प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. याचिका में एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना समेत तीन जजों की बेंच में मामले की सुनवाई कर रही है. मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि मामला सब ज्यूडीश है. जब तक हम मामले की सुनवाई और निस्तारण नहीं कर देते, तब तक कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता. हमारे पास राम जन्मभूमि केस भी है.

  • सीजेआई ने कहा कि मामला सब ज्यूडीश है. जब तक हम मामले की सुनवाई और निस्तारण नहीं कर देते, तब तक कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता. हमारे पास राम जन्मभूमि केस भी है. CJI ने कहा जो भी मामले दर्ज हैं, वो चलते रहेंगे. वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि लेकिन जो भी मामले चल रहे है. फिलहाल कार्यवाही पर रोक लगाने की जरूरत है. सर्वेक्षण के आदेश दिए जा रहे हैं. सीजेआई ने कहा कि ऐसे कितने मुकदमे लंबित हैं? दो शॉट्स के बारे में मुझे पता है, एक मथुरा और. एसजी ने कहा कि क्या कोई अजनबी, जो मामले में पक्षकार नहीं है, आकर कह सकता है कि सभी कार्यवाही रोक दी जाए. वही वह सवाल है.
  • प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रहा है.याचिका में उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई है. सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि हमारे पूछे बिना कोई नहीं बोलेगा. केंद्र को हलफनामा दाखिल करना होगा. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि हां, हमें इसकी आवश्यकता है. सीजेआई ने कहा कि कृपया जवाब दाखिल करें और इसे याचिकाकर्ताओं और उत्तरदाताओं को दें. आपके द्वारा इंटरनेट पर ई-कॉपी अपलोड करने के बाद प्रस्तावक उत्तर देख सकते हैं.
  • प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है.

संबंधित कानून कहता है, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था. यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है.

इस संबंध में शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से एक याचिका अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. उन्होंने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धाराओं दो, तीन और चार को रद्द किए जाने का अनुरोध किया है. याचिका में दिए गए तर्कों में से एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं.

क्या तर्क दिया गया?

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड ने भी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर करके कहा है कि यह कानून देश की सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व, एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है.

इस मामले की सुनवाई विभिन्न अदालतों में दायर कई मुकदमों की पृष्ठभूमि में होगी, जिनमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद से संबंधित मुकदमे शामिल हैं. इन मामलों में दावा किया गया है कि इन स्थलों का निर्माण प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद किया गया था और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया गया है.

इनमें से अधिकतर मामलों में मुस्लिम पक्ष ने 1991 के कानून का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि ऐसे मुकदमे स्वीकार्य नहीं हैं. इस कानून के प्रावधानों के खिलाफ पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका सहित छह याचिकाएं दायर की गई हैं. स्वामी यह चाहते हैं कि शीर्ष अदालत कुछ प्रावधानों की फिर से व्याख्या करे ताकि हिंदू वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर दावा करने के लिए सक्षम हो सकें, वहीं उपाध्याय ने दावा किया कि पूरा कानून असंवैधानिक है और इस पर फिर से व्याख्या करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.