दिल्ली एनसीआर के स्कूल दीपावली की छुट्टियों के बाद खुल गए हैं लेकिन नोएडा में रहने वाली अद्विका और श्रियादिता की मां स्पर्धा को उनकी स्कूल से छुट्टी करानी पड़ी हैं क्योकिं दोनों बच्चे बीमार हैं डॉक्टर ने बताया ये स्मॉग की एलर्जी के कारण है.घर में एयर प्यूरीफाइयर भी लगा है लेकिन स्पर्धा कहती हैं कब तक इस तरह बच्चे को घर में कैद करके रखें.ये तो हर साल होता है,कभी कभी मन करता है किसी दूसरे शहर ही शिफ्ट हो जाए..

दिल्ली,दिवाली और प्रदूषण

ये समस्या सिर्फ स्पर्धा या छोटे बच्चों के पेरेंट्स के साथ ही नहीं हैं.एनसीआर की हवा बुजुर्गों का भी दम फुला रही है.दिल्ली,दिवाली और प्रदूषण.हर साल इसको लेकर खूब हो-हल्ला और राजनीति होती है.पटाखों पर पाबंदी के बाद भी खूब पटाखे जलाए गए.सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड कहता है वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई317पर पहुंच गया है.प्रदूषण की वजह से लोगों को सांस की तकलीफ से लेकर न जाने कितनी समस्याएं हो रही हैं.राजधानी है तो रोजगार के लिए भी दूसरे राज्यों से बहुत लोग आते हैं ऐसा नहीं है कि केवल दिवाली की वजह से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा है,दिल्ली एनसीआर में फैक्ट्रियों समेत प्रदूषण होने के और भी कई कारण है.

जहरीली हवा कम कर रही उम्र

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एयर क्वालिटी ऑफ़ इंडेक्स रिपोर्ट2024बताती है भारत की हवा इतनी ख़राब है कि आपकी लाइफ के पांच साल कम कर रही है,और दिल्ली एनसीआर में रहने वालों की उम्र से तो ये आठ साल कम कर रही है भारत की लगभग40%आबादी ऐसी आबोहवा में जीवन काट रही है जिसमें एयर क्वालिटी का लेवल सालानाPM 2. 5सीमा40 µg/m³से ज्यादा है.अगर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की गाइडलाइन्स को माना जाए तो दिल्ली में18मिलियन से ज्यादा लोगों का जीवन7.8साल तक बढ़ सकता है.

पीएम 2.5 क्या है?

PMका पूरा नाम पार्टिकुलेट मैटर होता है और इसमें2.5मैटर मैटर या कण का आकार होता है. PM2.5इतना छोटा पार्टिकल होता है,जो हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम में अंदर तक जा सकता है और सांस की बीमारियों को बढ़ा सकता है.ये प्रदूषण बढ़ाने वाला अहम कारण भी है.

इससे अस्थमा,ब्रोंकाइटिस,दिल की बीमारी होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.इसके साथ ही नाक,आंख में खुजली,दर्द और छींके आने जैसी समस्याएं आ सकती हैं.लगातार ऐसे समस्याएं बनी रहने से गंभीर बीमारी होने का खतरा रहता है.

यमुना में झाग से परेशान लोग

परेशानी केवल हवा में ही नहीं हैं दिल्ली में यमुना के पानी मे भी जहरीला झाग दिख रहा है.हर साल की तरह इस बार भी छठ में अर्घ्य देने का संकट है.घाट सजे हैं लेकिन नदी की सफाई की असलियत सामने हैं.

पर्यावरणविद् और भूगर्भशास्त्री राजेश सोलोमन पॉल कहते हैं यमुना नदी में अमोनिया की मात्रा बहुत ज्यादा हो गई है.अगर कोई यमुना नदी में स्नान कर लेता है तो उसके स्किन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा.पानी में बैक्टीरिया वगैरह भी बहुत ज्यादा होगा,जो शरीर के लिए बहुत खतरनाक है.वह कहते हैं यमुना नदी में नहाना तो दूर की बात है डुबकी लगाना भी सेहत के लिए सही नहीं है.छठ में लोग डुबकी लगाएंगे लेकिन वह उनके लिए ठीक नहीं है.उसके लिए उन्हें कुछ अलग व्यवस्था कर लेनी चाहिए.

