बिहार के मंत्री रहे बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सर्वोच्च अदालत ने विजय उर्फ मुन्ना शुक्ला को केस में दोषी ठहराया है. हत्या के जुर्म में शुक्ला और एक अन्य दोषी मंटू तिवारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

26 साल बाद आए इस फैसले में एक बात कॉमन है. वो है सियासी नुकसान का. बृजबिहारी की सियासी हत्या हो या उनकी हत्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, दोनों ही बार लालू यादव को ही झटका लगा है. कैसे, आइए इस स्टोरी में विस्तार से जानते हैं.

बृजबिहारी की हत्या से चंपारण में सिमट गए

चंपारण दो भागों में बंटा है. पूर्वी और पश्चिमी. पश्चिमी वाले भाग को बेतिया भी कहते हैं और पूर्वी वाले भाग को मोतिहारी. 1995 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों ही जिलों की 20 में से 12 सीटों पर लालू यादव ने जीत हासिल की थी. वो भी तब, जब सवर्ण समुदाय का इन इलाकों में जोर था.

जीत की वजह बृजबिहारी की कुश रणनीति थी. बृजबिहारी खुद मोतिहारी का आदापुर से विधायक चुने गए थे. 1995 के चुनाव के बाद बृजबिहारी पूरे बिहार में लालू यादव के आंख और कान बन गए. उत्तर बिहार का फैसला तो बिना बृजबिहारी से पूछे लालू लेते भी नहीं थे.

इसकी 2 वजहें थी. पहला, बृजबिहारी लालू यादव के पिछड़ों की गोलबंदी में फिट थे और दूसरा आनंद मोहन की तरह ही मुजफ्फरपुर में उनकी सियासी किलेबंदी मजबूत थी. बृजबिहारी ने राजनीति में एंट्री मुजफ्फपुर से ही की थी.

1998 में बृजबिहारी की हत्या के बाद लालू यादव चंपारण की राजनीति में सिमट गए. साल 2000 के चुनाव में मोतिहारी और बेतिया की 20 में से सिर्फ 5 सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल को जीत मिली.

आरजेडी बृजबिहारी प्रसाद की आदापुर सीट भी नहीं जीत पाई. 2000 के बाद से ही चंपारण में आरजेडी का परफॉर्मेंस खराब रहा है. 2005, 2010, 2015 और 2020 के चुनाव में भी आरजेडी यहां पर कोई करिश्मा नहीं कर पाई है.

हत्या पर फैसले ने भी बढ़ाई लालू की टेंशन

बृजबिहारी प्रसाद हत्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भी लालू यादव की टेंशन बढ़ा दी है. दरअसल, केस में विजय शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को दोषी ठहराया गया है. मुन्ना अभी राष्ट्रीय जनता दल में हैं. पार्टी के सिंबल पर 2024 का चुनाव वैशाली से लड़ चुके हैं. शुक्ला चुनाव तो नहीं जीत पाए, लेकिन 4 लाख 50 हजार से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रहे.

पार्टी मुन्ना के सहारे विधानसभा चुनाव में वैशाली और हाजीपुर में सियासी मोर्चेबंदी की तैयारी में थी. हाजीपुर और वैशाली के अधीन विधानसभा की 12 सीटें हैं. 2020 में इन 12 में आरजेडी को सिर्फ 5 पर जीत मिली थी.

आरजेडी मुन्ना शुक्ला के जरिए वैशाली और हाजीपुर की भूमिहार बाहुल्य सीटों को जीतने की रणनीति बना रही थी. हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उसके रणनीति पर पानी फिर सकता है. बिहार में अब से एक साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं.

26 साल केस चला, 3 अदालत से 3 फैसले

1998 में बृजबिहारी प्रसाद की हत्या हुई थी. केस में विजय शुक्ला, सूरजभान, राजन तिवारी समेत 8 लोग आरोपी बनाए गए थे. सीबीआई को इस केस की जांच सौंपी गई थी. शुरुआती जांच के बाद सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की थी, उसमें इसे वर्चस्व की वजह से हत्या बताया गया था.

11 साल की लंबी सुनवाई के बाद 2009 में ट्रायल कोर्ट ने सभी 8 लोगों को हत्या का दोषी माना. ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी 8 लोग हाई कोर्ट पहुंचे. 2014 में हाई कोर्ट ने सबूत के अभाव में सभी को बरी कर दिया.

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई यह साबित नहीं कर पाई कि इन अभियुक्तों ने प्रसाद की हत्या की साजिश रची थी. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को दोषी माना है, जबकि सूरजभान समेत 6 अन्य को बरी कर दिया है.

बृजबिहारी प्रसाद की हत्या कैसे हुई थी?

लालू और राबड़ी सरकार में मंत्री रहे बृजबिहारी प्रसाद एक घोटाले में आरोपित होने के बाद बीमार पड़ गए. बृजबिहारी को इसके बाद पटना के आईजीआईएमएस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. 13 जून 1998 को यहीं पर बृजबिहारी प्रसाद की हत्या कर दी गई.

कहा जाता है कि उसकी हत्या की साजिश बिहार में ही रची गई. हत्या करने की जिम्मेदारी यूपी के उस वक्त के मोस्ट वांटेड श्रीप्रकाश शुक्ला को दिया गया. सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक बृजबिहारी जब अस्पताल के लोन में टहल रहे थे तभी एक कार उनके पास आकर रूकी.

बृजबिहारी जब तक कुछ समझ पाते, तब तक कार से फायरिंग शुरू हो गई. बृजबिहारी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. पहले मामले की जांच बिहार पुलिस को दी गई, लेकिन इंटर स्टेट और हाई प्रोफाइल केस होने की वजह से जांच सीबीआई को दे दी गई.