इजराइल अपने दुश्मन ईरान, हमास, सीरिया और लेबनान से एक साथ जंग लड़ रहा है. फिलहाल सीधे निशाने पर है लेबनान. वो लेबनान जहां पर हमला हिजबुल्ला को तबाह करने के लिए शुरू किया गया था. इजराइल ने इस साल 27 सितम्बर से लेबनान पर हमलों की संख्या बढ़ा दी है. देश में चारों तरफ तबाही नजर आ रही है. लेबनान में 12 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. 2300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. सरकारी सेवाएं नाकाफी साबित हो रही है. यहां इजराइल ने हिजबुल्लाह की कमर तोड़ने के लिए दक्षिणी हिस्से में हमला करना शुरू किया और अब हालात ये हैं कि लेबनान चौतरफा फंस गया है. यानी आगे कुआं हैं और पीछे खाई.

जानिए, इजराइल के ताबड़तोड़ हमले और हिजबुल्ला के कारण लेबनान और वहां के हालात किस हद तक बिगड़ गए हैं और देश को वापस पटरी पर लौटना कितना मुश्किल हो गया है.

कैसे लेबनान बर्बादी की कगार पर पहुंचा?

लेबनान के हालात और आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो साफ पता चलता है कि इजराइल से चल रही जंग ने उसे कई ऐसे जख्म दिए हैं जिससे उबरना मुश्किल है. देश की अर्थव्यवस्था बेपटरी हो गई है. बैंकिंग सिस्टम की हालत बुरे दौर में पहुंच गई है. पहले से संकट से जूझ रहा देश अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गया है. यह सब हुआ कैसे, इसे पूरे इत्मिनान के साथ समझते हैं.

लेबनान के हालात अक्टूबर 2019 में बिगड़ने शुरू हुए. यहां की अर्थव्यवस्था रफ्तार खोने लगी. बैंक बंद होने लगे. जमाकर्ताओं को अपनी बचत से हाथ धोना पड़ा. लेबनान में आर्थिक संकट की शुरुआत हुई. इसके बाद कोविड का दौर आया और उसने देश को और पीछे छोड़ दिया.

लेबनान में सुधार की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम किया इजराइल के ताबड़तोड़ हमलों ने. इजराइल की तरफ से किए गए सबसे शक्तिशाली गैर-परमाणु विस्फोटों में से एक ने बेरूत के बंदरगाह और आसपास के इलाकों को तबाह कर दिया. संकट और बढ़ा. लेबनान की कार्यवाहक सरकार राजनीतिक कलह और व्यापक भ्रष्टाचार के कारण काफी हद तक लाचार हो गई है. लेबनान में किसी भी अन्य देश की तुलना में प्रति व्यक्ति शरणार्थियों की संख्या अधिक है, जिससे आर्थिक बोझ और बढ़ गया है.

लेबनान की जिद ने गरीबी का दलदल कितना गहरा किया

लेबनान में गरीबी 2012 से 2022 तक तीन गुना बढ़ गई. विश्व बैंक के अनुसार, लेबनान की लगभग आधी आबादी गरीबी के दलदल में फंसी हुई है. विश्लेषकों का कहना है, लेबनान के हालात यहां सरकार की जिद और सुधार के लिए जरूरी कदम न उठाने का परिणाम है. भ्रष्टाचार के मामलों ने इस देश को वापस पीछे ले जाने का काम किया.

अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल दक्षिणी लेबनान के उन क्षेत्रों पर हमले किए जो कृषि प्रधान क्षेत्र रहे हैं. इससे वहां के आमलोगों की आय स्रोत खत्म हो गया. अंतरराष्ट्रीय राहत संगठन मर्सी कॉर्प्स के बेरूत कार्यालय की प्रमुख लैला अल अमीन का कहना है, “अब जैतून की फ़सल का मौसम है, लोगों ने पिछले साल अपनी फ़सल खो दी थी, वे इस साल भी एक और फ़सल खो देंगे.”

नेतन्याहू के बयान से लेबनान में गृह युद्ध छिड़ने का खतरा

लेबनान में हालात यह है कि 12 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. बड़ी संख्या में लोग स्कूलों में सो रहे हैं. लोगों ने समुद्र या सड़कों किनारे शरण ले रखी है. लेबनान के जो इलाके थोड़े सुरक्षित माने जाते हैं वहां की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि आम इंसान को वहां रहना मुश्किल हो गया है.

पिछले हफ्ते इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने लेबनान के लोगों को चेतावनी देते हुए कहा था कि या तो वे हिजबुल्लाह को चुनौती दें या फिर लेबनान को दूसरा गाजा बनाने के लिए तैयार हो जाएं. विशेषज्ञों का कहना है कि नेतन्याूह का यह बयान लेबनान में एक गृह युद्ध शुरू करने जैसा है. यह रणनीति लेबनान में लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़का सकती है.

इस तरह लेबनान इस मुहाने पर पहुंच गया है कि जहां एक तरफ कुआं है और दूसरी तरफ खाई. न तो इजराइल जंग रोकने को तैयार है और न ही देश के पास इतने संसाधन हैं कि वो अपने लोगों को सुरक्षित रख सके. उन्हें पर्याप्त सुविधाएं दे सके और दूसरी जरूरी चीजें मुहैया करा सके.

लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती का कहना है कि युद्ध जितना लम्बा चलेगा, पहले से ही लड़खड़ा रहे प्रशासन का प्रभाव उतना ही कम हो जाएगा. सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संगठनों और साझेदारों के साथ इंसानों की मदद के लिए आपातकालीन योजना शुरू की है.