मौजूदा समय में इस बात को लेकर बवाल मचा हुआ है कि आखिर एक गैंगस्टर बैकग्राउंड से ताल्लुक रखने वाला शख्स कैसे महामंडलेश्वर बना दिया गया. ऐसा जूना अखाड़े में हुआ है और पीपी के नाम से मशहूर प्रकाश पांडे को महामंडलेश्वर की उपाधि दे दी गई है और उसे प्रकाशानंद गिरी का नाम दे दिया गया है. इसके बाद से ही इस मामले में बवाल मचा है. कई लोग इसका विरोध करते नजर आ रहे हैं. अखाड़े के अंतराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरी ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं और इसके लिए एक समीति का गठन भी किया गया है. उन्हें देश के कुछ बड़े मंदिरों का महंत भी बनाया गया है.
एक तरफ जहां उनके महामंडलेश्वर बनाए जाने की खबरों का विरोध हो रहा है वहीं हम आपको बता रहे हैं कि आखिर महामंडलेश्वर बनते कैसे हैं और इसकी प्रक्रिया क्या है. दूधेश्वर नाथ मंदिर गाजियाबाद के महंत एवं श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने इस बारे में बात की और बताया कि आखिर कोई महामंडलेश्वर कैसे बनता है और इस प्रक्रिया में कौन-कौन से नियमों का पालन करना पड़ता है.
अखाड़ों में कोई कैसे बनता है महामंडलेश्वर?
सनातन धर्म में सन्यासी परंपरा का चलन काफी पुराना है. कई अलग-अलग तरह के साधु-संत होते हैं और उनका अपने धर्म में अलग-अलग महत्व भी होता है. लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे बड़ा महंत सनातन धर्म में किसे कहते हैं. इसका सही जवाब है शंकराचार्य. उन्हें सबसे सर्वोपरीय माना जाता है. इसके बाद महामंडलेश्वर का ही नंबर आता है. महामंडलेश्वर, अखाड़ों का सबसे बड़ा पद माना जाता है. इन्हीं में से एक उपाधि होती है महामंडलेश्वर की. इस उपाधि को शंकराचार्य के बाद सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. ये एक बड़ी जिम्मेदारी होती है और इसके लिए आपको वेदांत की शिक्षा आनी चाहिए. लेकिन क्या किसी को भी महामंडलेश्वर बनाया जा सकता है.
कौन बोल सकता है महामंडलेश्वर?
ऐसा नहीं है. कोई भी ऐसे ही महामंडलेश्वर नहीं बन सकता है. इसके लिए वेद-पुराण का ज्ञान होना बेहद जरूरी है. इसके साथ आप अगर आचार्य या फिर शास्त्री हैं तो आपको इसका भी फायदा मिलेगा और चयन के लिए आप योग्य होंगे. किसी को भी महामंडलेश्वर बनाने से पहले तो ये देखा जाता है कि वो किस गुट से या मठ से जुड़ा हुआ है. साथ ही जिस भी जगह से वो जुड़ा हो वहां समाज कल्याण के कार्य होते हैं कि नहीं. साथ ही अगर वो कथावाचक है तो उसे भी फायदा मिलता है. अगर आप 10-12 सालों से कथा कर रहे हैं या किसी मठ के साथ जुड़े हुए हैं तो भी महामंडलेश्वर के पद के लिए आपकी योग्यता तय की जा सकती है.
महामंडलेश्वर बनने की भी एक प्रक्रिया है. कुछ नियमों का पालन करने के बाद ही महामंडलेश्वर बना जा सकता है और ये नियम इतने सरल नहीं होते हैं. जब महामंडलेश्वर के चयन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है उसके बाद उन्हें सन्यास दिलाया जाता है. उन्हें खुद के हाथों ही खुद का पिंडदान करना होता है. इसके बाद महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक होता है. इस दौरान 13 अखाड़ों के संत-महंत भी उस जगह पर मौजूद रहते हैं. इस दौरान दूध, दही, घी, शहद और चीनी से बना पंचामृत सभी में बांटा जाता है. इसके अलावा चादर भी भेंट की जाती है.
मिलते हैं अलग-अलग पद
इसके बाद योग्यता और कर्म के आधार पर साधु को अलग-अलग पद बांटे जाते हैं. इसमें आचार्य महामंडलेश्वर का पद सबसे बड़ा होता है. इसके बाद आते हैं महामंडलेश्वर और फिर आते हैं महंत. इसके बाद कोठारी, भंडारी, थानापति, कोतवाल, महंत, श्री महंत और सचिव होते हैं. इन सबका अपना अलग-अलग प्लान होता है. अगर अखाड़े में रहने वाला कोई भी शख्स नियमों को ताक पर रखेगा और गलत कामों में शामिल पाया जाएगा तो उससे पद छीना भी जा सकता है और उसे दंड देने के की भी प्रक्रिया बताई गई है.