उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में रक्षाबंधन के दूसरे एक अनोखी कुश्ती का आयोजन हुआ. घूंघट में रहने वाली महिलाएं एक दिन की पहलवान बन गईं. चूल्हा चौका छोड़ वह अखाड़े में कूद पड़ी. इन महिला पहलवानों के बीच उम्र और रिश्तों का बंधन नहीं रहा. घर की सांस बहुएं और बुजुर्ग महिलाएं घूंघट ओढ़े महिलाओं को पटखनी देती नजर आईं. दंगल में खूब दांव पेच आजमाए गए. कुश्ती का आगाज बूढ़ी महिला के ढोल बजाने के साथ हुआ. उसके बाद महिलाने अखाड़े में उतरीं और कई राउंड की कुश्तियां हुईं.

इस कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजली उत्सव के दौरान किया जाता है. विजेता महिलाओं को इनाम देकर सम्मानित किया जाता है. इस वर्ष आयोजित हुए कुश्ती कार्यक्रम में पहले महिलाओं ने तालाब में कजली विसर्जन किया. उसके बाद दंगल में इकट्ठा होकर अपनी परंपरा का निर्वाहन करते हुए कुश्ती की कला का प्रदर्शन किया.

104 साल पहले हुई थी शुरुआत

महिलाओं की इस अनोखी कुश्ती की शुरुआत हमीरपुर जिले के बिवांर थाना क्षेत्र के गांव लोदीपुर निवादा की पुरानी बाजार में सन 1920 में हुई थी. इस वर्ष आयोजित हुई कुश्ती का आगाज गांव की महिला ग्राम प्रधान गिरजा देवी ने दो महिलाओं को हाथ मिलवाकर कराया. अखाड़े में महिलाओं की 20 कुश्तियां कराई गईं. घूंघट वाली महिलाओं के बीच गुत्थम-गुत्था देख वहां मौजूद अन्य महिलाएं और किशोरियों ने जमकर तालियां बजाई. इस अनोखे दंगल में कई बुजुर्ग महिलाएं भी घूंघट वाली महिलाओं से जमकर पटखनी देती नजर आईं.

अंग्रेजों से रक्षा के लिए सीखी कुश्ती

गांव के स्थानीय निवासी दुष्यंत सिंह ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत में अंग्रेजी फौजों ने यहां के पुरुषों पर बड़ा अत्याचार किया था, जिसके चलते गांव के पुरुष अपने-अपने घरों से दूर जंगल मे छिप कर रहने लगे थे. घरो में महिलाएं और बच्चियां ही बची थी. तभी महिलाओं ने अपनी हिफाजत के लिए कुश्ती के दांव-पेंच सीखे थे. बुजुर्ग नाथूराम कि माने तो बुंदेलखंड क्षेत्र में यहीं इकलौता गांव है, जहां सैकड़ों महिलाएं अखाड़े में कुश्ती लड़ती हैं.

गांव के पुरुष रहते हैं दूर

ग्रामीणों ने बताया कि कुश्ती से पहले महिलाएं मंगल गीत गाते हुए अखाड़े तक पहुचती हैं. दंगल में शामिल होने के लिए घरों से महिलाओ को बुलाया जाता है. इस दंगल से पुरुषों को दूर रखा जाता है. गांव की ग्राम प्रधान गिरजा देवी ने बताया कि इस दंगल में सिर्फ महिलाओं और किशोरियों को प्रवेश दिया जाता है. जबकि इस दौरान गांव के पुरुष गांव से दूर रहते हैं. अगर कोई पुरुष यहां के दंगल को देखने की कोशिश भी करता है तो यहां उपस्थित महिलाओं की टोली उसको पीटते हुए गांव के बाहर कर देती हैं. इसी के चलते इस दिन पुरुष गांव में नही रहते या अपने-अपने घरों में कैद रहते हैं.