जिन वजहों से हरियाणा में कांग्रेस की करारी हार हुई, वही वजहें चुनावी राज्य झारखंड में पार्टी के भीतर भी हावी हैं. मसलन, हरियाणा की तरह ही झारखंड से कांग्रेस के प्रभारी लंबे वक्त से नदारद हैं. चुनाव की घोषणा के बावजूद टिकट के दावेदारों की स्क्रीनिंग नहीं हो पाई है. संगठन के बड़े नेता मैदान छोड़ दिल्ली की लॉबी में जुटे हुए हैं.
कहा जा रहा है कि समय रहते अगर ओल्ड ग्रैंड पार्टी इन मुद्दों का हल नहीं करती है, तो उसे हरियाणा की तरह ही झारखंड की सत्ता से भी हाथ धोना पड़ सकता है.
झारखंड से पार्टी प्रभारी नदारद
एक तरफ जहां बीजेपी के प्रभारी और सह-प्रभारी झारखंड में सियासी दौरा कर कील-कांटे दुरुस्त कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस के प्रभारी पूरे परिदृश्य से ही नदारद हैं. झारखंड में कांग्रेस के प्रभारी हैं गुलाम अहमद मीर. मीर करीब एक महीने से झारखंड नहीं आए हैं. 25 सितंबर को कुछ घंटों के लिए मीर रांची आए थे, लेकिन फिर कश्मीर चले गए.
मीर कश्मीर से विधायक चुने गए हैं और अभी अपने क्षेत्र में ही सक्रिय हैं. सूत्रों के मुताबिक, मीर की चाहत कश्मीर की राजनीति करने की है. मीर पहले भी उमर अब्दुल्ला सरकार में मंत्री रह चुके हैं. हालांकि, कांग्रेस हाईकमान की तरफ से सरकार में शामिल होने और मीर की भूमिका पर कोई फैसला नहीं किया गया है.
इधर, मीर झारखंड कब आएंगे और आएंगे भी नहीं, इसकी कोई जानकारी प्रदेश कांग्रेस के पास फिलहाल नहीं है.
नए सिरे से संगठन नहीं बना
अगस्त 2024 में कांग्रेस ने झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष पद से राजेश ठाकोर को हटाकर कर केशव महतो कमलेश को राज्य की कमान सौंपी थी. केशव महतो इसके बाद 2-3 बार दिल्ली का दौरा कर चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें अपनी नई टीम नहीं मिल पाई है.
मजबूरन केशव महतो को पुरानी टीम से ही काम चलाना पड़ रहा है. दिलचस्प बात है कि पुरानी टीम के कई सदस्य अब या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या निष्क्रिय हो चुके हैं.
दिसंबर 2022 में कांग्रेस ने आखिरी बार जिला कमेटी का गठन किया है, तब से अब तक झारखंड की राजनीति 360 डिग्री यूटर्न ले चुकी है. गिरिडिह और पलामू जैसे जिलों में कांग्रेस का झगड़ा भी बाहर आ चुका है.
दावेदारों की स्क्रीनिंग नहीं
अगस्त 2024 में कांग्रेस ने गोवा के कद्दावर नेता गिरिश चंद्रोकर की अध्यक्षता में एक स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया था, लेकिन अब तक दावेदारों की स्क्रीनिंग नहीं हो पाई है. दूसरी तरफ बीजेपी ने दावेदारों की लिस्ट दिल्ली भेज दी है, जहां एक-दो दिन में नामों पर फाइनल मुहर लग जाएगी.
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, स्क्रीनिंग न होने की वजह सीटों का बंटवारा न होना है. अब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटावारा नहीं हो पाया है. कांग्रेस इस बार पलामू प्रमंडल की सीटों पर नहीं लड़ना चाहती है.
इसके बदले पार्टी की डिमांड रांची और उसके आसपास की सीटों पर है. वहीं झारखंड मु्क्ति मोर्चा इन सीटों को देना नहीं चाहती है. हाल ही में झामुमो के हेमंत सोरेन ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी.
टेंशन में झामुमो हाईकमान
झामुमो और कांग्रेस की सत्ता वापस आ पाएगी या नहीं, यह झामुमो से ज्यादा कांग्रेस के परफॉर्मेंस पर भी निर्भर है. झामुमो लंबे वक्त से संथाल परगना और कोल्हान इलाके में बेहतरीन प्रदर्शन करती रही है. पार्टी के पास अभी भी आदिवासी और मुस्लिम वोटर्स इंटैक्ट है. 2009 से लेकर अब तक झामुमो के प्रदर्शन में कमी नहीं आई है.
2009 में झामुमो को 18 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 में यह बढ़कर 19 पर पहुंच गई. 2019 में झामुमो को 29 सीटों पर जीत मिली. बात कांग्रेस की करें तो 2019 में कांग्रेस को 16 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस अगर इस बार इन आंकड़ों को मैनेज कर लेती है तो झामुमो के लिए राहत भरी होगी.
2014 में झामुमो और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. झामुमो 2009 के मुकाबले एक ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस की सीटों की संख्या 14 से घटकर 6 पर पहुंच गई, जिसकी वजह से झामुमो सरकार बनाने से चूक गई.
झारखंड में 81 सीटों पर चुनाव
झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों पर चुनाव होने हैं. यहां मु्ख्य मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आजेडी गठबंधन का बीजेपी, आजसू और जेडीयू गठबंधन से है. झारखंड में सरकार बनाने के लिए 42 विधायकों की जरूरत होती है.