31 जनवरी को किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास ने एक बड़ा कदम उठाते हुए ममता कुलकर्णी और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को महामंडलेश्वर पद से हटा दिया। यह विवाद तब शुरू हुआ जब ममता कुलकर्णी को महाकुंभ में 24 जनवरी को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई और उनका नया नाम ‘श्री यामाई ममता नंदिनी गिरी’ रखा गया। ममता कुलकर्णी, जो एक अभिनेत्री रह चुकी हैं, को किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर बनाने पर कई साधु-संतों और अन्य अखाड़ों ने आपत्ति जताई। किन्नर अखाड़े के संस्थापक अजय दास ने यह आरोप लगाया कि ममता कुलकर्णी का फिल्मी बैकग्राउंड और उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप इस पद के लिए उचित नहीं हैं। अजय दास के अनुसार, किन्नर अखाड़े का महामंडलेश्वर पद एक ऐसे व्यक्ति के लिए होना चाहिए जो लंबे समय से आध्यात्मिक जीवन जीता हो और जो इस पद की परंपरा और सिद्धांतों को समझता हो।
अजय दास का बयान
ऋषि अजय दास ने किन्नर अखाड़े की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने ममता कुलकर्णी को बिना किसी धार्मिक परंपरा को मानते हुए महामंडलेश्वर पद दे दिया, जो किन्नर अखाड़े के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसलिए, मैंने उन्हें इस पद से मुक्त करने का फैसला लिया।” अजय दास का कहना था कि ममता कुलकर्णी को यह उपाधि बिना किसी वैराग्य के दी गई, जो किन्नर अखाड़े की परंपराओं के खिलाफ था।
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लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का पलटवार
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इस निर्णय पर पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि अजय दास को किन्नर अखाड़े से निकाल दिया गया है और अब उनका इस अखाड़े में कोई स्थान नहीं है। इसके अलावा, किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर मां पवित्रा नंद गिरी ने भी इस फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, “किसी को कीचड़ फेंककर महान बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जो जैसा है, वही रहेगा।”
ममता कुलकर्णी की प्रतिक्रिया
ममता कुलकर्णी ने इस पूरे विवाद पर अपनी सफाई दी है। उनका कहना था कि उन्होंने आध्यात्मिक जीवन में लंबे समय से विश्वास रखा है और उनका उद्देश्य समाज की सेवा करना है। वह यह भी कहती हैं कि किन्नर अखाड़े में उनकी नियुक्ति पर कोई सवाल नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि वह सालों से आध्यात्मिक साधना कर रही थीं।
संतों की राय
कई संतों का मानना है कि ऐसे प्रतिष्ठित पद के लिए व्यक्ति को वर्षों तक आध्यात्मिक अनुशासन और तपस्या करनी चाहिए। ममता कुलकर्णी को इतनी जल्दी महामंडलेश्वर का पद दिए जाने पर उनका विरोध इस बात को लेकर था कि इस पद पर आसीन होने के लिए पहले बहुत लंबा और गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण जरूरी होता है।
विवाद का राजनीतिक और धार्मिक असर
इस विवाद ने धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी हलचल मचा दी है। किन्नर अखाड़े की परंपराओं के उल्लंघन को लेकर अब कई सवाल उठने लगे हैं। इस मुद्दे ने यह भी साबित किया है कि धार्मिक संस्थाओं में पदों की नियुक्ति को लेकर आंतरिक राजनीति और सिद्धांतों के बीच टकराव होता रहता है।