ग्वालियर। प्रथम स्वाधीनता संग्राम की महानायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लोहा लेते हुए जब ग्वालियर पहुंचीं तो उनकी सेना के पास रसद नहीं रह गई थी। सैनिकों को पांच माह से वेतन भी नहीं मिल सका था। ऐसी स्थिति में सिंधिया राजघराने के कोषाध्यक्ष अमरचंद बाठिया ने उनके लिए न सिर्फ खजाने के द्वार खोल दिए थे, बल्कि स्वयं भी आर्थिक सहयोग किया। इसके लिए सजा बतौर अंग्रेज अफसरों ने 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान हो जाने के चार दिन बाद 22 जून को अमरचंद बाठिया को सराफा बाजार के नीम के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था।

लोगों में खौफ पैदा करने के लिए दो दिन तक अमरचंद बाठिया का शव पेड़ से नहीं उतारा गया। अपने पूर्वज के इस बलिदान का जिक्र अमरचंद बाठिया के वंशज मनोज बाठिया आज बेहद गर्व और गौरव के साथ करते हैं। उनके परिवार की पांचवी पीढ़ी आज भी सराफा बाजार के पास दानाओली में रहती है और हर वर्ष 22 जून को अपने पूर्वज के स्मारक पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित करती है।

बीकानेर से पूरा समाज लेकर आए थे बाठिया

    • वीर अमरचंद वाठिया की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य मनोज बाठिया बताते हैं कि बीकानेर में सूखा और अकाल पड़ने पर वहां से बाठिया समाज अमरचंद के नेतृत्व में सिंधिया स्टेट ग्वालियर आया था। वे अपने साथ भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा लेकर आए और उसे सराफा बाजार में विराजित कर अपना पुश्तैनी काम-धंधा शुरू किया। अमरचंद धर्मपरायण होने के साथ-साथ सोने-चांदी व हीरे जवाहरात के बड़े पारखी थे, इसकी ख्याति महल तक पहुंची।
    • तत्कालीन सिंधिया शासक ने उन्हें मध्यभारत प्रांत के सबसे बड़े कोषालय गीतांजलि ट्रस्ट का प्रमुख कोषाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इसी बीच प्रथम स्वाधीनता संग्राम शुरू हो गया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ती हुई ग्वालियर पहुंचीं।
    • उनकी सेना के पास तो आगे लड़ने के लिए रसद नहीं थी और कुछ माह से सैनिकों को वेतन भी नहीं मिला था। 17 दिन तक उनका ग्वालियर स्टेट पर डेरा रहा। वीरांगना के राष्ट्रप्रेम से प्रभावित होकर अमरचंद वाठिया ने राजकोष के दरवाजे रानी की सेना के लिए खोल दिए और अपनी धन-संपदा भी उन्हें समर्पित कर दी।

अंग्रेजों ने तीन स्थानों पर फांसी पर लटकाया

    • रानी की सेना के लिए राजकोष को खोलने की बात अंग्रेज अफसरों तक पहुंच गई। तत्काल अमरचंद बाठिया को अंग्रेजी सेना ने बंधक बनाकर फांसी पर लटकाने का हुकूम दे दिया। इसके साथ ही बाठिया को ऐसे सार्वजनिक स्थान पर फांसी दिए जाने का आदेश हुआ, जहां पूरा शहर देखे ताकि सब खौफ में आ जाएं और कोई भी फिर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई कदम न उठाने पाए।
    • 22 जून को पहले उन्हें महाराज बाड़े पर फांसी देने का प्रयास किया, यहां पेड़ की डाल टूट गई। उसके बाद उन्हें टोपी बाजार के पेड़ पर फांसी देने का प्रयास किया गया, यहां रस्सी टूट गई। इसके बाद सराफा बाजार के मध्य में स्थित नीम के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया।
    • अंग्रेजों ने दो दिन तक उनकी पार्थिव देह को नीम के पेड़ पर लटका रहने दिया, जिससे राष्ट्रभक्तों के मन में दहशत पैदा हो। सराफा बाजार में यह नीम का पेड़ आज भी है।
  • इसी पेड़ के नीचे अमर बलिदानी अमर चंद बाठिया की स्मारक है। जहां उनके बलिदान दिवस पर शहरवासी श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।