उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की उंगलियों पर लगी स्याही अभी सुखी भी नहीं है कि उपचुनाव की सियासी हलचल तेज हो गई है. सूबे की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. लोकसभा चुनाव में मिली हार का हिसाब बीजेपी उपचुनाव में करना चाहती है, जिसके लिए उनके सिपहसलारों ने मोर्चा संभाल लिया है. ऐसे में सबसे ज्यादा साख सपा प्रमुख अखिलेश यादव की दांव पर लगी है, क्योंकि दस में से पांच सीटें सपा विधायकों के इस्तीफे के बाद खाली हुई हैं. लोकसभा चुनाव में मिली जीत से जो सियासी माहौल बना है, उसे भी बरकरार रखने की चुनौती सपा के सामने उपचुनाव में है?
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे गहरा जख्म सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने देने का काम किया है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी 62 लोकसभा सीटों से घटकर 33 सीट पर आ गई है तो सपा पांच से बढ़कर 37 सीट पर पहुंच गई. अखिलेश यादव सहित सपा के चार विधायक 2024 में सांसद बनने में कामयाब रहे हैं, जिसके चलते ही उनकी सीटें खाली हुई हैं. इसके अलावा सपा विधायक इरफान सोलंकी को सजा होने के चलते उनकी सीट खाली हुई है. इस तरह सूबे की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में पांच सीट सपा के खाते से हैं. इसके अलावा तीन सीटें बीजेपी के विधायकों के इस्तीफे से रिक्त हुई हैं तो एक-एक सीट आरएलडी और निषाद पार्टी के विधायक के सांसद चुने जाने की वजह से खाली हुई हैं.
UP की इन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव
उत्तर प्रदेश की जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उसमें सपा विधायकों के इस्तीफे से खाली होने वाली करहल, सीसामऊ, मिल्कीपुर, कटेहरी और कुंदरकी सीट है. अलीगढ़ की खैर, गाजियाबाद और फूलपुर सीट बीजेपी विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई जबकि मझवा निषाद पार्टी और मीरापुर विधानसभा सीट आरएलडी कोटे की सीट रिक्त हुई हैं. इन दस विधानसभा सीट पर अगस्त महीने तक उपचुनाव होने की संभावना है. इसके चलते सपा, बीजेपी, बसपा सहित सभी राजनीतिक दल उपचुनाव के लिए अपनी एक्सरसाइज शुरू कर दी है.
लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने के बाद सपा पर उपचुनाव में अपने कोटे की सभी 5 सीटें बरकरार रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. विपक्ष में रहते हुए उपचुनाव जीतने किसी भी दल के लिए आसान नहीं होता है. यूपी में 2022 के बाद से ज्यादातर उपचुनाव बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. बीजेपी को तीन सीटों पर ही अभी तक हार मिली है, उसमें मैनपुरी लोकसभा सीट, घोसी और खतौली विधानसभा सीट थी. इसीलिए 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सपा के लिए सबसे ज्यादा अहम है, जिसके लिए पार्टी ने अभी से ही गुणा-भाग शुरू कर दिया है. 2024 के चुनावी नतीजों से उत्साहित सपा नेतृत्व ने 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जी-जान से जुटने का कार्यकर्ताओं से आह्वान किया है.
अखिलेश के इस्तीफे से खाली हुई करहल सीट
अखिलेश यादव के इस्तीफे से करहल विधानसभा सीट खाली हुई है. यादव बहुल यह सीट सपा की परंपरागत सीटों में से रही है, जहां से 2022 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव विधायक चुने गए थे. इस सीट को सपा अपना कब्जा हरहाल में बनाए रखना चाहती हैं. इसी तरह फैजाबाद सीट से सांसद चुने गए अवधेश प्रसाद की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. सपा शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि अवधेश की जीत से बने सियासी माहौल को मिल्कीपुर उपचुनाव तक बनाए रखा जाए. इसके लिए किसी मजबूत उम्मीदवार को उतारने की रणनीति पर सपा काम कर रही है.
कटेहरी सीट लालजी वर्मा के सांसद चुने जाने से खाली हुई है. कुर्मी-निषाद बहुल इस सीट को बीजेपी हरहाल में जीतने की कवायद में है तो बसपा की नजर है. ऐसे में सपा इस सीट को अपना कब्जा जमाए रखना चाती है, जिसके लिए किसी ओबीसी नेता को उतारने का प्लान बनाया है. लालजी वर्मा की बेटी श्रेया वर्मा को भी इस सीट के प्रमुख दावेदारों में माना जा रहा है. सीसामऊ सीट इरफान सोलंकी को सजा देने के खाली हुई है. इस सीट पर सोलांकी परिवार का दबदबा रहा है. ऐसे में इरफान सोलंकी के परिवार से ही किसी को उतारा जा सकता है.
मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर भी चुनाव होने हैं, जो आरएलडी विधाय चंदन चौहान के इस्तीफे से खाली हुई है. 2022 में आरलडी यह सीट सपा के साथ गठबंधन में रहते हुए जीती थी, लेकिन अब दोनों की राह एक दूसरे से जुदा हो चुकी हैं. ऐसे में सपा यह सीट आरएलडी से हरहाल में छीनने की कवायद करती हुई नजर आएगी. इसी तरह मिर्जापुर की मझवा विधानसभा सीट 2022 में निषाद पार्टी के विधायक चुने गए थे, जो अब भदोही से बीजेपी के सांसद बने गए हैं. ऐसे में मझवा विधानसभा पर सपा अपना कब्जा जमाने के फिराक में है, जिसके लिए किसी ओबीसी पर दांव खेल सकी है.
BJP के कब्जे वाली विधानसभा सीटों पर उपचुनाव
बीजेपी के कब्जे वाली खैर, फूलपुर और गाजियाबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव है, जिसमें दो सीटें सपा अपने सहयोगी कांग्रेस को दे सकती है. कांग्रेस दो सीटें मांग रही है, लेकिन वह गाजियाबाद सीट को लेकर इच्छुक नहीं है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव में बना गठबंधन क्या उपचुनाव में बरकरार रहेगा या फिर बिखर जाएगा. ये तीनों ही सीटें बीजेपी की काफी मजबूत सीट रही हैं, जहां पर सपा को छीनना आसान नहीं है. इसीलिए कांग्रेस के माथे मढ़ना चाह रही है, लेकिन वो भी रजामंद नहीं है.