बांग्लादेश में एक नया संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या शेख हसीना अब भी देश की प्रधानमंत्री हैं और अगर ऐसा है तो क्या सेना की ओर से गठित मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अवैध है? क्योंकि संविधान के मुताबिक प्रधानमंत्री का पद तभी खाली होगा जब वह राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपे. लेकिन अगस्त में बांग्लादेश छोड़कर भारत पहुंची शेख हसीना का इस्तीफा हुआ भी है या नहीं यह अब एक बड़ा सवाल बनकर रह गया है.

दरअसल, बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उनके पास शेख हसीना के इस्तीफे का कोई सबूत नहीं है. उनके इस बयान से छात्र संगठनों में खासा आक्रोश है. मंगलवार को जहां राष्ट्रपति के खिलाफ कई छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया तो वहीं भेदभाव विरोधी छात्र संगठन के लीडर्स ने मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को अल्टीमेटम तक दे डाला.

छात्रों ने राष्ट्रपति के इस्तीफे समेत कई मांगे सरकार के सामने रखी थीं. इसमें सबसे प्रमुख मांग थी शेख हसीना की पार्टी के छात्र संगठन पर बैन और गुरुवार तक नए राष्ट्रपति का ऐलान. हालांकि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने अवामी लीग के छात्र संगठन बांग्लादेश स्टूडेंट लीग पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन राष्ट्रपति बदलने की संभावना से सरकार ने इनकार कर दिया है.

अंतरिम सरकार और BNP में मतभेद?

वहीं इस मामले को लेकर BNP और अंतरिम सरकार के बीच मतभेद देखने को मिला, जिसके बाद बुधवार रात आनन-फानन में खालिदा जिया की पार्टी BNP के नेता अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस से मिलने पहुंचे. दरअसल BNP की लीडरशिप का मानना है कि मौजूदा समय में राष्ट्रपति पर इस्तीफे के लिए दबाव डालने से संवैधानिक और राष्ट्रीय संकट पैदा हो सकता है. वहीं अंतरिम सरकार के कानून मंत्री नाहिद इस्लाम का कहना है कि मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है और बातचीत जारी है. नाहिद इस्लाम, शेख हसीना के खिलाफ हुए आंदोलन के मुख्य चेहरों में से एक थे जिन्हें मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार में जगह मिली थी.

पहले राष्ट्रपति, फिर आर्मी चीफ की बारी!

सूत्रों के हवाले से खबर है कि राष्ट्रपति के बयान से मचे बवाल के बाद यूनुस सरकार के एक वरिष्ठ सलाहकार और दो छात्र नेताओं ने न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्य से मुलाकात की और उन्हें राष्ट्रपति बनाए जाने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई.

सूत्रों के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी के छात्र विंग की राजनीतिक पकड़ को कमजोर करने चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ वकार-उज-जमां राष्ट्रपति के बाद इन छात्र नेताओं का अगला टारगेट हो सकते हैं. इसके बाद अगला कदम बांग्लादेश के संविधान में बदलाव होगा जिसकी मांग भेदभाव विरोधी छात्र संगठन ने मंगलवार को की थी.

इस छात्र संगठन के संयोजक हसनत अब्दुल्ला ने कहा था कि हमारी 5 मांगों में से सबसे पहली मांग है प्रो-मुजीब 1972 संविधान को हटाना, जिसकी वजह से राष्ट्रपति अपने पद पर बने हुए हैं. छात्र संगठनों ने कहा है कि अगर मोहम्मद यूनुस की सरकार इन मांगों को एक हफ्ते में पूरा नहीं करती है तो वह एक बार फिर पूरी ताकत के साथ सड़क पर उतरेंगे.

अंतरिम सरकार पर भी संवैधानिक संकट

छात्रों की इस मांग के बीच एक सवाल मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार की संवैधानिक वैधता को लेकर भी उठ रहा है. अगर शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है तो क्या सेना की ओर से गठित मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार गैर-कानूनी है?

दरअसल, बांग्लादेश के संविधान की धारा 57 (A) के मुताबिक प्रधानमंत्री किसी भी समय राष्ट्रपति को इस्तीफा दे सकता है, जिसके बाद प्रधानमंत्री का पद खाली हो जाता है. लेकिन बांग्लादेश के राष्ट्रपति का कहना है कि उनके पास शेख हसीना का इस्तीफा नहीं है. ऐसे में क्या ये माना जाए कि शेख हसीना अब भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं.

वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश के संविधान में कार्यवाहक सरकार का प्रावधान खत्म किया जा चुका है, 2011 तक देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कार्यवाहक सरकार का प्रावधान था लेकिन 30 जून 2011 को शेख हसीना की पार्टी ने संविधान संशोधन कर इस प्रावधान को रद्द कर दिया था.

अंतरिम सरकार को बचाने की कोशिश

ताजा विवाद के बीच एक और चौंकाने वाली खबर सामने आई है. सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार अजीज अहमद भुइयां ने बताया है कि बुधवार दोपहर करीब 2 बजे कानून मामलों के सलाहकार आसिफ नजरुल और मंत्री नाहिद इस्लाम ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सैयद रफात अहमद के साथ उनके दफ्तर में करीब आधे घंटी लंबी मुलाकात की. हालांकि इस मुलाकात के दौरान किस विषय पर चर्चा की गई इसकी जानकारी नहीं दी गई.

बांग्लादेश के संविधान के आर्टिकल 106 के मुताबिक, अगर देश में कोई ऐसा समय आता है जब राष्ट्रपति के सामने कानून से जुड़ा कोई सवाल पैदा होता है या जिसके पैदा होने की संभावना है, और जो वाकई जनता के हित से जुड़ा मुद्दा है तो इसके उपाय के लिए राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट की राय लेनी चाहिए. इसके लिए राष्ट्रपति उस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय डिविजन के सामने भेज सकते हैं. जिस पर सुनवाई के बाद कोर्ट अपनी राय राष्ट्रपति को बता सकता है.

लिहाजा माना जा रहा है कि अंतरिम सरकार को इस संवैधानिक संकट से निकालने की कोशिशें तेज हो गई हैं. एक ओर छात्र राष्ट्रपति को हटाने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी ओर मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अपने की अस्तित्व को बचाने के प्रयास में जुटी हुई है. आने वाले कुछ दिनों में बांग्लादेश ने अगर इन तमाम विवादों को नहीं सुलझाया, तो एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है.