जालंधर : शहर का प्रसिद्ध सर्राफा बाजार धनतेरस से जैसे ठहर-सा गया था जब खबर फैली कि एक व्यक्ति सोना लेकर गायब हो गया है। इस घटना के बाद कई छोटे ज्वैलर भी बाजार से गायब हो गए हैं। यह गायब हुए लोग सर्राफा बाजार में पिछले 10 से 15 वर्षों से बड़े बड़े ज्वैलर व्यापारियों के साथ काम करते थे। वह सिर्फ एक साधारण कर्मचारी नहीं थे बल्कि कई व्यापारियों के भरोसेमंद थे। जिस दिन से सोने के गायब होने की सूचना मिली तभी से एक-एक करके मार्कीट में काम करने वाले छोटे-छोटे ज्वैलर भी गायब होने शुरू हो गए।

अब थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी बाजार में अचानक से खामौशी छा गई थी। जिन ज्वैलरों ने चोरी का आरोप लगाया और पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई, वही अब चुप हो गए थे। इसके बाद कई तरह के सवाल उठने लगे कि क्या सही में चोरी हुई थी या टैक्स चोरी से मामला जुड़ा था?

व्यापारियों का मानना था कि गायब होने वाला ज्वैलर पूरी ईमानदारी के साथ काम कर रहा था, लेकिन उसकी अचानक गायब होने से स्तब्ध थे। हालांकि यह भी बात सामने आई कि उक्त व्यक्ति बाजार में व्यापारियों के साथ मिलकर सोने की ‘कमेटी’ भी चलाता था। इसमें हर महीने व्यापारियों द्वारा एक निश्चित राशि का योगदान दिया जाता था और बाद में हर सदस्य अपनी बारी आने पर 600 से 700 ग्राम सोना प्राप्त करता था। अब सोने की चोरी, कमेटी और गुप्त अवैध कारोबार के रहस्य सर्राफा बाजार कारोबारियों में उलझाए हुए है।

बिना जी.एस.टी. बिल के कच्चा माल कारोबार

सूत्रों का कहना है कि सर्राफा बाजार में अधिकतर कारोबार बिना जी.एस.टी. बिल के हो रहा था। व्यापारियों के बीच कच्चे माल में लेन-देन करना आम बात थी। सोने की डली और बिस्किट, जिन्हें कच्चे माल के रूप में बेचा जाता है पर जी.एस.टी. का भुगतान नहीं किया जाता था ताकि टैक्स की बचत की जा सके। इस व्यवस्था में कई व्यापारियों ने बड़े पैमाने पर सोना बिना किसी सरकारी रिकॉर्ड के एकत्रित किया हुआ था। इस प्रकार के लेन-देन में नकदी में होता है।

सर्राफा बाजार में हुई इस सोने की चोरी की घटना में हेरफेर और गोलमाल दिख रहा है। बिना जी.एस.टी. बिल वाले सोने का यह मामला शायद बीमा और टैक्स अधिकारियों से बचने के लिए रचा गया हो। अब थाने में पर्चा दर्ज होने के बाद पुलिस की भूमिका अहम है क्योंकि वही जांच के बाद दूध का दूध पानी का पानी कर सकती है।

कमेटी के पैसे हड़पने की योजना

यह संभावना जताई जा रही है कि उक्त व्यक्ति ने सोने की कमेटी में जमा हुई भारी रकम पर अपनी बारी आने का फायदा उठाया और इसी के साथ सोना लेकर भाग गया। यदि यह कमेटी इसका हिसाब-किताब रखती तो शायद यह चोरी न होती। अब व्यापारियों ने मामले को सार्वजनिक करने के बजाय इसे दबाना उचित समझा लगता है, क्योंकि इससे उनकी वित्तीय स्थिति और काले धन का खुलासा हो सकता था।