उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (SP) के साथ मिलकर कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को करारी मात दी थी, लेकिन अब दोनों ही दलों के बीच सियासी तनाव बढ़ता जा रहा है. सपा ने दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) को समर्थन करने का फैसला किया तो कांग्रेस मिशन-2027 के लिए यूपी में अपने दम पर खड़े होने की कवायद में जुट गई है. कांग्रेस ने अपने यूपी संगठन को बूथ से लेक, ब्लॉक, शहर, जिला और प्रदेश स्तर तक ओवरहालिंग कर उसे नए तरीके से अमलीजामा पहनाने की एक्सरसाइज कर ली है.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यूपी कांग्रेस की प्रदेश, जिला, शहर और ब्लॉक कमेटियों को भंग कर दिया था, जिसके एक महीने बाद नए तरीके से संगठन को बनाने का काम शुरू किया गया है. छह जनवरी से 12 जनवरी तक संगठन सृजन की कवायद की गई. यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, जिनमें यूपी के प्रभारी अविनाश पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष अजय राय, केएल शर्मा और सभी छह जोन के सह प्रभारी ने लखनऊ में डेरा जमाकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से अलग-अलग मुलाकात की.

UP में संगठन के पुनर्निर्माण पर ध्यान

पार्टी ने अपने उद्देश्य ‘अतीत की नींव पर भविष्य का निर्माण’ के आधार पर उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न स्तरों पर नई टीमों का हिस्सा बनने के इच्छुक नेताओं के साथ मंथन किया. कांग्रेस ने यूपी को छह जोन में बांट रखा है, जिसमें अवध, पूर्वी यूपी, पश्चिमी यूपी, प्रयागराज, ब्रज और बुंदेलखंड तथा कानपुर शामिल है.

सभी जोन प्रभारियों ने अपने-अपने क्षेत्र वाले जिलों में पहले बैठक की फिर उसके बाद प्रदेश कार्यालय में बैठक की गई. ऐसे में राज्य के 75 जिलों और 58 शहरी इकाइयों का गठन होना है.

राहुल गांधी के रायबरेली से सांसद चुने जाने के बाद से उनका पूरा फोकस यूपी पर है तो प्रियंका गांधी की नजर भी यूपी पर ही टिकी हुई है. पिछले दिनों प्रियंका गांधी ने दिल्ली में यूपी कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक कर संगठन को नए तरीके से बनाने का हुनर दिया था.

उन्होंने साफ-साफ शब्दों में संदेश दिया था कि संगठन में सभी स्तर पर जमीनी स्तर के नेताओं को जगह देनी है, जिसके पार्टी को नए तरीके से खड़ा किया जा सके. साथ ही प्रियंका ने कहा था कि संगठन में दलित, ओबीसी और मुस्लिम को लोगों की अच्छी खासी भागीदारी देनी है.

राहुल-प्रियंका के फरमान के बाद काम शुरू

राहुल-प्रियंका के फरमान के बाद ही संगठन सृजन का काम शुरू किया गया, लेकिन अविनाश पांडेय एक-एक दिन में कई जिलों की बैठकें कर रहे थे. इस तरह से एक जिले को 15 से 20 मिनट की बैठक में फाइनल कर रहे थे, लेकिन इसे लेकर तमाम तरह से सवाल उठने लगे हैं. एक दिन में एक जोन के सभी जिलों के नेताओं के साथ बैठक की जा रही थी.

हालांकि, प्रदेश के जोनल प्रभारियों ने अलग से अपना पैनल संगठन के लिए बना रखा है. प्रदेश मुख्यालय पर एक सप्ताह चली मैराथन बैठक के बाद जो नाम प्रदेश कमेटी फाइनल करेगी, उसे जोनल प्रभारी के साथ हुई बैठक के साथ मिलाप किया जाएगा. उसके बाद ही नाम के संगठन का ऐलान किया जाएगा, लेकिन उससे पहले प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की मंजूरी जरूरी है.

कांग्रेस की सत्ता में वापसी की ललक

दरअसल, कांग्रेस यूपी में साढ़े तीन दशक से सत्ता से बाहर है और अपनी वापसी के लिए बेताब है. कांग्रेस यूपी संगठन में अपने खोए हुए सियासी आधार को पाने की कवायद में है, जिसके लिए वह संगठन को दोबारा से खड़ा करना चाहती है. कांग्रेस ने यह कदम इंडिया गठबंधन की सहयोगी सपा के साथ बिगड़ते संबधों को चलते लिया है. 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. राज्य की 80 सीटों में से 43 (सपा की 37 और कांग्रेस की 6) सीटें दोनों ने जीता था, जबकि एनडीए को 36 (बीजेपी की 33) सीटें ही मिल सकी थी.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि यूपी संगठन को 100 दिनों के भीतर तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है. राहुल गांधी जिस सामाजिक न्याय की लड़ाई को लड़ रहे हैं, उसके चलते पार्टी ने संगठन में दलित और ओबीसी को खास तवज्जो देने की स्ट्रैटेजी बनाई गई है. पिछले कई दिनों से लखनऊ कांग्रेस के मुख्यालय में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की लंबी बैठक चली हैं और पार्टी के फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे. संगठन की मजबूती के लिए मौजूदा कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से लेकर नए और पुराने कांग्रेसी जनों का मिलाजुला रूप होगा.

जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने की चुनौती

कांग्रेस की योजना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में वह उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर अपनी तैयारी करें, इसके मद्देनजर जमीनी स्तर पर संगठन की मजबूती जरूरी है. हर विधानसभा पर बूथ स्तर तक अपने लोगों को तैयार कर रहे हैं.

ऐसे में कांग्रेस संगठन के जरिए एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग भी बनाना चाहती है, जिसके लिए संगठन में बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक दलित, ओबीसी और मुस्लिमों को खास जगह देने की स्ट्रैटेजी बनाई गई है. हालांकि, पार्टी का एक धड़ा पुराने मॉडल पर ही कांग्रेस संगठन बनाने का जोर दे रहा है, लेकिन प्रदेश में पार्टी के दलित और ओबीसी नेता उस पर तैयार नहीं है.