जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद बदले हालात और समीकरण के साथ विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. 2014 में जब यहां पर चुनाव हुआ था तब ये राज्य हुआ करता था और विधानसभा में 87 सीटें थीं, लेकिन अब ये केंद्र शासित प्रदेश हो चुका है. विधानसभा की सीटें भी बढ़कर 90 हो गई हैं. घाटी की बदली हुई फिजा का फायदा किस पार्टी को मिलता है ये विधानसभा चुनाव होने के बाद ही साफ होगा. लेकिन अभी जो लड़ाई है वो दिलचस्प नजर आ रही है. फाइट त्रिकोणीय है. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन का मुकाबला बीजेपी और पीडीपी से है. कांग्रेस के कमजोर होने के बाद यहां लड़ाई एनसी और पीडीपी के बीच ही होती रही है. धीरे-धीरे बीजेपी का ग्राफ भी यहां बढ़ा और अब वो अपने दम पर सत्ता पाने का ख्वाब देख रही है.
मनोनित विधायकों को वोटिंग का अधिकार
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) अधिनियम, 2023 के मुताबिक उपराज्यपाल (एलजी) कश्मीरी प्रवासी समुदाय से अधिकतम दो सदस्यों को विधानसभा में नामित कर सकते हैं. नामांकित सदस्यों में से एक महिला होनी चाहिए. इसने एलजी को पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को विधानसभा में नामित करने का भी अधिकार दिया. ये तीन नामांकित सीटें पहले से प्रचलित दो महिला विधायकों के नामांकन के अतिरिक्त हैं.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की प्रभावी संख्या 95 होगी, जिसमें पांच अतिरिक्त नामांकित सदस्य होंगे, जिन्हें मतदान का अधिकार होगा. इससे पहले, मनोनीत सदस्यों को विधानसभा में मतदान का कोई अधिकार नहीं था. ये जम्मू-कश्मीर के चुनावी मानचित्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाएंगे, जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.
जम्मू क्षेत्र में सीटों की संख्या
जम्मू क्षेत्र में छह विधानसभा सीटों में से केवल एक मुस्लिम बहुल चिनाब घाटी में है. जम्मू वो क्षेत्र है जिसे बीजेपी का दबदबे वाला कहा जाता है. जम्मू क्षेत्र के मुस्लिम बहुल पीर पंजाल और चिनाब घाटी में अधिक हिंदू बहुसंख्यक निर्वाचन क्षेत्रों का गठन किया गया है. जम्मू के उधमपुर जिले में विधानसभा की 3 सीटें आती हैं. चेनानी विधानसभा क्षेत्र में कई गांवों और पंचायतों (दुदु, जाखेर, सिरा, पट्टनगढ़, बरमीन और सत्यालता) को रामनगर विधानसभा क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया है. भले ही वे भौगोलिक रूप से जुड़े हुए नहीं हैं. ये गांव चारों तरफ से चेनानी से घिरे हुए हैं और इनमें अनुसूचित जाति की बड़ी आबादी है.
जम्मू-कश्मीर में पहले अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए रोटेशन के आधार पर विधानसभा सीटें आरक्षित की जाती थीं. चेनानी ने अपने 25 साल पूरे कर लिए थे. आरक्षित सीट को रामनगर में स्थानांतरित किए जाने की संभावना थी, जो कि परिसीमन रिपोर्ट में भी प्रस्तावित है. इसी तरह की कहानी जखानी गांव की है.
यहां 334 लोग रहते हैं. इनमें से 92.8% अनुसूचित जनजाति के हैं. ये उधमपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित है. उधमपुर निर्वाचन क्षेत्र में इसे बनाए रखने के बजाय इसे चुनावी रूप से चेनानी के साथ जोड़ दिया गया है. इस तरह उधमपुर निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता दूर हो गए हैं, जो परंपरागत रूप से बीजेपी को वोट नहीं देते हैं.
इस बात के अन्य संकेत हैं कि कैसे बदलाव हिंदू वोटों को मजबूत कर सकता है और बीजेपी को उन क्षेत्रों में पैठ बनाने में मदद कर सकता है जहां पार्टी के कम मतदाता हैं. एक उदाहरण राजौरी जिला है.
2014 तक यहां पर चार विधानसभा क्षेत्र शामिल थे. नौशेरा, कालाकोटे, राजौरी और दरहाल. परिसीमन ने एक नया निर्वाचन क्षेत्र थानामंडी बनाया. नौशेरा एक हिंदू बहुसंख्यक निर्वाचन क्षेत्र है. इसके अलावा दो सामान्य विधानसभा क्षेत्रों में भी हिंदू मतदाता अच्छी खासी संख्या में हैं.
कालाकोटे निर्वाचन क्षेत्र में 51% आबादी मुस्लिम है, जिसमें सभी मुस्लिम पंचायतों में से 10 में से आठ अनुसूचित जनजाति के हैं. सुंदरबनी तहसील में 86% हिंदू हैं. उसे नौशेरा से अलग कर कालाकोट से जोड़ दिया गया है, जिससे 64% हिंदू बहुमत सुनिश्चित हो गया है. राजौरी निर्वाचन क्षेत्र में मुख्य रूप से राजौरी तहसील शामिल है. यहां 70% मुस्लिम और 28% हिंदू हैं.
राजौरी शहर में 57% हिंदू हैं. मुस्लिम आबादी डूंगी, फतेहपुर, सोहना और बगला में हैं. यहां मुस्लिम अनुसूचित जनजाति की आबादी 48.99% , 55.72%, 91.54%, और 57.99%. इन 4 क्षेत्रों को राजौरी से हटाकर थानामडी विधानसभा क्षेत्र में शामिल कर दिया गया है.
एसटी फैक्टर का भी अहम रोल
चुनावों में पीर पंजाल बेल्ट में अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी की सीटें अहम फैक्टर हो सकती हैं. विधानसभा के लिए नौ सीटें एसटी वर्ग के लिए रिजर्व है. जिनमें से पांच राजौरी-पुंछ जुड़वां सीमावर्ती जिलों में स्थित हैं. रिजर्व सीटों में राजौरी, दरहाल, थानामंडी (राजौरी), सुरनकोट, मेंढर (पुंछ), महोर (रियासी), कोकेरनाग (अनंतनाग), कंगन (गांदरबल) और गुरेज (बांदीपोरा) शामिल हैं.
राजौरी और पुंछ दोनों में 36% आबादी पारंपरिक रूप से गुज्जर और बक्करवाला की है. बाकी आबादी, मुस्लिम और हिंदू की है. पुंछ जिले में 10% आबादी हिंदू और सिख है, जो ज्यादातर पुंछ शहर और इसके जैसे अन्य शहरों में केंद्रित है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिम, मुख्य रूप से अनुसूचित जनजाति और पहाड़ी लोग रहते हैं.
राजौरी में 34.5% हिंदू और 62.7% मुस्लिम हैं. अधिकांश हिंदू राजौरी शहर में केंद्रित हैं और ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर मुसलमानों का वर्चस्व है. नौशेरा, कालाकोट और सुंदरबनी में भी हिंदुओं की भारी संख्या है. इन आंकड़ों को देखने के बाद ये कहा जा सकता है कि एसटी वर्ग के लिए आरक्षित इन सीटों पर बीजेपी को फायदा हो सकता है.