हर माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है. स्कंद देव यानी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती हैं. धार्मिक मान्यता है कि जो साधक स्कंद षष्ठी का व्रत करती हैं जिससे उन्हें अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत भी रखती हैं. साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान कार्तिकेय के साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है. जो भी लोग इस व्रत को करते हैं उन्हें स्कंद षष्ठी के अगले दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान से व्रत का पारण करना जरूरी होता है. माना जाता है ऐसा करने से व्रत सफल होता है और उसका पूरा फल व्यक्ति प्राप्त होता है.

स्कंद षष्ठी व्रत पारण शुभ मुहू्र्त (Skanda Sashti Vrat Paran Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत 08 सितंबर को रात 07 बजकर 58 मिनट पर होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 09 सितंबर को रात 09 बजकर 53 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी का पर्व 09 सितंबर को मनाया जाएगा. इसके बाद व्रत का पारण किया जा सकता है.

कैसे करें स्कंद षष्ठी व्रत पारण (Skanda Sashti Vrat Paran Vidhi)

स्कंद षष्ठी व्रत का पारण अगले दिन शुभ मुहूर्त में किया जाता है. सुबह स्नान करने के बाद भगवान कार्तिकेय की विधि विधान से पूजा करने के बाद व्रत का पारण करना शुभ होता है. पारण करने के बाद गरीब लोगों में अन्न धन और वस्त्र का दान करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को मनचाहा कार्य में सफलता प्राप्त होती है. इसके अलावा जीवन में सुख- शांति बनी रहती है.

स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व (Skanda Sashti Vrat Significance)

स्कंद षष्ठी के दिन विधि-विधान से व्रत और पूजा करने से भगवान कार्तिकेय की विशेष कृपा प्राप्त होती है और यह व्रत लोगों को शनि दोष से भी मुक्ति दिलाता है. इसके अलावा इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है