उत्तर प्रदेश में चार महीने पहले सपा और कांग्रेस ने मिलकर बीजेपी को करारी मात दी थी, लेकिन उपचुनाव में सीट शेयरिंग पर बात नहीं बन सकी. अब कांग्रेस ने सपा के लिए उपचुनाव का मैदान खुला छोड़ दिया है. सपा सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और कांग्रेस साइलेंट प्लेयर की भूमिका में है. अखिलेश यादव दीपावली के बाद चुनाव प्रचार अभियान भी शुरू करने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ संयुक्त रैली की रूपरेखा अभी तक नहीं बन सकी है. सवाल उठता है कि अगर कांग्रेस उपचुनाव में खामोशी इख्तियार करके रखती है तो सपा के लिए यह सियासी नफा या फिर नुकसान होगा?

लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की सियासी केमिस्ट्री हिट रही थी. यूपी की 80 में 43 सीटें सपा-कांग्रेस गठबंधन ने जीती थी और बीजेपी 62 से घटकर 33 सीट पर आ गई है. इंडिया गठबंधन के जीत का श्रेय सपा ने अखिलेश को दिया कांग्रेस ने राहुल गांधी को क्रेडिट दिया. लोकसभा चुनाव जैसा तालमेल सपा और कांग्रेस के बीच उपचुनाव में नहीं दिख रहा है. ऐसे में अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने पीडीए फार्मूले यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक वोटों को सपा के पक्ष में बनाए रखने की है.

कांग्रेस ने सपा के लिए छोड़ा मैदान

कांग्रेस उपचुनाव में पांच सीटें मांग रही थी, लेकिन सपा सिर्फ दो सीटें-खैर और गाजियाबाद ही देना चाहती थी. कांग्रेस को अपने लिए दोनों ही सीटें सियासी अनुकूल नहीं लगी, जिसके चलते उपचुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि कांग्रेस उपचुनाव नहीं लड़ेगी और सभी सीटों पर सपा अपने प्रत्याशी उतारे. इसके बाद अखिलेश यादव ने कहा कि बात सीट की नहीं बल्कि जीत की है. ऐसे में सभी 9 सीटों पर सपा के चुनाव निशान पर इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार उतरेंगे.

कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति

कांग्रेस ने खुशी-खुशी उपचुनाव का मैदान नहीं छोड़ा बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत दांव चला है. कांग्रेस को उपचुनाव में जो सीटें सपा दे रही थी, उन सीटों बीजेपी काफी मजबूत स्थिति में है. कांग्रेस की कोशिश मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव लड़ने की थी. कांग्रेस की जब मन की मुराद पूरी नहीं हुई तो उपचुनाव से अपने कदम खींचना बेहतर समझा. इसके पीछे 2027 के विधानसभा चुनाव का दांव भी छिपा है. कांग्रेस इस बात को जानती है कि अगर उपचुनाव लड़ते और हार जाते हैं तो फिर बार्गेनिंग पावर कम हो जाएगी. इसीलिए कांग्रेस ने कमजोर सीट पर चुनाव लड़ने से बेहतर न लड़ना समझा.

कांग्रेस की खामोशी, नफा-नुकसान

यूपी उपचुनाव में कांग्रेस ने जरूर समर्थन कर दिया है, लेकिन 2024 की तरह संयुक्त रूप से रैली का कोई प्लान सामने नहीं आया है. अखिलेश यादव ने जरूर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के नेताओं की समर्थन की दुहाई दी है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से किसी बड़े नेता ने कोई संकेत नहीं दिए हैं. यूपी में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का गठबंधन था तो उसके पीछे विपक्ष की मानें तो दलितों और मुस्लिमों की पहली पसंद कांग्रेस रही.कांग्रेस नेताओं का भी कहना है कि लोकसभा में जीत राहुल गांधी के द्वारा संविधान और आरक्षण का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठाए जाने के कारण मिली थी.

मुस्लिम और दलितों का वोट

लोकसभा चुनाव में यूपी में जिस सीट पर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस लड़ी, वहां तो बीएसपी का पूरी तरह सफाया हो गया. बीजेपी को हराने के लिए बसपा प्रमुख मायावती का वोट बैंक भी कांग्रेस की तरफ चला गया. इसमें जाटव वोटर भी शामिल हैं. आंकड़े बताते हैं कि दलित वोटर को सपा और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़ा तो पहली पसंद कांग्रेस हो सकती है. इसी तरह मुस्लिम समुदाय ने भी कांग्रेस के चलते सपा के पक्ष में एकमुश्त वोट दिया था. इसीलिए अखिलेश यादव ने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की दुहाई देकर मुस्लिम और दलितों को अपने साथ साधे रखने का दांव चल रहे हैं, लेकिन कांग्रेस भी उसे बाखूबी समझ रही है. इसीलिए कांग्रेस साइलेंट भूमिका में नजर आ रही है.

9 सीटों पर अखिलेश यादव करेंगे रैली

अखिलेश यादव करहल से उपचुनाव प्रचार के अभियान का आगाज कर रहे हैं और सभी 9 सीटों पर उनकी रैलियां रखी गई है. कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेताओं को उपचुनाव में लगा रहा है, लेकिन अभी तक कांग्रेस और सपा की संयुक्त रैलियों का कोई कार्यक्रम नहीं बना है. इस बारे में सपा के नेताओं का कहना है कि इस संबंध में दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व के बातचीत के बाद ही कोई निर्णय सामने आए.

हरियाणा की तरह सपा को समर्थन

कांग्रेस भले ही यूपी में तीसरे नंबर की पार्टी हो, लेकिन उसका अपना सियासी आधार है. मुस्लिम और दलित समुदाय के बीच राहुल गांधी की अपनी लोकप्रियता है. राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता उपचुनाव से दूरी बनाए रखते हैं तो फिर सपा के लिए उपचुनाव की जंग फतह करना आसान नहीं होगा. कांग्रेस का कहना है कि सपा ने जिस तरह हरियाणा में सिर्फ समर्थन दिया था, उसी तर्ज पर कांग्रेस ने यूपी उपचुनाव में अपना मौन समर्थन दिया है. अखिलेश ने जरूर कांग्रेस को हरियाणा में समर्थन किया था, लेकिन प्रचार में नहीं उतरे थे.