श्रीलंका में 21 सितंबर को राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं. खास बात ये है कि इस बार रिकॉर्ड 39 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. इससे पहले श्रीलंका में 2019 के चुनाव में सबसे ज्यादा 35 उम्मीदवारों ने दावेदारी ठोकी थी.

राष्ट्रपति चुनाव के इन प्रत्याशियों में वैसे तो कई बड़े नाम हैं, लेकिन सबसे खास हैं 2 बौद्ध संत. इनमें से एक सीलारत्ना थीरो जनासेठ पेरामुना पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनाए गए हैं तो वहीं दूसरे बौद्ध संत दयारत्ना थीरो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. अगले महीने की 21 तारीख को श्रीलंका के करीब 1 करोड़ 70 लाख वोटर इन उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे.

कौन हैं बौद्ध संत सीलारत्ना थीरो?

56 वर्षीय सीलारत्ना थीरो का मानना है कि बौद्ध संत सरकार चलाने के लिए योग्य हैं क्योंकि वो कई पीढ़ियों से सरकार में शामिल नेताओं को सलाह देते आए हैं. वह श्रीलंका में 2019 का राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने 2021 में श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के उपाध्यक्ष के लिए भी नामांकन भरा था जो कि खारिज कर दिया गया था. तब उन्होंने कहा था कि उन्हें इस बात का पहले से ही अंदाजा था कि उनका नामांकन रद्द कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा था कि श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ने के पीछे उनका मकसद देश की क्रिकेट संस्था से भ्रष्टाचार को मिटाना है.

कई बार जेल जा चुके हैं दयारत्ना थीरो

दयारत्ना थीरो को पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे का करीबी सहयोगी माना जाता है, उन्हें कई बार भीड़ को उकसाने और हिंसक प्रदर्शन करने के लिए जेल भी जाना पड़ा है. अक्टूबर 2017 में पुलिस ने उन्हें रोहिंग्या शरणार्थियों को धमकाने और हमला करने के लिए भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया था. यही नहीं दयारत्ना थीरो पर जनवरी 2016 में मजिस्ट्रेट कोर्ट के पास हिंसक प्रदर्शन करने का भी आरोप लग चुका है. इस हिंसक प्रदर्शन के करीब 20 दिन बाद उन्होंने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था.

राजपक्षे परिवार ने नमल को उतारा

इसके अलावा श्रीलंका में लंबे समय तक शासन करने वाले राजपक्षे परिवार ने इस बार नमल राजपक्षे को चुनावी मैदान में उतारा है. नमल पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बेटे हैं और गोटाबाया राजपक्षे के भतीजे हैं. वहीं वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है. 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद गोटाबाया राजपक्षे को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी, जिसके बाद से रानिल विक्रमसिंघे ही श्रीलंका में सरकार चला रहे हैं.