गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा में अररिया सांसद प्रदीप सिंह के दिए बयान ने नीतीश कुमार को सियासी धर्मसंकट में डाल दिया है. एक तरफ जहां लालू यादव की पार्टी नीतीश पर हमलावर है, वहीं दूसरी तरफ नीतीश को जेडीयू के सियासी परफॉर्मेंस की भी चिंता है. कहा जा रहा है कि नीतीश ने दोनों ही नेताओं को अपने सियासी रडार पर ले लिया है.

बिहार की सियासी गलियारों में कहा जाता है कि नीतीश की रडार में जो भी नेता आते हैं, उसका सियासी खेल खराब हो ही जाता है. भले वो आरजेडी या बीजेपी से ताल्लुकात क्यों न रखता हो.

गिरिराज-प्रदीप से नाराज नीतीश?

केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता गिरिराज सिंह और बीजेपी के अररिया से सांसद प्रदीप सिंह से मुख्यमंत्री नाराज बताए जा रहे हैं. जेडीयू सूत्रों के मुताबिक गिरिराज के हिंदू स्वाभिमान यात्रा में जिस तरह से प्रदीप सिंह ने नारे लगवाए, उसे नीतीश ने गलत माना है.

प्रदीप ने अररिया में कहा था कि यहां रहना है, तो सभी को हिंदू-हिंदू कहना होगा. अररिया में हिंदुओं की आबादी जहां 55 प्रतिशत है तो वहीं मुस्लिम यहां 45 प्रतिशत हैं. प्रदीप के इस बयान के बाद अररिया में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई.

जेडीयू हाईकमान का मानना है कि गिरिराज ने जिस तरह से हिंदू स्वाभिमान यात्रा की है और उसमें स्थानीय नेताओं का सहयोग मिला है, उससे यह माना ही नहीं जा सकता है कि उन्हें पार्टी का समर्थन प्राप्त नहीं था.

दरअसल, गिरिराज की यात्रा से पहले बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा था कि गिरिराज की यात्रा से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि, पार्टी ने यात्रा करने को लेकर उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं की है.

जेडीयू नेता गुलाम गौस का कहना है कि ऐसे बयान से समाज में बंटाधार होता है, इसलिए इस तरह के बयान देने से नेताओं को बचना चाहिए. नीतीश इस तरह के बयान का समर्थन नहीं कर सकते हैं.

नीतीश की नाराजगी वजह क्या है?

हिंदू स्वाभिमान यात्रा निकालने वाले गिरिराज सिंह और प्रदीप सिंह पर नीतीश के नाराजगी की 3 मुख्य वजहें बताई जा रही हैं.

1. नीतीश कुमार अपनी छवि सेक्युलर नेता की बनाए रखना चाहते हैं. कई मौकों पर उन्होंने इसकी कवायद भी की है. 2020 में जब उनकी पार्टी से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं जीते तो बीएसपी के मुस्लिम विधायक को अपने पाले में लाकर मंत्री बनवा दिया.

वक्फ बिल पर भी नीतीश की पार्टी ने मुसलमानों को समर्थन देने की बात कही. ऐसे में अररिया में गिरिराज और प्रदीप की जोड़ी के विवादित बोल से नीतीश असहज हो गए हैं.

2. नीतीश कुमार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के जरिए ही एनडीए को बिहार में बढ़ने की सलाह दे रहे हैं. नीतीश ही एनडीए के बिहार में नेता हैं. ऐसे में दोनों नेता ने न तो नेता की मंशा को फॉलो किया और न ही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को.

बीजेपी ने दोनों पर दिखावटी की कार्रवाई भी नहीं की. कहा जा रहा है कि नीतीश नहीं चाह रहे हैं कि मुसलमान गठबंधन से इस कदर नाराज हो जाए कि बिना हिस्सेदारी लिए आरजेडी के पक्ष में मोर्चेबंदी कर दे.

3. सीमांचल में विधानसभा की 5 जिलों में विधानसभा की 30 से ज्यादा सीटें हैं. पिछली बार खराब स्थिति में भी जेडीयू की इन इलाकों में 12 सीटों पर जीत मिली थी. जेडीयू को इस बार भी यहां बढ़िया प्रदर्शन की उम्मीद है.

हालांकि, अगर हिंदू और मुस्लिम का ध्रुवीकरण होता है तो जेडीयू को नुकसान हो सकता है. नीतीश इसलिए भी टेंशन में हैं.

सम्राट शांत पड़े, गिरिराज-प्रदीप की बारी?

सरकार में रहते हुए भी खूब मुखर रहने वाले डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के साथ नीतीश कुमार खेल कर चुके हैं. डिप्टी सीएम बनने से पहले सम्राट ने एक पगड़ी बांधी थी और कसम खाया था कि जब तक नीतीश को नहीं हटाएंगे, तब तक पगड़ी नहीं हटाएंगे.

नीतीश ने ऐसा दांव खेला कि सम्राट को अपनी पगड़ी उतारनी पड़ी. इतना ही नहीं, सम्राट अब नीतीश के पीछे-पीछे शांति से नजर आते हैं. लोकसभा चुनाव के बाद से ही सम्राट को अपनी कुर्सी जाने का डर सता रहा है.

कहा जा रहा है कि अब प्रदीप और गिरिराज के साथ भी खेल हो सकता है. 28 अक्टूबर को नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बिहार एनडीए की बैठक प्रस्तावित है. हालांकि, इसकी आधिकारिक घोषणा अभी तक नहीं हुई है.

हाल ही में गिरिराज सिंह ने एक बयान देते हुए कहा था कि चाहे मेरी कुर्सी चली जाए, लेकिन मैं हिंदुत्व को नहीं छोड़ूंगा. गिरिराज के इस बयान के बाद से चर्चा है कि क्या अब उनकी बारी है?