उम्र 62 साल… दोनों फेफड़े खराब, एक बार दिल धोखा दे चुका है, ‘सांसें’ भी रोजाना खरीदनी पड़ती हैं. इतनी परेशानियों के बाद न कोई गिला और न किसी से शिकवा. पूरी हिम्मत के साथ बीते बसंतों की यादों की तरह कमजोर हो चुके हाथों से ई-रिक्शा थामते हैं और निकल पड़ते हैं अपने और अपनी बेगम के पेट भरने की जुगाड़ में. ये दर्दभरी कहानी है हरिद्वार जिले के रुड़की के गुल मोहसिन की.

शिक्षानगरी रुड़की की सड़कों पर ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ एक बुजुर्ग ई-रिक्शा चलाते अकसर नजर आ जाएंगे. ये गुल मोहसिन हैं. बीमारियों से ‘गुल’ टूट चुके हैं, लेकिन हिम्मत और जज्बा आज भी बरकरार है. पूरे दिन सवारियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले गुल आराम करने वाली उम्र में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. बुढ़ापे में साथ देने वाली औलाद मेहनत मजदूरी कर खुद अपने लिए कमा लें वही बहुत है. औलाद को छोडिए खुद उनकी सांसों ने गुल का साथ छोड़ दिया है. अब आस है तो सिर्फ मोल की ‘सांसों’ पर.

साल 2009 से बिगड़ गए हालात

बुजुर्ग गुल मोहसिन रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब के रहने वाले हैं. वह रोज ई-रिक्शा के जरिए सवारियों को इधर से उधर पहुंचाते हैं. गुल मोहसिन ई-रिक्शा के साथ ऑक्सीजन सिलेंडर भी लेकर चलते हैं. उसके जरिए ही वह सांस ले पाते हैं. दरअसल, आज से 15 साल पहले गुल मोहसिन की जिंदगी ऐसी नहीं थी. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. बच्चों की भी शादी कर जिम्मेदारियों से फ्री हो गए थे. साल 2009 उनकी जिंदगी में परेशानियों का तूफान लेकर आया.

गुल मोहसिन कहते हैं, ‘मैं एक टेलर था, कपड़े सिलकर परिवार का गुजारा चलाता था. इसी कमाई से मैंने अपने बच्चों की शादी की थी.’ आंखों में भर आए आंसुओं को पोछते हुए वह रुंदे हुए गले से कहते हैं, ‘2009 में मुझे हार्ट अटैक आया. मेरे पास जो भी पैसा था सब खत्म हो गया. उसके बाद डॉक्टर ने मुझे आराम बताया.’

फेफड़े हुए खराब, चलना हुआ मुश्किल

गुल मोहसिन बताते हैं, ’11 साल बाद 2020 में कोरोना काल के बाद तो जैसे जिंदगी परेशानियों से घिरती चली गई. मेरे दोनों फेफड़ें जवाब दे गए. जिसके कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया.’ वह बताते हैं, ‘डॉक्टरों का कहना था कि जब तक जिंदगी है, सिलेंडर से ऑक्सीजन लेनी पड़ेगी.’ डॉक्टर की सलाह और जिंदगी की आस ने गुल मोहसिन ने हार नहीं मानी. उन्होंने 2 साल पहले लोन लेकर ई रिक्शा का हैंडल थाम लिया. अब उन्हें ई-रिक्शा की किश्त, ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने की रकम और घर के खर्चे के लिए रोजाना पैसे कमाने पड़ते हैं. तीनों जरूरतें ही अब गुल मोहसिन की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं.

नहीं हो पाईं किश्तें जमा

खुद्दार किस्म के गुल मोहसिन ने इतनी परेशानियों के बाद भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए. गंभीर बीमारियों के बाद भी वह रोजाना घर से पैसा कमाने के लिए निकलते हैं. उनके 3 बेटे और 2 बेटियां हैं. सबकी शादी खुद उन्होंने की. सभी अपने-अपने परिवार के साथ अलग-अलग रहते हैं. गुल मोहसिन अपनी पत्नी के साथ मेहनत मजदूरी कर जिंदगी की पटरी पर चल रहे हैं. काम मंदा होने पर कुछ दिन पहले उनकी ई-रिक्शा की दो-तीन किस्त अदा नहीं हो पाईं, लेकिन वह मायूस नहीं हुए. किश्त चुकाने के लिए वह थोड़ी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं. वह रोजाना 400 से 500 रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं. उन्हें जरूरत है तो सरकारी मदद की.