जालंधर: इस समय शहर के करीब एक लाख घरों के मालिक ऐसे हैं जो नगर निगम को प्रॉपर्टी टैक्स जमा नहीं करवा रहे हैं परंतु इसी दौरान संकेत मिल रहे हैं कि शहर के कई कमर्शियल बिल्डिंगों के मालिक भी प्रॉपर्टी टैक्स की चोरी में शामिल हो सकते हैं। ऐसी आशंका के मद्देनजर जालंधर निगम के प्रॉपर्टी टैक्स विभाग ने एक चैकिंग अभियान शुरू किया है जिसके तहत शहर सभी अस्पतालों, नर्सिंग होम्स, डैंटल और वैलनेस क्लीनिकों इत्यादि की साइट पर जाकर प्रॉपर्टी टैक्स से संबंधित दस्तावेजों की चैकिंग की जाएगी।

नगर निगम कमिश्नर गौतम जैन और ज्वाइंट कमिश्नर मैडम सुमनदीप कौर ने इस बाबत प्रॉपर्टी टैक्स विभाग के अधिकारियों को निर्देश दे दिए हैं और उनसे 27 नवम्बर तक सर्टिफिकेट मांग लिया गया है। दूसरी ओर सुपरिंटैंडैंट महीप सरीन और राजीव ऋषि के नेतृत्व में इन दिनों विभाग की टीम ने सीलिंग अभियान चला रखा है। आज इस टीम ने सलेमपुर क्षेत्र जाकर 15 दुकानों वाली एक मार्कीट सील कर दी और ट्रांसपोर्ट नगर में भी दो दुकानों को सील किया जिन्होंने टैक्स नहीं भरा था।

सेल्फ ऑक्यूपाइड का टैक्स भर रहे ज्यादातर बिल्डिंगों के मालिक
2013 में जब पंजाब में प्रॉपर्टी टैक्स सिस्टम लागू हुआ था तब उन कमर्शियल संस्थानों पर 7.50 प्रतिशत प्रॉपर्टी टैक्स लगाया गया था जिन्हें किराए पर चढ़ा दिया जाता है और यह टैक्स कुल वार्षिक किराए पर लागू होता है। दूसरी कैटेगरी में वह बिल्डिंगें आती हैं, जहां मालिक खुद अपना कारोबार करते हैं। इन बिल्डिंगों से 5 रुपए प्रति वर्ग फुट के हिसाब से प्रॉपर्टी टैक्स लिया जाता है जो किराए पर चढ़ी बिल्डिंगों से काफी कम होता है। अब प्रॉपर्टी टैक्स की चोरी करने के चक्कर में अक्सर बड़ी बड़ी बिल्डिंगों के मालिक और पैलेस मालिक उक्त बिल्डिंग या पैलेस को सेल्फ ऑक्यूपाइड बता देते हैं जबकि वास्तव में वह किराए या लीज़ इत्यादि पर चढ़े होते हैं। ऐसा करते समय किरायानामा निगम से छिपा लिया जाता है और सेल्फ ऑक्यूपाइड बिल्डिंग से संबंधित डेक्लेरेशन निगम को जमा करवाई जाती है।कहा जा रहा है कि अगर ऐसे संस्थानों की पिछले सालों की इंकम टैक्स रिटर्न की जांच हो तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है ।

सिर्फ रजिस्टर्ड किरायानामा स्वीकार करे निगम तो बढ़ सकता है टैक्स
इस समय शहर के कई बड़े बिल्डर किराएनामे को निगम से छिपा कर प्रॉपर्टी टैक्स की चोरी कर रहे हैं। इसका एकमात्र हल यही है कि अगर निगम प्रॉपर्टी टैक्स लेते समय सिर्फ रजिस्टर्ड किरायानामा ही स्वीकार करे तो भी यह टैक्स कई गुणा बढ़ सकता है। गौरतलब है कि इस समय कई बिल्डिंग मालिकों ने दो-दो किराएनामे बना रखे हैं। असल किराएनामे को तो रजिस्टर्ड करवा लिया जाता है परंतु अक्सर निगम को जो किरायानामा सौंपा जाता है या टैक्स रिकॉर्ड में भरा जाता है वह रजिस्टर्ड नहीं होता। इस कारण निगम को टैक्स भी कम प्राप्त होता है। अगर निगम भी रजिस्टर्ड किरायानामा लेने लगे तो दो किराएनामे नहीं बन सकेंगे क्योंकि ऐसा होने के बाद किराएदार कभी भी इस स्थिति का फायदा उठाने लग सकेगा।