इस बार देश में गर्मी और लू का कहर देखने को मिल रहा है. कई लोगों की मौत लू के कारण हो गई है. अस्पतालों में गर्मी और लू से बीमार हुए लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इमरजेंसी विभाग में भी हर दिन हीट स्ट्रोक का शिकार हुए मरीज आ रहे है. डॉक्टरों का कहना है कि लू लगने पर शरीर के कई ऑर्गन पर एक साथ असर पड़ सकता है. जो मौत का कारण बनता है. ऐसे में लोगों को काफी सतर्क रहने की जरूरत है.
दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉ. अजय चौहान ने बताया कि हमारे शरीर के सारे अंगों को एक निश्चित तापमान की जरूरत होती है. यह तापमान 98.6 या 99 डिग्री फारेनहाइट ( बॉडी टेंपरेचर) होता है. अगर बाहर के तापमान की बात करें तो हमारा शरीर 37 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में ठीक से काम कर पाता है, लेकिन अगर बाहर का टेंपरेचर इससे ज्यादा होता है तो हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है. चूंकि काफी समय से बाहर का तापमान 45 से अधिक बना हुआ है तो हीट स्ट्रोक यानी लू लगने के मामले बढ़ रहे हैं.
हीट स्ट्रोक में मृत्यु दर 70-80 फीसदी
डॉ. चौहान के मुताबिक, हीट स्ट्रोक में मृत्यु दर 70-80 फीसदी है. यानी हीट स्ट्रोक होने पर इतने फीसदी मामलों में मौत हो जाती है. ऐसे में इससे बचाव करना जरूरी है. अगर किसी में भी हीट स्ट्रोक के लक्षण दिखें तो तुरंत अस्पताल जाना चाहिए. अगर आपको लगे कि कोई बाहर गर्मी में लू के कारण गिर पड़ा है, कुछ बड़बड़ा रहा है, जुबान लड़खड़ा रही है, तो उसकी मदद करें. इसके लिए गर्दन के नीचे, बर्फ रखे और मरीज को पंखे में बिठाएं ताकि बॉडी टेंपरेचर कुछ कम हो सके.
डॉक्टर अजय चौहान ने बताया कि इस दौरान 30 से 50-55 की उम्र के लोग अस्पताल में ज्यादा आ रहे हैंय ये वो लोग हैं जो जो बाहर मजदूरी करते हैं, ठेला लगाते हैं, सिक्योरिटी गार्ड हैं. अपनी आजीविका चलाने के लिए इन्हें धूप में भी मेहनत करनी पड़ती है.
गर्मी शरीर के इन अंगों पर डालती है असर
दिमाग
डॉ अजय बताते हैं कि गर्मी शरीर के कई अंगों पर असर डालती है. इसका असर दिमाग पर भी होता है. गर्मी और लू के कारण कंफ्यूजन, चिड़चिड़ापन, गफलत की स्थिति, मिर्गी जैसे दौरे भी पड़ सकते हैं, चलने में लड़खड़ाहट हो सकती है. व्यक्ति गिर भी सकता है, हाथ पैरों में कंपन, दिमाग की नसों में पैरालिसिस भी हो सकती है.
हार्ट
तेज गर्मी के कारण हार्ट रेट बढ़ सकता है. इस वजह से मायोकार्डियल डैमेज हो सकती है, इससे कार्डियक फेल हो सकता है. कभी-कभी लोग इसे हार्ट अटैक भी समझ लेते हैं, बाद में पता चलता है कि ये हीट स्ट्रोक की वजह से हुआ था. ऐसी स्थिति में जान जाने का खतरा काफी रहता है. लू लगने के बाद हार्ट की ये समस्या मौत का कारण बनती है.
पेट
पेट में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन हो सकता हैं. इसमें डायरिया हो जाता है. कुछ लोगों को पीलिया भी हो सकता है, लिवर पर भी गंभीर असर पड़ता है और इसके एंजाइम डैमेज हो सकते हैं. इससे मसल डैमेज भी बहुत होता है, अगर ऐसा होता है तो किडनी खराब होने की आशंका बढ़ जाती है.
आरएमएल हॉस्पिटल में बनाया गया हीट स्ट्रोक वार्ड
आरएमएल हॉस्पिटल की सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सीमा वासनिक का कहना है कि हीट स्ट्रोक के मरीज का टेंपरेचर इंजेक्शन या दवाइयों से ठीक नहीं होता है, उसे कूल डाउन करना पड़ता है। ऐसे मरीज को जितना जल्दी हो सकते तुरंत अस्पताल में लेकर आएं.
सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सीमा वासनिक का कहना है कि हीट स्ट्रोक के मरीजों के इलाज के लिए आरएमएल अस्पताल में हीट स्ट्रोक वार्ड बनाया गया है. इसमें एक हीट स्ट्रोक रूम है, जिसमें दो सिरेमिक टब लगे हैं और दो वेंटिलेटर वाले बेड हैं। बेड के ऊपर भी टब है. सिरेमिक टब में 6 फुट का इंसान आ सकता है. अगर उसका बुखार 102 के ऊपर है तो उसका टेंपरेचर नीचे लाने के लिए कोल्ड इमर्शन टब में रखा जाता हैं। इसमें आधे घंटे से लेकर 40 मिनट तक पेशेंट को रखा जाता है।
डॉक्टर सीमा का कहना है कि अगर मरीज का टेंपरेचर 104, 105, 106 डिग्री फारेनहाइट है तो मरीज को 40 मिनट तक इस टब में रखा जाता है. इसके बाद जब टेंपरेचर 102 के नीचे आ जाता है तो उसे निकाल लेते हैं.
कौन कौन से मरीजों का इस तरह से किया जाता है इलाज
सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सीमा वासनिक ने बताया कि मरीज बेहोशी की हालत में भी आ सकता है, उसे हार्ट की प्रॉब्लम हो सकती है, इसमें पल्स रेट इरेगुलर हो सकती है, इलेक्ट्रोलाइट इंबैलेंस हो सकता है, डिहाइड्रेशन, शॉक और सीवियर हीट स्ट्रोक में पेशेंट को ब्लीडिंग डिसऑर्डर भी हो सकता है. ऐसा पेशेंट जब आता है तो जल्दी से जल्दी डायग्नोज किया जाता है. इसमें हम देखते हैं कि पेशेंट हीट स्ट्रोक से पीड़ित है कि नहीं. अगर पेशेंट ज्यादा क्रिटिकल है तो उसे तुरंत वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होती है. जितना जल्दी हो सके उसका टेंपरेचर उतारना होता है. इसके लिए मरीज को कोल्ड इमर्शन टब में चादर में लपेटकर रखते हैं.