गुजरे जमाने की मशहूर फिल्म गाइड में देव आनंद का एक संवाद है- ‘सुना है मार-मार कर हकीम बनाए जाते हैं लेकिन अब तो मार-मार स्वामी भी बनाए जाने लगे हैं.’ यह फिल्म सन् 1965 में आई थी लेकिन 59 साल बाद मौजूदा दौर के अंधविश्वास के तमाशे से अलग नहीं है. इसी फिल्म में कथित स्वामी बने देव आनंद अपने भक्तों से घिरने के बाद ये भी कहते हैं कि ‘ये सब क्या आडंबर है, मेरे बारे में इतना झूठ क्यों फैला दिया कि मैं कोई चमत्कारी हूं’. लेकिन भीड़ की उम्मीदों और आशाओं के आगे लाचार वह फिल्मी स्वामी साधु का चोला ओढ़ लेता है और पूरा गांव-समाज उसे देवता सरीखा पूजने लगता है.
वास्तव में ये एक नजीर है कि कोई सामान्य से सामान्य शख्स भी स्वामी और बाबा क्यों और कैसे बन जाता है. लेकिन ये साठ के दशक का सिनेमा था. लिहाजा तब की फिल्मों में किसी स्वामी चरित्र का ऐसा उत्सर्ग रूप देखने को मिला जबकि जैसे-जैसे समय बीतता गया, फिल्मी पर्दे पर बाबा पैसे और पावर से लैस होते गए. पैसे और पावर ने बाबाओं का रुतबा इतना बढ़ा दिया कि कुछ लोग तो इसमें अपना शानदार करियर तलाशने लगे. कोई नौकरी छोड़कर बाबा बन गया तो कोई गाते-गाते स्वामी प्रवचनकर्ता बन बैठा. सत्तर के दशक के बाद ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ गई जब पर्दे पर स्वामियों के चरित्र बदलने लगे.
संन्यासी से शुरू हुआ खलनायक बाबा का किरदार
इसी क्रम में सन् 1975 की फिल्म याद आती है-संन्यासी. मुख्य किरदार-मनोज कुमार और हेमा मालिनी. अपने बोल्ड गानों की वजह से ये फिल्म काफी चर्चा में रही. लेकिन यही वो फिल्म थी जिसमें प्रेमनाथ के रूप में स्वामी के एक भ्रष्ट किरदार को भी दर्शाया गया था. जो हर अनैतिक काम करता लेकिन समाज में स्वामी कहलाता था. उसके बरअक्स प्राण का किरदार एक सच्चे स्वामी का था, जिसे इस बात की तकलीफ थी कि उसके साधु रूप को कोई बदनाम कर रहा है. इस कारण फिल्म में दोनों के बीच टकराव भी देखे गए. लेकिन इसके बाद के दौर की फिल्मों में ये टकराव भी खत्म हो गया. अस्सी का दशक आते-आते बाबाओं का रंग-रूप पूरी तरह से बदल गया.
जादूगर में महाप्रभु बन अमरीश पुरी ने जमाया रंग
जॉनी दुश्मन, शान, क्रोधी में नकली बाबाओं के छुटपुट किरदारों के बाद सन् 1989 में आई अमिताभ बच्चन की जादूगर इस कड़ी को विस्तार से आगे बढ़ाती है, जहां टोना टोटका के काले साम्राज्य का बखूबी चित्रण हुआ था. इस फिल्म में नगीना के अलखनिरंजन और मि. इंडिया के मैगोम्बो अमरीश पुरी का महाप्रभु का किरदार आज भी लोगों के जेहन में है. जिसकी अपनी मायावी दुनिया थी और इस दुनिया को अमिताभ बच्चन पर्दाफाश ही नहीं करते बल्कि ध्वस्त भी करते हैं. हालांकि फिल्मी पर्दे पर नकली बाबाओं की असली पोल-खोल अभी बाकी थी. और ये काम हुआ ओ माई गॉड, पीके, धर्म संकट में, सड़क-2, ग्लोबल बाबा और सिंघम रिटर्न्स जैसी फिल्मों के आने के बाद.
