असम विधानसभा में हर शुक्रवार को दोपहर 12 से 2 बजे तक नमाज के लिए दो घंटे अवकाश की प्रथा खत्म कर दी गई है. यह ब्रेक मुस्लिम विधायकों को नमाज अदा करने के लिए दिया जाता था. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खुद एक्स पर एक पोस्ट में बताया कि अब नियम बदल दिया गया है. आगे से शुक्रवार को कोई ब्रेक नहीं दिया जाएगा. आइए जान लेते हैं कि क्या है नमाज पढ़ने का इतिहास और असम विधानसभा में कब और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत?
इस्लाम के आरंभ से ही नमाज की प्रथा
नमाज उर्दू का शब्द है, अरबी में जिसका पर्यायवाची मिलता है सलात. जानकार बताते हैं कि कुरान शरीफ में सलात शब्द का इस्तेमाल बार-बार मिलता है और हर मुसलमान पुरुष-स्त्री को नमाज पढ़ने का आदेश दिया गया है. जहां तक नमाज पढ़ने के इतिहास की बात है तो इस्लाम के आरंभ से ही नमाज की प्रथा मिलती है. मुसलिम समुदाय का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद साहब ने पूरे मुस्लिम समुदाय में नमाज का प्रचार-प्रसार ही नहीं किया, इसे अपने जीवन का हिस्सा भी बनाया. नमाज को नियमपूर्वक पढ़ना पुण्य माना जाता है.
जुमे की नमाज का यह है इतिहास
शुक्रवार यानी जुमे की नमाज का भी अपना इतिहास है. पैगंबर मुहम्मद साहब हिजरत कर मक्का से मदीना आ रहे थे, तो मक्का से बाहर कुबा नामक जगह पर उन्होंने अनुयायियों के साथ पहली बार जुमे की नमाज अदा की थी. तभी से जुमे की नमाज का सिलसिला चला आ रहा है और इसे सामूहिक रूप से पढ़ना जरूरी माना जाता है. इसके लिए कम से कम 10 लोग होने चाहिए और नमाज मौलवी पढ़वाते हैं.
जानकार एक और रोचक तथ्य बताते हैं कि उर्दू का नमाज शब्द संस्कृत की धातु नमस् से आया है, जिसका अर्थ है आदर और भक्ति में झुकना. मुसलमान के लिए पांच वक्त की नमाज का प्रावधान है. इन्हें फज्र यानी तड़के की नमाज, जुहर (दोपहर), अस्र (सूरज ढलने से पहले), मगरिब (सूरज ढलने के बाद), और ईशा (रात) की नमाज कहा जाता है.
असम विधानसभा में साल 1937 में हुई थी शुरुआत
जहां तक असम विधानसभा में जुमे यानी शुक्रवार की नमाज के लिए दो घंटे ब्रेक की प्रथा की बात है तो इसकी शुरुआत साल 1937 में हुई थी. इसे मुस्लिम लीग के सैयद मुहम्मद सादुल्ला ने शुरू किया था, जब असम विधानसभा का कामकाज शुरू हुआ था. इसके तहत मुस्लिम विधायकों को नमाज अदा करने की सुविधा देने के लिए शुक्रवार सुबह 11 बजे सदन की कार्यवाही दो घंटे स्थगित कर दी जाती थी. लंच के बाद फिर से कार्यवाही शुरू होती थी. सैयद सादुल्ला ब्रिटिशकाल में असम के प्रीमियर (प्रधानमंत्री) थे. वह असम यूनाइटेड मु्स्लिम पार्टी के नेता थे. देश की आजादी के बाद साल 1946 से 1950 तक वह भारत की संविधान सभा के सदस्य भी रहे.
दोपहर 12 से दो बजे तक रहता था ब्रेक
वर्तमान में असम विधानसभा में जुमे की नमाज के लिए दोपहर 12 से दो बजे तक ब्रेक होता था. फिलहाल 126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में 31 मुस्लिम विधायकों की सहूलियत के लिए जुमे की नमाज के लिए कार्यवाही रोकी जाती थी. अब असम विधानसभा के अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी की अगुवाई में हुई एक बैठक में ब्रेक की इस प्रथा को खत्म करने का फैसला किया गया. बताया जाता है कि इस फैसले का सर्वसम्मति से विधायकों ने समर्थन किया है.
अब रोज सुबह 9:30 बजे शुरू होगी कार्यवाही
असम सरकार का दावा है कि अध्ययन में यह बात सामने आई लोकसभा से लेकर राज्यसभा और दूसरे राज्यों की विधानसभा या विधानपरिषद में नमाज के लिए छुट्टी देने का कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए असम विधानसभा में भी ब्रिटिश काल से चले आ रहे नियम को खत्म करने का फैसला लिया गया है. असम विधानसभा की कार्यवागी पहले सोमवार से गुरुवार तक सुबह 9:30 बजे शुरू होती थी, जबकि शुक्रवार को बीच में ब्रेक के चलते यह सुबह 9 बजे ही शुरू हो जाती थी. अब रोज सुबह 9:30 बजे ही कार्यवाही शुरू होगी.