पाकिस्तान के मौलवियों ने सरकार को यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके मदरसे सरकार के प्रभाव से मुक्त रहेंगे और सरकारी विभाग का हिस्सा नहीं बनेंगे. मौलवियों का यह रुख 2019 में उठाए गए कदम से अलग है.

इससे पहले कई पारंपरिक मदरसा बोर्ड ने 2019 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को कुछ नियंत्रण सौंपने पर सहमति जताई थी. लेकिन शहबाज़ सरकार में अब मौलवियों ने बगावती रुख अख्तियार कर लिया है.

शहबाज सरकार को मौलवियों की दो-टूक

पाकिस्तान में इस्लाम के अलग-अलग फिरकों (संप्रदायों) के मौलवियों की ओर से संचालित मदरसों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इत्तेहाद तंजीमात-ए-मदारिस पाकिस्तान ने मंगलवार को एक बैठक के बाद यह घोषणा की है.

मौलवियों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने इस्लामाबाद में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (JUI-F) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान से उनके आवास पर मुलाकात की और मदरसों के पंजीकरण से संबंधित विधेयक को लेकर पैदा हुए विवाद में उनके रुख का समर्थन किया.

अधिसूचना जारी करने का दबाव

JUI-F के नेता शहबाज़ सरकार पर सोसाइटी पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2024 के लिए अधिसूचना जारी करने का दबाव बना रहे हैं. इसका उद्देश्य 2019 के समझौते को वापस लेना है और इसी के साथ जिला प्रशासन को मदरसों के पंजीकरण करने का अधिकार मिलेगा.

पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेजी अखबार DAWN की खबर के मुताबिक, मौलवियों के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल में बरेलवी, देवबंदी, शिया और अहले हदीस विचारधाराओं से संबंधित मदरसा बोर्ड शामिल थे, जबकि पांचवां बोर्ड जमात-ए-इस्लामी के नियंत्रण वाले मदरसों का था.

‘2019 में दबाव में लिया गया था फैसला’

बैठक के बाद जारी एक बयान में मुफ्ती तकी उस्मानी ने कहा कि 2019 में शिक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आने का बोर्ड का सामूहिक फैसला दबाव में लिया गया था, क्योंकि उस समय उन्होंने सोचा था कि किसी और की तुलना में शिक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में रहना बेहतर है.

उस्मानी ने कहा कि मदरसे स्वायत्त बने रहेंगे और वह पाकिस्तान में सरकार के अधीन नहीं होंगे, जैसा कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और मिस्र में होता है.