देश ही नहीं, दुनिया भर में होली का जश्न शुरू हो गया है. गुरुवार को समूचे देश में पूरे विधि विधान के साथ बुराई की प्रतीक होलिका का दहन होगा. इस दौरान भगवान नारायण की पूजा होगी. इसी के साथ रंगों की होली का दौर शुरू हो जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार होलिका दहन कब और कहां हुआ? यदि नहीं तो इस प्रसंग में हम आपको बताने जा रहे हैं. वो जगह है बिहार का पूर्णिया. इस पूर्णिया में आज भी वो स्थान मौजूद है, जहां भक्तराज प्रहलाद के आह्वान पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे. यही वो स्थान है जहां प्रहलाद की बुआ होलिका का दहन हुआ था.

यह प्रसंग श्रीमद भागवत और स्कंद पुराण में मिलता है. श्रीमद भागवत में भगवान के अवतार वाले प्रसंग में कथा आती है कि असुर राज हिरण्यकश्यपु ने अपने बेटे भक्त राज प्रहलाद को भगवान नारायण से बैर रखने के लिए खूब समझाया, लेकिन प्रहलाद ने इसे स्वीकार नहीं किया. परेशान होकर हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर चिता में आग लग दी. चूंकि होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, इसलिए सबको ऐसा लगने लगा कि अब प्रहलाद का अंत हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. चिता की आग में खुद होलिका जल गई और भक्तराज सुरक्षित बच गए.

प्रहलाद के आह्वान पर अवतरित हुए भगवान नारायण

तभी से प्रतिवर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर देश भर में होलिका दहन की परंपरा चल पड़ी. जिस स्थान पर होलिका की चिता जली थी, वह स्थान बिहार में पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में है. यही वह स्थान भी है जहां प्रहलाद के आह्वान पर भगवान नारायण नरसिंह के रूप में अवतरित हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया था. जिस खंभे से भगवान नरसिंग प्रकट हुए, उस खंभे का अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं. यहां पर हिरण्यकश्यपु के महल का अवशेष भी है. होली के मौके पर यहां हर साल राजकीय समारोह होता है और विशाल होलिका दहन का कार्यक्रम किया जाता है. इस मौके पर कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम भी यहां आयोजित किए जाते हैं.

1911 में प्रकाशित गजेटियर में इसका उल्लेख

यहां मौजूद उस खंभे की अवशेष की चर्चा ब्रिटेन से प्रकाशित पत्र क्विक पेजेज द फ्रेंडशिप इनसाक्लोपिडिया में भी हुई. इसके अलावा 1911 में प्रकाशित गजेटियर में इसका उल्लेख मिलता है. इसमें इसे मणिक खंभ कहा गया है. पूर्णिया जिला मुख्यालय से करीब 32 किलोमीटर की दूर एनएच 107 के किनारे बनमनखी अनुमंडल के धरहरा स्थित सिकलीगढ़ में मौजूद नरसिंह भगवान की अवतार स्थली है. यहां पर एक निश्चित कोण पर झुका हुआ खंभा है. स्तंभ का अधिकांश भाग जमीन के अंदर घुसा हुआ है और इसकी लंबाई तकरीबन 1411 इंच है. मिली जानकारी अनुसार प्रह्लाद स्तंभ के पास की गयी खुदाई में पुरातात्विक महत्व के सिक्के प्राप्त हुए थे. इसके बाद से ही स्थानीय प्रशासन ने इसके आस-पास खुदाई पर रोक लगा रखी है.