संविधान पर चर्चा के दौरान अमित शाह के द्वारा डा. आंबेडकर पर दिए गए बयान को लेकर आम आदमी पार्टी के संयोजक और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल की कोशिश सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक बीजेपी को दलित विरोधी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश है, जिसके लिए सिर्फ आंबेडकर के अपमान का ही मुद्दा नहीं उठा रहे है बल्कि दलित समुदाय के हक में लिए भी कदम उठा रहे हैं.
दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर अरविंद केजरीवाल पूरी तरह एक्टिव हैं. केजरीवाल के सियासी इतिहास में सबसे मुश्किल भरा चुनाव है. ऐसे में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल कोई भी सियासी मौका नहीं गंवाना चाहते हैं. इसीलिए अमित शाह के संसद में दिए भाषण में से सिर्फ 12 सेकेंड के वीडियो को लेकर केजरीवाल आरपार के मूड में उतर चुके हैं. इसके लिए उन्होंने बीजेपी के दो अहम सहयोगी दलों को खत तक लिख दिया और मोदी सरकार को समर्थन देने के लिए विचार करने की बात कह दी. इस तरह दलित समुदाय को सीधे संदेश देने का दांव केजरीवाल चल रहे हैं.
दिल्ली की सियासत में दलित सियासत
दिल्ली में 17 फीसदी वोटर दलित समुदाय का है, जिनके लिए राज्य की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें सुरक्षित हैं. हालांकि, दलितों का प्रभाव इन 12 सीटों से भी ज्यादा सीटों पर है. उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सुल्तानपुरी विधानसभा क्षेत्र में 44 प्रतिशत मतदाता दलित हैं. इसके ठीक बगल में करोल बाग है, जहां लगभग 38 फीसदी मतदाता दलित समुदाय हैं. पटेल नगर, गोकलपुर, सीमापुरी, मंगोलपुरी, मोतीनगर, त्रिलोकपुरी और आंबेडकर नगर जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक में 30 प्रतिशत से अधिक दलित निवासी हैं. इसके अलावा दिल्ली कैंट सीट पर 16 फीसदी, राजेंद्र नगर में 22 फीसदी, कस्तूरबा नगर में 11 फीसदी, मालवीय नगर में 10 फीसदी, आरके पुरम में 15 और ग्रेटर कैलाश में 10 फीसदी आबादी दलित समुदाय की है.
दिल्ली में दलित उपजातियों में बंटा हुआ
दलित समुदाय दिल्ली में अलग-अलग उपजातियों में बंटा हुआ है. जाटव, बाल्मिकि, खटीक, निषाद, रैगर, कोली, बैरवा और धोबी जैसी कई उपजातियां हैं. प्रत्येक की अलग-अलग सांस्कृतिक पहचान और क्षेत्रीय प्रभुत्व है, लेकिन सबसे बड़ी आबादी जाटव समाज की है और फिर बाल्मिकी समुदाय की. दिल्ली की कुल दलित आबादी में करीब 50 फीसदी जाटव समाज के हैं, जो सियासी तौर पर दूसरी दलित जातियों से भी ज्यादा जागरुक माने जाते हैं.
बाबा साहेब आंबेडकर का प्रभाव विशेष रूप से जाटवों के बीच गहरा है, जो शहरी क्षेत्रों में प्रमुख होने के अलावा, दिल्ली के ग्रामीण परिदृश्य में भी एक मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं. इसीलिए आम आदमी पार्टी ने अमित शाह के बयान को लेकर सबसे ज्यादा मुखर नजर आ रहे. ऐसे में माना जा रहा कि शाह के बयान के बहाने केजरीवाल दलित समाज के वोटों को अपने पक्ष में एकजुट रखने की रणनीति है, जिसके लिए एक के बाद एक बड़ा सियासी दांव चल रहे हैं.
केजरीवाल का दलित वोटों पर नजर
राजनीतिक विश्लेषक की माने तो अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से अमित शाह के बयान को लेकर आक्रमक रुख अपना रखा है, उसके पीछे दलित वोटों को जोड़े रखने की रणनीति है. लोकसभा चुनाव में दलित वोटों का झुकाव बीजेपी की तरफ दिखा था, जिसके चलते केजरीवाल कुछ ज्यादा ही सतर्क है और उनके विश्वास को जीतने के लिए कोई भी मौका नहीं गंवाना चाहते हैं. इसीलिए संसद में अमित शाह ने जिस दिन बयान दिया, उसी दिन से केजरीवाल एक्टिव हैं
बिहार के सीएम नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू को खत तक लिखकर बीजेपी के अगुवाई वाली केंद्र समर्थन पर विचार करने की बात कही. नीतीश-नायडू दोनों के समर्थन से ही मोदी सरकार 2024 में बनी है. इसके बाद दिल्ली के बाल्मिकी मंदिर में जाकर माथा टेका और दलित समुदाय को सियासी संदेश देने की कवायद की. इतना ही नहीं दलित समाज का विश्वास जीतने के लिए अरविंद केजरीवाल ने ‘आंबेडकर स्कॉलरशिप’ की घोषणा किया. उन्होंने कहा कि दिल्ली में दलित समाज का कोई भी बच्चा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दुनिया के किसी भी कॉलेज में जाना चाहेगा (और एडमिशन सिक्योर करेगा), तो दिल्ली सरकार पूरा खर्च उठाएगी. उन्होंने कहा कि दिल्ली में दलित समाज शिक्षा के वंचित नहीं रहेगा.
दलित वोटों में सेंधमारी की कवायद
दिल्ली में लंबे समय तक दलित समाज कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था, जिसके सहारे 1998 से लेकर 2013 तक कांग्रेस लगातार सत्ता पर काबिज रही. कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने और अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक उदभव के साथ ही दलित समाज आम आदमी पार्टी का कोर वोटबैंक बन गया. 2013 से लेकर अभी तक दलित समाज का बड़ा तबका केजरीवाल के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन एमसीडी और 2024 के लोकसभा चुनाव में इस वोटबैंक में बीजेपी सेंधमारी करने में कवायद में है तो कांग्रेस भी अपने साथ दोबारा से जोड़ने की है.
बीजेपी के लिए ऐसी विधानसभा सीटों पर प्रदर्शन को बेहतर करने की चुनौती है, जहां पर दलितों वोटर निर्णायक हैं. बीजेपी दलित समुदाय के वोटों को लामबंद करने की कवायद में है, क्योंकि उसे पता है कि उसके बिना दिल्ली की सत्ता का ख्वाब पूरी हो सकता है. बीजेपी विधानसभा के चुनावी नतीजों को आकार देने में दलित मतदाताओं की अहम भूमिका को पहचानती है, इसलिए वह अपने पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिए इस समुदाय पर खास ध्यान केंद्रित कर रही है.
दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए बीजेपी झुग्गी बस्तियों और जेजे कॉलोनियों को लक्षित कर लगातार कार्यक्रमों और डोर-टू-डोर कैंपेन कर कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है. यह रणनीति इन समुदायों से सीधे जुड़ने, उनकी चिंताओं को दूर करने और बीजेपी को आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए एक विकल्प के रूप में पेश करने की रणनीति है. यही वजह है कि केजरीवाल ने आंबेडकर पर अमित शाह के बयान को लेकर बीजेपी को दलित विरोधी कठघरे में खड़े करने की है, देखना है कि इस रणनीति में कितना सफल होते हैं.