देश की सर्वोच्च अदालत ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने साल 2004 के ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को पलटते हुए एसएसी-एसटी के आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार राज्यों को दे दिया है. अब देश में राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण का वर्गीकरण करने का निर्णय आसानी से ले सकेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने भले ही एससी-एसटी आरक्षण के संबंध में फैसला दिया है, लेकिन इससे उत्तर प्रदेश में पिछड़ा बनाम अतिपिछड़े की राजनीतिक जमीन तैयार कर दी है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सात जजों की बेंच ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वर्गीकरण करने से संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद-15 और 16 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो राज्यों को रिजर्वेशन के लिए जाति में वर्गीकरण से रोकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को ऐसा करने के लिए किसी भी जाति के सब-क्लासिफिकेशन के लिए डेटा से बताना होगा कि उस वर्ग का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है. राज्य इस मामले में मनमर्जी नहीं कर सकता या फिर राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा नहीं कर सकता.
OBC आरक्षण के बंटवारे का खुला रास्ता
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के संबंध में कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार दिया हो, लेकिन इससे उत्तर प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के बंटवारे का भी रास्ता खोल दिया है. उत्तर प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को कोटा के भीतर कोटा बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. बीजेपी के दो सहयोगी- सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद लंबे समय से ओबीसी आरक्षण को बांटने की मांग करते रहे हैं. इसे लेकर वो अपनी बात योगी सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार तक पहुंचा चुके हैं.
राजभर ने फैसले का किया स्वागत
सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को कोटा में कोटा देने का अधिकार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के लिए भी इस तरह की व्यवस्था हो ताकि अतिपिछड़ी जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके. राजभर ने कहा कि वे अनुप्रिया पटेल, जयंत चौधरी और संजय निषाद के साथ मिल कर ओबीसी आरक्षण मुद्दे पर बीजेपी के शीर्ष नेताओं के संपर्क में हैं. उन्होंने मांग की कि रोहिणी आयोग की सिफारिश के आधार पर कोटा के भीतर कोटा वाला ओबीसी आरक्षण लागू किया जाए.
मंडल कमीशन की सिफारिश लागू होने के बाद ओबीसी समुदाय को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण को बांटने के लिए लंबे समय से मांग उठती रही है. मौजूदा केंद्र सरकार ने भी ओबीसी कैटिगरी के अंदर सब-कैटिगरी तलाशने के लिए रोहिणी कमीशन गठित की थी. कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है, लेकिन अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है. रोहिणी कमीशन की सिफारिश को लागू करने की मांग लंबे समय से ओबीसी समुदाय में आने वाली अतिपिछड़ी जाति को लोग करते रहे हैं.
आरक्षण पर गठित कमीशन के सुझाव
रोहिणी कमीशन का गठन राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी के आरक्षण में सब-कैटिगरी बनाने के लिए किया गया था, जबकि उत्तर प्रदेश में दो अयोग- हुकुम सिंह आयोग और राघवेंद्र सिंह आयोग का गठन किया गया था. 22 साल पहले एससी-एसटी के 21 फीसदी और ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण कोटे को विभाजित करने के लिए हुकुम सिंह आयोग का गठन राजनाथ सिंह सरकार में किया गया था. 28 जून 2001 को गठित समिति ने 2002 में सरकार को सौंपी थी, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
हुकुम सिंह आयोग ने एससी-एसटी को मिलने वाले 21 फीसदी आरक्षण को 2 हिस्सों में बांटने का सुझाव दिया था. इसलिए समिति ने यूपी के 10 लाख सरकारी पदों का विश्लेषण कर कहा था कि कुछ जातियां अपनी आबादी का 10 फीसदी भी आरक्षण नहीं ले पाई हैं, जबकि कुछ जातियों ने अपनी आबादी से ज्यादा नौकरी पाई हैं. इसके चलते यूपी में 21 फीसदी दलित और 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को हिस्सों में बांट दिया जाए.
एससी आरक्षण के लिए उन्होंने जाटव-धुसिया और उनकी उपजातियों को एक कैटेगरी में रखा जाए बाकी अनुसूचित जातियों को अलग अलग से कोटा दिया जाए. इसके लिए उन्होंने 10 और 11 फीसदी में बांटने की सिफारिश हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली समाजिक न्याय समिति ने की थी. इसी तरह ओबीसी को पिछड़ा और अतिपछड़ा के बीच बांटने की सिफारिश की थी, लेकिन सियासी मजबूरी के चलते लागू नहीं किया जा सका.
राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में आयोग का गठन
बीजेपी 2017 में यूपी की सत्ता में वापसी की तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओबीसी के आरक्षण को सब-कैटेगरी के लिए राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था. 2018 में राघवेंद्र सिंह आयोग का गठन किया गया था, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 2019 में सौंप दी थी. राघवेंद्र सिंह की सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को तीन भागों में बांटने की सिफारिश की थी. यह पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा के रूप में था. इसके लिए बकायदा आरक्षण का प्रतिशत भी निर्धारित किया गया था.
पिछड़े वर्ग में सबसे कम जातियों को रखने की सिफारिश की गई थी, जिसमें यादव, कुर्मी जैसी संपन्न जातियां हैं. अति पिछड़े में वे जातियां हैं, जो कृषक या दस्तकार हैं और सर्वाधिक पिछड़े में उन जातियों को रखा गया है, जो पूरी तरह से भूमिहीन, गैरदस्तकार, अकुशल श्रमिक हैं. ओबीसी के लिए आरक्षित कुल 27 प्रतिशत कोटे में संपन्न पिछड़ी जातियों में यादव, अहीर, जाट, कुर्मी, सोनार और चौरसिया सरीखी जातियां शामिल हैं. इन्हें 7 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई है. अति पिछड़ा वर्ग में गिरी, गुर्जर, गोसाईं, लोध, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 जातियों को 11 प्रतिशत और मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश बेहद अहम
रोहिणी कमीशन और यूपी राघवेंद्र सिंह आयोग के मामले में सुप्रीम कोर्ट का एससी-एसटी में दिए गए निर्देश बेहद अहम है, क्योंकि कोर्ट ने अब कहा है कि राज्यों के पास इस बात की शक्ति है कि वह अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा देखकर सब-क्लासिफिकेशन को रिजर्वेशन दे सकता है. यह फैसला आने वाले दिनों में नजीर बनेगा. राज्य की सरकारें अब एससी-एसटी कैटेगरी को सब-कैटेगरी बनाने के मामले में सरकार बहुत फूंक-फूंक कर कदम उठाएगी, लेकिन इससे यूपी में ओम प्रकाश राजभर ने अपने आंदोलन को धार देने की कवायद शुरू कर दी है.
गरमाएगी यूपी की सियासत
सुप्रीम कोर्ट के कोटे में कोटा फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीति गरमानी तय है. यूपी में एससी-एसटी में 66 जातियां हैं, सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ 3 से 4 जातियों तक ही सीमित है. इसी तरह से यूपी में 27 फीसदी ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण को लेकर कहा जाता रहा है कि कुछ जातियों को ही आरक्षण का लाभ मिला है और कई अतिपिछड़ी जातियां वंचित रह जाती हैं. इसीलिए यूपी में पिछड़ी जातियों में कोटे को अलग करने की मांग उठनी तय है. सुभासपा और निषाद पार्टी ओबीसी को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण में से अतिपिछड़ी जातियों के लिए अलग से कोटा की मांग करती रही हैं.
जातिगत जनगणना की हो रही है मांग
मंडल कमीशन के लागू होने से 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए निर्धारित किया गया था. 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का फायदा मिलने का जिन पिछड़ी जातियों पर आरोप लगते हैं, उनमें कुर्मी, यादव, मौर्य, जाट, गुर्जर, लोध, माली जैसी जातियां हैं. वहीं, मल्लाह, निषाद, केवट, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैकवार, तुरैहा, बाथम, भर, राजभर, मांझी, धीवर, प्रजापति, कुम्हार, मछुवा, बंजारा, घोसी, नोनिया जैसी सैकड़ों जातियां हैं, जिनको ओबीसी के आरक्षण का लाभ यादव और कुर्मी जैसा नहीं मिल पाया है. हालांकि, यह मुद्दा ऐसे समय आया है जब देश में जातिगत जनगणना को लेकर बहस चल रही है. ऐसे में सरकार आरक्षण या जाति से जुड़े किसी मसले में बहुत सावधानी के साथ कदम बढ़ाएगी.