ओ माई गॉड से सिंघम रिटर्न्स तक
साल 2012 की फिल्म ओ माई गॉड के पहले भाग में विवादों में जरूर आई लेकिन इसमें आडंबर पर तीखा प्रहार भी किया. कांजी लालजी मेहता के किरदार में परेश रावल ने नई बहस खड़ी कर दी. धर्म और आडंबर के नाम पर करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने वालों पर कटाक्ष किया. फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, गोविंद नामदेव ने आस्था और आस्तिक्ता के नाम पर कथित स्वामियों के किरदारों को जीकर दिखाया कि कांजी लालजी मेहता जो कहना चाहता है उसकी बुनियाद गलत नहीं है. कांजी ने बताया कि धर्म लोगों में डर पैदा करता है और इसी डर के वशीभूत होकर लोग ठगों के चक्कर में आते हैं.
यही चित्रण कुछ और मारक अंदाज में दो साल बाद 2014 में आई आमिर खान की फिल्म पीके में देखने को मिला. पीके किसी एक धर्म के आडंबर पर प्रहार नहीं करती बल्कि प्रतिकात्मक तौर पर बताती है कि दुनिया के हर मजहब में आडंबर है और लोग अपने-अपने मजहब के आडंबर को अपमाने पर मजबूर हैं. लेकिन आसमान से टपका एक पीके है जिसे धरती की इन औपचारिकताओं के बारे में कुछ भी नहीं मालूम लिहाजा वह कभी वस्त्र विन्यासों को देखकर तो कभी धार्मिक रीति रिवाजों को देखकर चौंकता रहता है.
मंजीत मनचला बनाम बाबा नीलानंद
पीके के ठीक एक साल के बाद 2015 में परेश रावल एक बार फिर धार्मिक आडंबरों पर कटाक्ष करती फिल्म धर्म संकट में धर्मपाल त्रिवेदी के किरदार में नजर आए. इस फिल्म में धरमपाल का अपना जातीय द्वंद्व अलग है लेकिन इसी फिल्म में नसीरुद्दीन शाह ने बाबा नीलानंद का जो किरदार निभाया है, वह आज के जीते जागते बाबाओं का प्रतिरूप है. वह कभी रॉक स्टार मंजीत मनचला था लेकिन बाद में बाबा नीलानंद बन जाता है. इसके बाद रवि किशन की ग्लोबल बाबा तो अजय देवगन की सिंघम रिटर्न्स ने तो जालसाज बाबाओं की दुनिया की काली कमाई समेत सत्ता और अंडरवर्ल्ड तक के रिश्ते को खंगाल कर रख दिया.
इंतजार है रीयल लाइफ सिंघम का
2014 की ही रोहित शेट्टी की फिल्म सिंघम रिटर्न्स इस मामले में फुल एक्शन ड्रामा है. डीसीपी बालाजी राव सिंघम के किरदार में अजय देवगन का पाला ऐसे सत्यराज चंदर उर्फ बाबाजी (आमोल गुप्ते) से पड़ता है जिसने धर्म का मुखौटा ओढ़ रखा है लेकिन राजनीति, सत्ता, काला धन और क्राइम की दुनिया तक उसका नेक्सस फैला है. उसके पास पैसा है और पावर भी. लेकिन तमाम दुश्वारियों के बावजूद बालाजी राव सिंघम अपना दमखम नहीं खोता.
अहम सवाल है आज वास्तविक दुनिया में जिस तरह से फर्जी बाबाओं ने समाज के भोले भाले लोगों का मानसिक, आर्थिक दोहन कर रखा है, क्या रीयल लाइफ में बालाजी राव सिंघम जैसा चमत्कार करने वाला कोई अवतार लेगा?