महाराष्ट्र में प्रचंड बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना और एनसीपी सरकार बनाने को तैयार है, लेकिन कौन बनेगा मुख्यमंत्री? यह सवाल अब भी सबके जेहन में है. हर पार्टी के अपने-अपने दावे हैं और इन्हीं दावों के बीच मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बरकरार है. एक तरफ जहां शिंदे गुट के विधायक इस बात का दावा कर रहे हैं कि उनका नेता ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए. वहीं, भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी होने के साथ-साथ संख्या बल के आधार पर सीएम के पद का दावा कर रही है.

इन सब के बीच अजित पवार का भी दावा है कि चूंकि उनकी संख्या भी पहले से अधिक है और पिछली बार उन्हें डिप्टी सीएम से संतोष करना पड़ा था. इसलिए इस बार कुछ ऐसा फार्मूला हो कि वह सीएम बने.

दिल्ली में बैठक अहम

मुंबई के जितने भी बड़े नेता हैं, वह सब के सब आज दिल्ली में एक निजी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जा रहे हैं. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पुत्री के शादी समारोह के उपलक्ष्य में जो कार्यक्रम रखा गया ह, उसमें शामिल होने के लिए देवेंद्र फडणवीस, अजित पवार और एकनाथ शिंदे आज दिल्ली जा रहे हैं.

कयास यह लगाया जा रहा है कि इस समारोह के बाद संभव है भाजपा नेताओं के बीजेपी के आला नेताओं के साथ इन लोगों की बैठक हो और उसमें किसी भी फार्मूले पर अंतिम मोहर लगे. इसके बाद मंगलवार को यानी 26 नवंबर को मुंबई में आकर इस बात की औपचारिक घोषणा की जाए कि सीएम बनने को लेकर क्या फार्मूला तय हुआ और सबसे पहली बार कौन बनेगा सीएम.

बिहार का फॉर्मूला हो लागू

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के विधायकों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में अधिक सीटों के आने के बावजूद भी पॉपुलर फेस के आधार पर नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था. इस फार्मूले को उन्हें महाराष्ट्र में भी लागू करना चाहिए. पूरा चुनाव मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के चेहरे पर लड़ा गया है. उनके कामकाज पर लड़ा गया है, इसको ध्यान में रखते हुए एकनाथ शिंदे को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए और बिहार फार्मूले को ही लागू किया जाना चाहिए.

हरियाणा फॉमूले की भी चर्चा

एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों का यह भी दावा है कि जिस तरीके से हरियाणा में चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को वहां का मुख्यमंत्री बनाया था और उसके बाद नायाब सिंह सैनी ने अपने कामकाज के आधार पर हरियाणा में इस तरीके का परफॉर्मेंस दिया कि सरकार दोबारा से भारतीय जनता पार्टी की बनी.

ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने नायब सिंह सैनी को उपहार स्वरूप दोबारा से मुख्यमंत्री का पद दिया. शिंदे गुट के विधायकों का मानना है कि चुकी लाड़की योजना और तमाम तरह की ऐसी लोक लुभावना योजनाएं थी, जो मुख्यमंत्री की अगुवाई में महाराष्ट्र में लागू हुई और उसका फायदा जनता को मिला. बाद में जनता ने भी प्रचंड बहुमत के साथ महायुती को जिताया है. ऐसे में जिस तरीके से नायब सिंह सैनी को दोबारा से हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया, ठीक उसी तरीके से एकनाथ शिंदे को भी फिर से मुख्यमंत्री का पद दिया जाए.

संख्या बल बीजेपी के साथ

भारतीय जनता पार्टी के विधायकों का मानना है कि इस बार जनता ने प्रचंड बहुमत से भारतीय जनता पार्टी को जिताया है. पूरे चुनाव में बीजेपी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभर कर सामने आई है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का ही मुख्यमंत्री होना चाहिए. कुछ विधायक ऐसे हैं जिनका मानना है कि देवेंद्र फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. उनका यह भी मानना है कि पिछली सरकार में भारतीय जनता पार्टी ने समझौता के तहत एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री का पद दिया था. ऐसे में इस बार मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को खुद चाहिए कि वह आगे आए और देवेंद्र फडणवीस को वह कम का उम्मीदवार को घोषित करें.

अजित पवार के पार्टी की अपनी दलील

23 नवंबर 2019 को देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री उपमुख्यमंत्री के तौर पर महाराष्ट्र में शपथ ली थी. उसके बाद जो कुछ भी हुआ महाराष्ट्र की राजधानी में राजनीति में और सबको पता है. इस बार महायुति के गठबंधन में अजित पवार की भी भूमिका अहम रही और जनता ने उन्हें भी अच्छे खासे वोटों से नवाजा है. ऐसे में महायुति के अंदर अजित पवार को भी मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा है और इसकी गूंज बारामती से लेकर मुंबई के चौक चौराहों पर पोस्ट के माध्यम से दिख रही है. अजित पवार गुट के विधायकों का दावा है कि चूंकि पिछली बार उन्हें सिर्फ डिप्टी सीएम से संतोष करना पड़ा था इसलिए इस बार उन्हें सीएम का पद ऑफर किया जाए.

सरकार में रहने का फॉर्मूला

इन सब को लेकर सरकार बनाने के बाद कौन होगा? कम इस पर अलग-अलग फार्मूले पर बात हो रही है. मसलन महायुति में तीन बड़ी पार्टियों हैं भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी. एक यह भी कयास लगाया जा रहे हैं कि दो-दो एक का फार्मूला हो, मतलब 2 साल एक पार्टी, दो साल दूसरी पार्टी और 1 साल तीसरी पार्टी को मुख्यमंत्री हो. मतलब दो साल भारतीय जनता पार्टी, 2 साल शिवसेना और 1 साल नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का कैंडिडेट मुख्यमंत्री हो. हालांकि इसमें एक और पेंच है. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह दो-दो एक नहीं होकर ढाई-ढाई का होना चाहिए. मसलन पिछली बार जो फॉर्मूला बना था, ढाई साल बीजेपी और ढाई साल शिवसेना तो उस हिसाब से भी इस फॉर्मूले को भी लागू करके महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री घोषित किया जाना चाहिए. हालांकि अंतिम फार्मूला क्या होगा इस पर संस्पेंस बरकरार है.

बीजेपी का ऑब्जर्वर तय नहीं

विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद चाहे एनसीपी हो या शिवसेना हो इन दोनों ने अपने-अपने विधायकों की बैठक करके अपना विधायक दल का नेता चुन लिया है. मसलन शिवसेना की ओर से एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुना गया है जबकि एनसीपी की ओर से अजित पवार को विधायक दल का नेता चुना गया है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी विधायक दल की बैठक अभी तक नहीं हो पाई है. उसकी वजह साफ है कि केंद्र से अभी तक कोई ऑब्जर्वर मुंबई नहीं भेजा गया है. ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि मंगलवार अथवा बुधवार को भारतीय जनता पार्टी की ओर से ऑब्जर्वर मुंबई आएंगे और उसके बाद विधायक दल की बैठक की जाएगी, जिसमें भाजपा विधायक दल का नेता चुना जाएगा.