाफ इस तरह के अपराधों को रोकना चाहिए, इसके लिए हम किसी नए मामले का इंतजार नहीं कर सकते. ऐसा माना जाता है कि 2012 में निर्भया रेप केस के बाद से महिलाओं के साथ रेप के जघन्य अपराध चर्चा के केंद्र में ज्यादा आए और इनपर एक्शन लिया जाने लगा. लेकिन, इससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके हैं जिन्होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इन्हीं में से एक मामला था अजमेर रेप एंड ब्लैक मेलिंग केस का, जिसने अजमेर शहर के गौरवशाली इतिहास पर एक काला धब्बा लगा दिया.
कहते हैं कि इस मामले के सामने आने के बाद से अजमेर शहर की लड़कियों से शादी करने से पहले ये पूछा जाता था कि कहीं उनको भी तो इस केस में ब्लैकमेल नहीं किया गया था? उस वक्त की खबरों की मानें तो हाल ये हो गया था कि लड़कों के माता-पिता शादी के लिए अजमेर की लड़कियों के परिवारों से परहेज करने लगे थे.
कोर्ट ने आज इस केस में एक अहम फैसला सुनाया है. इस केस में बचे हुए छह आरोपियों को 32 साल बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई है.ये केस इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक इंसान की कोशिश, हिम्मत और सच्ची पत्रकारिता का असर हो सकता है.
”बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल का शिकार”
साल 1992 के मई महीने का एक साधारण दिन. राजस्थान के अजमेर के एक स्थानीय अखबार दैनिक नवज्योति अखबार में फ्रंट पेज पर एक खबर छपती है. खबर की हेडलाइन थी ”बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल का शिकार”… इस खबर को देखने के बाद बवाल मच जाता है और फिर परत दर परत एक खौफनाक कहानी खुलती है. खुलासा हुआ कि एक गिरोह अजमेर के एक गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्म हाउस पर बुलाकर रेप करता रहा और उसके बाद उन्हें उनकी अश्लील पिक्चरें दिखाकर ब्लैकमेल किया गया ताकी वह और लड़कियों को भी लेकर आएं. इस पूरे स्कैंडल का मास्टर माइंड तत्कालीन अजमेर यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती था. उसके साथ कई अन्य आरोपी भी थे.
ऐसे शुरू हुआ सिलसिला
इन लोगों ने अपने घिनौने इरादों को अंजाम देने के लिए अजमेर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की लड़कियों को निशाना बनाया. इनमें से एक आरोपी फारूक चिश्ती ने पहले वहां की एक नाबालिग लड़की को अपने प्यार के जाल में फंसाया. फिर उसे किसी बहाने अपने फार्म हाउस पर ले गया और वहां उसके साथ रेप किया. लड़की से रेप करने के बाद आरोपियों ने रील कैमरे से उसकी न्यूड तस्वीरें खींच लीं. इसके बाद पीड़िता पर आरोपियों ने इस बात का दबाव बनाया कि वह अपनी सहेलियों को भी वहां पर लेकर आए और फिर शुरू हुआ हैवानियत का सिलसिला.
एक के बाद एक लड़कियां बनतीं गईं शिकार
अपने अश्लील तस्वीरों के लीक होने के डर से मजबूर लड़की को मजबूरन अपनी सहेली को भी इस दलदल में धकेलना पड़ा. एक से दो, दो से तीन और ऐसे कर-कर के ना जाने कितनी मासूम लड़कियों से इन दरिंदों ने रेप किया और उनकी नग्न तस्वीरें उतारीं. इसके बाद सब को ब्लैकमेल कर अलग-अलग जगहों पर बुलाने लगे और उनको अपनी हवस का शिकार बनाया. जानकारी के मुताबिक, इस मामले में पीड़ित लड़कियों की संख्या 100 से ज्यादा थी. घर वालों की नजरों के सामने से ये लकड़ियां फार्म हाउसों पर जाती थीं. उनके लेने के लिए बाकायदा गाड़ियां आती थीं और वापसी में छोड़ने भी आती थीं. दैनिक नवज्योति के मुताबिक, ऐसा नहीं था कि पुलिस को इस मामले की भनक नहीं पड़ी, लेकिन क्योंकि ये मामला एक साम्प्रदायिक मोड़ ले सकता था और उस वक्त हालात काफी खराब थे इस वजह से इस मामले में पुलिस भी कार्रवाई करने से डरती थी.
