एग्जाम का समय हर छात्र के लिए चुनौतीपूर्ण होता है. इस दौरान बच्चे सिर्फ पढ़ाई और रिवीजन में इतने बिजी हो जाते हैं कि उनका पर्सनालिटी डेवलपमेंट अक्सर नजरअंदाज हो जाता है. माता-पिता और शिक्षक भी बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का दबाव बनाते हैं, जिससे उनके सॉफ्ट स्किल्स, आत्मविश्वास और कम्युनिकेशन एबिलिटी पर फोकस कम हो जाता है.

लेकिन सच्चाई ये है कि सिर्फ एकेडमिक नॉलेज ही नहीं, बल्कि एक मजबूत व्यक्तित्व भी बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी होता है. आज इस आर्टिकल में बताएंगे कि कैसे आप एग्जाम के बीच अपने बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और पर्सनालिटी डेवलपमेंट में उनकी मदद कर सकते हैं.

क्यों जरूरी है पर्सनालिटी डेवलपमेंट?

आत्मविश्वास बढ़ता है- बच्चे में शुरूआत से कॉन्फिडेंट होना बेहद जरूरी है. इससे एग्जाम का स्ट्रेस कम होता है और बच्चा खुद को साबित करने के लिए ज्यादा तैयार रहता है.

स्ट्रेस मैनेजमेंट बेहतर होता है- जब बच्चा अपनी नॉलेज को लेकर या खुद में कॉन्फिडेंस महसूस करता है तो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि बच्चे की मेंटल और इमोशनल हेल्थ भी कंट्रोल रहती है.

प्रॉब्लम सोल्विंग इबिलिटी- कई बार बच्चें अपने मां-बाप पर निर्भर रहते हैं. लेकिन कॉन्फिडेंस होने पर बच्चे हर परिस्थिति में खुद को कैसे संभालना है, ये सीखते हैं.

कम्युनिकेशन स्किल्स सुधरती हैं- बच्चों में कम्युनिकेशन स्किल होनी बहुत जरूरी है. पढ़ाई के अलावा बच्चे को अपने विचार व्यक्त करने और सोशली एक्टिव रहने में मदद मिलती है.

कैसे करें बच्चे के पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर फोकस?

सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, एक्स्ट्रा एक्टिविटीज पर भी दें ध्यान- पढ़ाई के साथ-साथ ड्राइंग, म्यूजिक, डांस, पब्लिक स्पीकिंग, डिबेट और स्पोर्ट्स जैसी गतिविधियों को भी बढ़ावा दें. ये एक्टिविटीज बच्चे को कॉन्फिडेंट और क्रिएटिव बनाती हैं.

बच्चे से बात करें और उसकी परेशानियों को समझें- एग्जाम के समय बच्चों को अकेला महसूस न होने दें. उनकी समस्याओं को ध्यान से सुनें और उन्हें पॉजिटिव सलाह दें.

स्ट्रेस और टाइम मैनेजमेंट सिखाएं- पढ़ाई का प्रेशर झेलने के लिए योगा, मेडिटेशन और ब्रेक लेने की आदत डालें. एक स्मार्ट टाइमटेबल बनाएं जिससे पढ़ाई और बाकी एक्टिविटीज में बैलेंस बना रहे.

गुड कम्युनिकेशन स्किल्स पर काम करें- बच्चों को नए लोगों से बात करने, अपनी राय रखने और आत्मविश्वास से बात करने की आदत डालें. क्लास डिस्कशन, ग्रुप स्टडी और स्पीकिंग प्रैक्टिस को बढ़ावा दें.

नेगेटिविटी और डर से बचाएं- बच्चों को असफलता से डरने की बजाय सीखने का महत्व समझाएं. रिजल्ट पर ज्यादा दबाव न डालें, बल्कि सीखने के प्रोसेस को एंजॉय करने दें