लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा चुनाव की बारी है. चुनाव आयोग ने आज शुक्रवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया. जम्मू-कश्मीर में 3 चरणों में तो हरियाणा में एक चरण में चुनाव कराए जाएंगे. जबकि 4 अक्टूबर को इन दोनों राज्यों के एक साथ चुनाव परिणाम आएंगे.

जम्मू-कश्मीर में 3 चरणों यानी 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे. हरियाणा में एक ही चरण यानी 1 अक्टूबर को वोट पड़ेंगे. खास बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं. इन 10 सालों में जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक समीकरण में काफी कुछ बदलाव आ गया. जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो चुका है. लद्दाख को अलग कर इसके 2 हिस्से कर दिए गए.

J&K में परिसीमन के बाद बढ़ गईं सीटें

परिसीमन के बाद यहां पर सीटों की संख्या में इजाफा कर दिया गया. इसमें जम्मू संभाग के हिस्से में 6 अतिरिक्त सीटें आईं जबकि कश्मीर को महज एक अतिरिक्त सीट ही मिली. ऐसे में विधानसभा में जम्मू संभाग की स्थिति पहले की तुलना में और मजबूत हो चुकी है.

जम्म-कश्मीर में पिछला चुनाव साल 2014 में नवंबर-दिसंबर में हुआ था. तब किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. तब 87 सीटों वाली विधानसभा में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को सबसे अधिक 28 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी यहां पर दूसरे नंबर की पार्टी रही और उसके खाते में 25 सीटें आईं. नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 सीटों पर जीत मिली जबकि 2008 के चुनाव में उसे 28 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस यहां पर 12 सीटों के साथ चौथे नंबर की पार्टी बनी. 2014 में 25 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी को 2008 में महज 11 सीटों पर जीत मिली थी.

पिछले चुनाव में सरकार में शामिल हुई थी BJP

हालांकि बाद में मुफ्ती मुहम्मद सईद की पीडीपी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच गठबंधन हो गया. इससे पहली बार बीजेपी यहां पर सत्ता में आने में कामयाब रही थी. मुफ्ती मुहम्मद सईद मार्च 2015 में मुख्यमंत्री बने. लेकिन अगले साल जनवरी में उनका निधन हो गया. इस बीच रजामंदी नहीं होने से राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया.

अगले साल 4 अप्रैल 2016 को मुफ्ती की बेटी महबूबा मुफ्ती सईद ने बीजेपी के सहयोग से राज्य में नई सरकार बनाई. हालांकि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. बीजेपी ने जून 2018 में सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे महबूबा की सरकार गिर गई. फिर राज्य में 20 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक हालात बहुत बदल गए हैं.

हरियाणा में 10 सालों से बीजेपी का कब्जा

जम्मू-कश्मीर की तरह हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया. यहां 1 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे. यहां पर बीजेपी लगातार 10 सालों से सत्ता पर काबिज है. हालांकि 2019 के चुनाव में बाद बीजेपी को बहुमत जुटाने के लिए जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से समर्थन लेना पड़ा था. मनोहर लाल खट्टर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन साल 2024 के चुनावी साल में बीजेपी और जेजेपी में खटास आ गई. दोनों के रास्ते अलग हो गए. बदले हालात में पार्टी नेतृत्व ने खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और नायब सिंह सैनी को सीएम बनाकर सत्ता विरोधी लहर को कम करने और जातीय समीकरण सेट करने की कोशिश की.

90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार बड़ी जीत हासिल की, लेकिन 2014 की तरह इस बार पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी. यहां पर एक चरण में वोटिंग कराई गई, जिसमें बीजेपी को 40 सीटों पर जीत हासिल हुई और वह बहुमत से 5 सीटें पीछे रह गई. 2014 के चुनाव में उसे 47 सीटों पर जीत मिली थी और इस बार 7 सीटों का नुकसान हुआ. इसी तरह कांग्रेस को 31 सीटों पर जीत मिली और 2014 के चुनाव की तुलना में इस बार 16 सीटों का इजाफा हुआ. तब कांग्रेस ने 15 सीटों पर जीत हासिल की थी.

