भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के 77 साल बाद, 92 वर्षीय खुर्शीद अहमद ने अपने पुश्तैनी गांव मचरवां (गुरदासपुर) का दौरा किया। यह उनकी ज़िंदगी का एक भावुक और यादगार पल था, जो बचपन की यादों और गांव के बदलावों से भरपूर था। खुर्शीद अहमद मंगलवार को पाकिस्तान के नकाना साहिब जिले के बलेर गांव से भारत आए। जब वह मचरवां पहुंचे, तो उनकी आंखें भर आईं। उन्होंने कहा, “पिंड ते बड़ी तरक्की कर गया है” (गांव ने बहुत तरक्की कर ली है)। जब उनके मेज़बान गुरप्रीत सिंह ने पानी का गिलास पेश किया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “एह पानी नहीं, एह तां दूध तो वधिया है” (यह पानी नहीं, यह तो दूध से भी बेहतर है)।
हालांकि उम्र के कारण खुर्शीद अहमद अब कमजोर हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने बचपन की यादों को बेहद स्पष्टता से साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे वह गांव के छप्पड़ (तालाब) में खेला करते थे और खेतों में मवेशी चराते थे। वह भावुक होकर अपनी पुरानी जिंदगी को याद करते हुए बोले, “कल पिंड घूमना है सारा” (कल पूरे गांव का चक्कर लगाऊंगा)। खुर्शीद अहमद का यह दौरा तब संभव हुआ, जब उनके मेज़बान गुरप्रीत के भाई करमजीत सिंह नम्बरदार ने ननकाना साहिब में तीर्थयात्रा के दौरान खुर्शीद से मुलाकात की। दोनों ने अपने साझा अतीत की यादें साझा कीं, जिससे खुर्शीद को अपने पुश्तैनी गांव लौटने की प्रेरणा मिली। खबर मिलते ही गांव के लोग उन्हें देखने और स्वागत करने के लिए इकट्ठा हो गए।
सभी ने उन्हें माला पहनाई और सम्मान के साथ उनका स्वागत किया। खुर्शीद के लौटने पर उनकी खुशी देखते ही बनती थी। खुर्शीद अहमद अपने पोते के साथ भारत आए। उनके पोते ने भारत-पाकिस्तान अटारी सीमा पर उनसे मुलाकात की। फिलहाल वह 45 दिनों के वीजा पर भारत आए हैं, लेकिन उनकी सेहत को देखते हुए वह लगभग एक सप्ताह के भीतर पाकिस्तान लौट सकते हैं। खुर्शीद ने जिन खेतों में बचपन में मवेशी चराए थे, अब वे गुरप्रीत सिंह के परिवार के स्वामित्व में हैं। इसके बावजूद, खुर्शीद ने पुराने दिनों को याद करते हुए खुशी और संतोष व्यक्त किया। यह यात्रा उनके लिए सिर्फ अपने गांव का दौरा नहीं थी, बल्कि बंटवारे के दर्द और पुरानी यादों को फिर से जीने का एक मौका थी। उनके गांव आने ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे गांव को भावुक कर दिया।