मिडिल ईस्ट में जो झटका ईरान और रूस को लगा है, जल्द ऐसा ही नुकसान इजराइल और अमेरिका को हो सकता है. सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का गिरना ईरान और रूस के लिए बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि दोनों ने इस क्षेत्र में अपना एक प्रमुख सहयोगी खो दिया है.

अमेरिका और इजराइल जिन पर सीरिया में असद सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने का आरोप लग रहा है, रिपोर्ट्स के अनुसार क्षेत्र में उनके अहम सहयोगी पर भी तख्तापलट का खतरा मंडरा रहा है. इजराइली पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन, KAN ने बताया कि इजराइली अधिकारी इस बात से चिंतित है कि जॉर्डन में भी तख्तापलट हो सकता है.

जॉर्डन में तख्तापलट की आहट!

रिपोर्ट में कहा गया है कि इजराइल के राजनीतिक और सुरक्षा अधिकारी अरब देश में विपक्षी समूहों के हाथों जॉर्डन सरकार के संभावित पतन को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं. रविवार को KAN ने रिपोर्ट दी कि इजराइली अधिकारी गंभीर रूप से चिंतित हैं कि जॉर्डन के विद्रोही समूह सीरिया में हुए घटनाक्रम से प्रेरित हो सकते हैं और जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय के शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश कर सकते हैं.

वरिष्ठ इजराइली सूत्रों के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जॉर्डन को लेकर इजराइल के टॉप अधिकारियों के बीच चर्चा हुई है. साथ ही आगे और बातचीत करने की भी योजना बनाई गई है. KAN के अनुसार कुछ अरब डिप्लोमैट्स ने भी जॉर्डन में विद्रोह के भड़कने को लेकर चिंता जताई है, लेकिन इस पूरे मामले से इजराइल को ज्यादा नुकसान हो सकता है क्योंकि इजराइल के फिलिस्तीनी कब्जे वाले क्षेत्र जॉर्डन के साथ सबसे लंबी सीमा साझा करते हैं.

इजराइली खुफिया अधिकारियों का जॉर्डन दौरा

इस बीच टाइम्स ऑफ इजरायल अखबार ने बताया कि घरेलू खुफिया एजेंसी शिन बेत के मुखिया रोनन बार और इंटेलीजेंस डायरेक्टोरेट के प्रमुख श्लोमी बिंदर ने शुक्रवार को जॉर्डन का दौरा किया, जहां उन्होंने सीरिया की स्थिति पर जॉर्डन के जनरल के साथ बातचीत की. माना जा रहा है कि इस मुलाकात के दौरान इजराइली अधिकारियों ने जॉर्डन में विद्रोह पनपने की रिपोर्ट्स पर भी चर्चा की है.

उधर, अमेरिकी समाचार वेबसाइट Axios ने भी ऐसी ही रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि शिन बेत के प्रमुख और वरिष्ठ इजरायली सेना अधिकारियों ने सीरिया की परिस्थितियों पर चर्चा करने के लिए जॉर्डन की खुफिया एजेंसी के प्रमुख और देश के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों से मुलाकात की थी.

जॉर्डन में क्यों मंडरा रहा तख्तापलट का खतरा?

जॉर्डन की आबादी करीब 1.15 करोड़ है, यह सुन्नी बहुल देश है लेकिन इसकी आबादी में शरणार्थियों की संख्या काफी है. रिपोर्ट्स के अनुसार जॉर्डन में 20 से 50 फीसदी तक की आबादी फिलिस्तीनी मूल की है. यानी करीब 1.15 करोड़ की आबादी में 35 लाख लोग फिलिस्तीनी मूल के हैं. उधर इस इस्लामिक मुल्क में 14 लाख से अधिक सीरियाई शरणार्थी भी रहते हैं. यानी करीब-करीब आधी आबादी फिलिस्तीनी और सीरियाई शरणार्थियों की है.

गाज़ा में 8 अक्टूबर से शुरू हुए इजराइली हमलों के बाद जॉर्डन में भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया था, लोगों ने इजराइल के साथ संबंध सामान्य करने के समझौते को रद्द करने समेत इजराइल के साथ ट्रेड डील भी खत्म करने की मांग की थी, लेकिन उल्टा जॉर्डन के सुरक्षाबलों ने इन प्रदर्शनों को रोकने के लिए बल प्रयोग किया और सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. इसके बाद से ही जॉर्डन में किंग अब्दुल्ला द्वितीय को लेकर काफी आक्रोश और नाराज़गी है.

इजराइल और अमेरिका का खास दोस्त है जॉर्डन

जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय भले ही फिलिस्तीन के मुद्दे पर इजराइली आक्रमण का विरोध करते हों लेकिन वह ईरान के खिलाफ अक्सर इजराइल का साथ देते हुए पाए गए हैं. अमेरिका के साथ नज़दीकी के चलते वह इजराइल के भी खास सहयोगी हैं. अप्रैल और अक्टूबर में जब ईरान ने सैकड़ों रॉकेट और मिसाइलों से इजराइल पर हमला किया था तो वह जॉर्डन ही था जिसने ज्यादातर मिसाइलों के इजराइली सरजमीं पर गिरने से पहले अपने ही हवाई क्षेत्र में मार गिराया था.

जॉर्डन के शासन फिलिस्तीन समर्थक तो हैं लेकिन वह ईरान के रेसिस्टेंस गुट का न तो हिस्सा हैं और न ही वह अपने देश की जमीन का इस्तेमाल इजराइल के खिलाफ होने देते हैं. यही वजह है कि मिडिल ईस्ट में बसा यह एक छोटा सा अरब देश अमेरिका और इजराइल दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण है.