यमुना में झाग के कारण

यमुना में झाग के कई कारण है.जैसे दिल्ली के करीब17बड़े नालों का गंदा पानी सीधे यमुना नदी में गिरता है.कई रिपोर्ट्स ये बताती हैं जब यमुना जी दिल्ली से बाहर निकलती है तो ऑक्सीजन लेवल जीरो होता है और फिजिकल इंडिकेटर9लाख होता है.यमुना का पानी ऐसा हो जाता है,जिसे पीना इंसान और जानवरों दोनों के लिए ही बहुत खतरनाक होता है.यमुना नदी में बनने वाले सफेद झाग में अमोनिया और फास्फेट बहुत ज्यादा होता है,ये इतने जहरीले कार्बनिक पदार्थ हैं,जिनके कार्ड हेल्थ के लिए बहुत ही नुकसानदायक होते हैं.

अस्पताल में भर्ती हुए भाजपा नेता

दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने भी जब दिल्ली सरकार के खिलाफ प्रदूषण को लेकर प्रदर्शन किया तो अपना गुस्सा जाहिर करते हुए यमुना नदी में डुबकी लगाई थी.इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.स्किन से लेकर सांस तक की दिक्कत हो गई थी उन्हें वीरेंद्र कहते हैं वो जो बात कहना चाहते थे वो साबित हो गई यमुना में डुबकी सेहत के लिए ठीक नहीं हैं अगर उनके अस्पताल में भर्ती होनें की नौबत आ सकती हैं तो ये छठ के व्रती लोगों की आस्था और सेहत से खिलवाड़ है ही

दिल्ली- एनसीआर पर वायु प्रदूषण का असर

दिल्ली- एनसीआर में रहने वाले जिन लोगों को सांस, फेफड़ों की परेशानी हैं, उनका जीना मुहाल हो रहा है. हर साल दिवाली के आसपास और मौसम बदलने के समय प्रदूषण का लेवल काफी बढ़ जाता है. इससे ज्यादा लोगों को सांस संबंधी दिक्क्तें होती हैं. ये प्रदूषण बच्चों और बुजुर्गों के लिए बेहद हानिकारक है क्योंकि उनकी इम्यूनिटी पावर युवाओं की तुलना में कमजोर होती है.

प्रदूषित हवा में बहुत देर तक रहने पर कई तरह की समस्या हो जाती है.धूल-मिट्टी से के साथ प्रदूषित हवा भी फेफड़ों में जाती है,जो खून के जरिए बॉडी के सभी पार्ट्स में फ़ैल जाती है,जिससे गंभीर समस्या होने का खतरा रहता है.

शरीर के किन अंगों पर ज्यादा असर?

राजेश सोलोमन पॉल कहते हैं स्मॉग से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी क्योंकि सूरज की किरणें वापस नहीं जा पाएंगी.जिसकी वजह से लोगों को सांस लेने में समस्या होने लगेगी.ऐसे में हवा को फिल्टर ज्यादा करना पड़ेगा और लग्स पर ज्यादा जोर पड़ेगा.स्मॉग बढ़ने से विजिबिलिटी भी कम होती है,जो समस्या का कारण बनता है.सांस लेने के अलावा चिड़चिड़ापन भी आता है.इसका सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है.प्रदूषण के कारण न सिर्फ सांस संबंधित समस्याएं होती हैं,बल्कि हार्ट और किडनी पर भी बुरा असर पड़ सकता है.

कुल मिलाकर दिल्ली एनसीआर का हाल कुछ ऐसा है कि बंद कमरे में घुटन होती है खिड़की खोलो तो ज़हरीली हवा आती है.