खुदकुशी करने लगीं पीड़िताएं
धीरे-धीरे इस स्कैंडल के बारे में पूरे शहर को पता चल गया. लड़कियों की अश्लील तस्वीरें वायरल होने लगीं. अखबार के मुताबिक, तस्वीरें वायरल होने के बाद इन लड़कियों को कई और लोगों ने भी ब्लैकमेल किया. इतने लोगों से ब्लैकमेल होने और अकेले इतना सब सहने के बाद एक-एक कर के लड़कियों ने आत्महत्या करना शुरू कर दिया. इस तरह 6-7 लड़कियों की खुदकुशी के बाद मामला संगीन हो गया. ऐसे ही हवा में तैरते हुए एक लड़की की अश्लील तस्वीर दैनिक नवज्योति अखबार के
एक पत्रकार संतोष गुप्ता के पास पहुंचीं. तस्वीर देखकर संतोष के पैरों तले जमीन खिसक गई. उन्होंने फैसला किया कि वह इस मामले की तह तक जाएंगे.
ऐसे हुआ खुलासा
उन्होंने छात्राओं से बात करने की कोशिश की लेकिन छात्राएं सामने आने को तैयार नहीं थीं. हालांकि धीरे-धीरे भरोसा दिलाने और समझाने के बाद छात्राओं ने भी हिम्मत दिखाई और सामने आकर मामला दर्ज करवाया. संतोष ने अपने अखबार का इस्तेमाल किया और पहले पन्ने पर इस स्कैंडल की खबर छांप दी. उनके ऐसा करते ही पूरे अजमेर में बवाल मच गया. संतोष ने इस केस पर सीरीज शुरू कर दी और उनकी खबरों ने पुलिस और प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. खबर के साथ संतोष ने लड़कियों की वह अश्लील तस्वीरें भी छाप दीं जिसमें केवल आरोपियों का चेहरा दिख रहा था ताकि छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सके. फिर, पूरे राजस्थान में कोहराम मच गया और लोग सड़कों पर उतर आए.
चौतरफा दबाव के बाद शुरू हुई जांच
मामले के इस तरह सामने आने और उसको दबाए जाने के बाद आखिरकार चौतरफा दबाव के बीच 30 मई 1992 को भैरोंसिंह शेखावत ने केस सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप दिया. इसके बाद इस मामले में अजमेर पुलिस ने भी रिपोर्ट दर्ज कर ली और जांच शुरू की गई. इस जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना और हरीश तोलानी नाम के अपराधियों के नाम सामने आए.
32 साल बाद आया फैसला
पीड़ित लड़कियों से पूछताछ और आरोपियों की पहचान के बाद पुलिस ने आठ आरिपियों को गिरफ्तार किया. इस केस का पहला निर्णय छह साल बाद आया, जिसमें अजमेर की अदालत ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई. कुछ समय बाद में कोर्ट ने चार आरोपियों की सजा कम कर दी गई. उन्हें उम्रकैद की बजाए दस साल जेल की सजा दी गई. इसके बाद राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. लगभग 32 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार इस जघन्य कांड में दोषियों को सजा सुनाई गई जिसका इंतजार पीड़ितों के परिवारों को कब से था. बाकी बचे 7 में से 6 आरोपियों को दोषी मानते हुए अजमेर की विशेष न्यायालय ने उम्रकैद और पांच लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई.