लुधियाना: पंजाब की जेलों में मोबाइल कल्चर का ऐसा बोलबाला है जो हर वर्ष नए ग्राफ लेकर सामने आता है। पंजाब में जेलों के बारे में अब यह भी चुटकी ली जाती है कि बंदियों को जेल प्रशासन खाना समय पर दे न दे लेकिन उनके मोबाइल चलाने से रोकने की कवायद सुस्त रखता है। इसी वजह से कभी कभार चैकिंग के नाम पर दो-चार मोबाइल पकड़ कर जेल प्रशासन अपनी पीठ खुद ही थपथपा लेता है लेकिन असलियत में जेलों में जारी मोबाइल कल्चर से गैंगस्टरवाद को भी कहीं न कहीं बढ़ावा मिल रहा है। इसी के चलते रह रहकर यह सवाल उठ रहा है कि क्या जेलें अब मोबाइल कल्चर को बढ़ावा देने का माडल बनकर रह जाएंगीं। इस समस्या ने केंद्रीय जांच एजेंसियों को भी परेशानी में डाला हुआ है।
लुधियाना सैंट्रल जेल से जनवरी से लेकर अब तक मिले 368 मोबाइल
दूसरी ताजपुर रोड की सैंट्रल जेल से जनवरी से लेकर अब तक 368 मोबाइलों की रिकवरी हो चुकी है। जिनके मामले भी दर्ज हुए हैं लेकिन सवाल उठ रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में जेलों में मोबाइल पहुंचाने वाला कौन सा अपराधिक नैटवर्क काम कर रहा है जो जेल प्रशासन को धत्ता बताकर जेल के अहाते में बंदियों तक मोबाइल पहुंचाने में कामयाब हो जाते हैं।
सीटों पर पक्के डेरा जमाए बैठे अधिकारियों की नहीं होती बदलियां
सूत्रों का कहना है कि पिछले काफी समय से लुधियाना की सैट्रल जेल में कुछ अधिकारियों की बदलियां नहीं हो पा रही हैं। जिनकी कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में है जबकि सरकार अधिकारियों की समय समय पर बदलियां करती रहती हैं। ऐसे में सैट्रल जेल में मोबाइल कल्चर और मोबाइल मिलने की घटनाओं के बाद भी सरकार की जेल स्टाफ के प्रति सख्ती न बदलना भी लापरवाही की तस्वीर को काफी साफ करता है।