महाकुंभ एक ऐसा जमघट है, जो हिंदू धर्म और लोगों की आस्था का प्रतीक है. महाकुंभ में नागा साधुओं का स्नान सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है. हर बार नागा साधु महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बनते हैं और पहला शादी स्नान का अधिकार नागा साधुओं को दिया गया है. पुरुषों की तरह ही महिला भी नागा साधु बनती हैं, जिनके जीवन और उनकी तपस्या के बारे में लोग जानना चाहते हैं. लेकिन महिला नागा साधु बनना बेहद कठिन होता है, इसके लिए महिला को बहुत सी चुनौतियां और नियमों का पालन करना पड़ता है. आइए आपको महिलना साधु के जीवन से जुड़ी कुछ बाते बताते हैं.

महिला नागा साधु बनने की शर्तें

महिला को नागा साधु बनने के लिए हमेशा ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. ब्रह्मचर्य की परीक्षा 6 से 12 साल तक हो सकती है.

इन 6 से 12 साल के दौरान अखाड़ा समिति यह तय करती है कि वह महिला साधु बनने लायक है या नहीं.

महिला नागा साधुओं को 5 गुरुओं से दीक्षा लेनी होती है, इसके लिए उन्हें कई प्रयास करने होते हैं.

नागा साधु कभी किसी भी मौसम में वस्त्र नहीं पहन सकते, लेकिन महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की इजाजत नहीं है.

महिला नागा साधुओं को हमेशा गेरुए रंग का एक कपड़ा पहनना होता है, जिसे गंती कहते हैं और माथे पर तिलक लगाना होता है.

महिला को नागा साधु बनने के लिए अपना सिर भी मुंडवाना होता है. साथ ही, जीवित रहने के बावजूद अपना ही पिंडदान करना होता है.

महिला नागा साधु बनने के लिए शिव की घोर तपस्या करनी होती है और यह तपस्या अग्नि के सामने बैठकर की जाती है.

महिला नागा साधुओं को भी सांसारिक जीवन और बंधनों को त्यागना होता है. वह साधु बनेंगी या नहीं यह अखाड़ा समिति तय करती है.

महिला नागा साधुओं को रोजाना कठिन साधना करनी होती है. उन्हें सुबह उठकर नदी में स्नान करना होता है, फिर चाहे ठंड ही क्यों न हो.

रोजाना करना होते हैं ये काम

महिला नागा साधुओं के लिए तपस्या बहुत जरूरी है. उन्हें अग्नि के सामने बैठकर हमेशा शिवजी की तपस्या करनी होती है. महिला नागा साध्वी को जंगलों में या अखाड़ों में रहना पड़ता हैं. महिला नागा साधुओं को सबसे पहले अखाड़ा समिति को अपने पिछले जीवन की जानकारी देनी होती है. महिला नागा साधुओं को भी अपने शरीर में भस्म लगानी होती है. दशनाम सन्यासिनी अखाड़ा महिला नागा साधुओं का गढ़ माना जाता है और इस अखाड़े में सबसे ज्यादा नागा साधु होती हैं.

जूना संन्यासिन अखाड़ा में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से इस अखाड़े में शामिल हैं. नेपाल में ऊंची जाति की विधवा महिलाओं के दोबारा शादी करने पर समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता है. ऐसे में ये विधवा महिलाएं अपने घर लौटने की बजाए साधु बन जाती हैं.