लोकसभा चुनाव में कैसा रहा प्रदर्शन

चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी जननायक जनता पार्टी का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा. दुष्यंत चौटाला की पार्टी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की. अभय सिंह चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल महज एक सीट पर ही जीत हासिल कर सकी, जबकि 2014 में उसने 19 सीटें जीती थी. हाल में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया और 10 में से 5 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि सत्तारुढ़ बीजेपी को 5 सीटों से हाथ धोना पड़ गया और उसे महज 5 सीटें ही मिली.

अब एक बार फिर राज्य में चुनाव होने जा रहे हैं. करीब साढ़े 4 साल तक सत्ता में साझीदारी रही जेजेपी अब बीजेपी से अलग हो चुकी है. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जीत के बाद वापसी की है और पार्टी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के मूड में है. बीजेपी ने भी अपनी राह आसान करने के लिए मुख्यमंत्री बदल दिया. अब देखना है कि हरियाणा की सियासत में नायब सिंह सैनी बीजेपी के दांव पर कामयाब होते हैं या फिर विपक्ष 10 साल का सूखा खत्म कर पाएगा.

झारखंड में भी चुनावी हलचल, बाद में होगा ऐलान

हरियाणा की तरह झारखंड में भी चुनावी माहौल बना हुआ है. हालांकि वहां पर चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया गया है. 81 सदस्यों वाले विधानसभा में 2019 के चुनाव में सत्तारुढ़ बीजेपी को जोर का झटका लगा था और महज 25 सीट ही जीत पाई, इस वजह से उसे सत्ता से दूर जाना पड़ गया. चुनाव में तत्कालीन सीएम रघुबर दास की अगुवाई में बीजेपी अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं सकी. उसे महज 25 सीटों पर जीत मिली. जबकि 2014 में उसे 37 सीटों पर जीत मिली थी.

बीजेपी को चुनाव में महागठबंधन के हाथों हार का सामना करना पड़ा. यूपीए के तहत झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने मिलकर चुनाव लड़ा था. यूपीए को 47 सीटों पर जीत मिली. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 30 सीटों पर जीत हासिल की, कांग्रेस को 16 सीटों पर तो राष्ट्रीय जनता दल को एक सीट पर जीत मिली. शानदार प्रदर्शन के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन को प्रदेश की कमान मिली.

हालांकि चुनावी साल में 31 जनवरी को भ्रष्टाचार के मामले में हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा. जेल जाने की वजह से उन्होंने पद छोड़ दिया फिर चंपई सोरेन को प्रदेश का सीएम बनाया गया. हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें 28 जून 2024 को रिहा कर दिया गया. इसके बाद 4 जुलाई को वह फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.

हाल में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को झटका लगा और महज 9 सीट ही जीत सका. जबकि इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस, जेएमएस और आरजेडी ने मिलकर चुनाव लड़ा और 5 सीट अपने नाम कर लिया. 2019 में उसे एक सीट पर जीत मिली थी. ऐसे में 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल चुका है. यहां पर रोमांचक मुकाबला होने के आसार लग रहे हैं.

महाराष्ट्र को चुनाव के लिए करना होगा इंतजार

लोकसभा चुनाव के बाद जिन 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उसमें सबकी नजर महाराष्ट्र पर टिकी है. हालांकि आयोग ने हरियाणा की तरह महाराष्ट्र में चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है. ऐसे में उसे अपने यहां चुनाव कराने के लिए अभी इंतजार करना होगा. महाराष्ट्र में 2019 की तुलना में 2024 की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है. 5 साल पहले बीजेपी और शिवसेना का बरसों पुराना गठबंधन था, साथ ही दोनों ने मिलकर चुनाव भी लड़ा था. लेकिन चुनाव परिणाम के बाद दोस्ती में खटास आ गई.गुजरे 5 सालों में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दोनों में टूट पड़ गई. दोनों दलों के 2 अलग- अलग गुट बन गए.

बदले हालात में आज महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी के साथ शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) है तो कांग्रेस के साथ शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) है. बीजेपी के साथ जो शिवसेना और एनसीपी खड़ी है वो मूल पार्टी से बगावत करने वाले गुट हैं. हालांकि इन्हीं दोनों गुटों को असली पार्टी होने का दर्जा भी मिला हुआ है.