लेबनान में हाल ही में पेजर समेत कई वायरलेस उपकरणों में धमाकों के बाद कहा गया कि इसके पीछे इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ है. यह एक तरह का साइबर हमला है. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और मोसाद ने मिलकर सालों पहले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को तबाह करने के लिए भी साइबर अटैक किया था. इसके लिए एक खास तरह के कंप्यूटर वायरस का इस्तेमाल किया गया था. आइए जान लेते हैं सीआईए और मोसाद का पूरा प्लान.
ईरान के संयंत्र पर जून 2009 में हुआ था डिजिटल हमला
जून 2009 में ईरान की राजधानी तेहरान से करीब 300 किमी दूर नाटांज न्यूक्लियर सेंटर में अचानक से आश्चर्यजनक चीजें होने लगी थीं. उसका पूरा सिस्टम ही स्लो हो गया था. इसका कारण था अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की ओर से न्यूक्लियर सेंटर के सिस्टम में अपलोड किया गया खास मालवेयर स्टक्स्नेट (Stuxnet). यह वास्तव में अपनी तरह का एक अलग ही साइबर हथियार था, जिसे सीआईए और मोसाद ने मिलकर बनाया था.
स्टक्स्नेट को दुनिया का पहला डिजिटल हथियार माना जाता है. इसे मुख्य रूप से ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोकने के लिए तैयार किया गया था. इसको इस तरह से बनाया गया था कि मुख्य रूप से न्यूक्लियर प्लांट के सेंट्रीफ्यूज को नुकसान पहुंचे. सेंट्रीफ्यूज ही यूरेनियम को समृद्ध कर उसे असामान्य गति से चलाने और धीमा करने के लिए प्रयोग किया जाता है.
काफी समय से ईरान के सिस्टम में मौजूद था मालवेयर
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि स्टक्स्नेट से ईरान के न्यूक्लियर सिस्टम से हमला किया गया था. इसे सालों पहले सिस्टम में डाल दिया गया था, जो उसमें बाधा बन रहा था. यह साल 2000 के शुरुआती दिनों की बात है, जब इस मालवेयर का विकास और इससे हमला शुरू किया गया था. यह वह दौर था जब ईरान और पश्चिमी देशों के बीच परमाणु हथियारों को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा था.
इसी तनाव के कारण सीआईए और मोसाद ने मिलकर एक कोवर्ट ऑपरेशन प्लान किया, जिसे नाम दिया गया ओलिंपिक गेम्स. इसी ऑपरेशन के तहत मालवेयर विकसित किया गया था जो कोई आम मालवेयर नहीं था. यह नई तरह का साइबर हथियार था, जो औद्योगिक संयंत्रों को नियंत्रित करने वाले सीमेंस स्टेप 7 सॉफ्टवेयर को अपना निशाना बनाता था. खासकर ईरान के नाटांज यूरेनियम संयंत्र के सेंट्रीफ्यूज पर इसका फोकस था.
दरअसल, ईरान के संयंत्र को तबाह करने के लिएअमेरिका ने अपने यहां इसका एक प्रतिरूप तैयार किया था. यहीं पर अमेरिकी और इजराइली इस बात का अध्ययन करते थे कि बिना पता लगे वे किस तरह से ईरान के संयंत्र को निशाना बना सकते हैं. साल 2007 में पहली बार Stuxnet का पहला वर्जन रिलीज किया गया, जिससे सेंट्रीफ्यूज काम करना बंद कर दें और यूरेनियम गैस की जगह ठोस में बदल जाए और अंतत: सेंट्रीफ्यूज खुद ही तबाह हो जाए.
परमाणु संयंत्र के सॉफ्टवेयर में ऑफलाइन डाला गया
चूंकि ईरान का परमाणु संयंत्र पूरी तरह से ऑफलाइन था, इसलिए मालवेयर को इसमें ऑनलाइन नहीं अपलोड किया जा सकता था. इसलिए एक यूएसबी ड्राइव के जरिए एक एजेंट ने इसे संयंत्र में डाला. संयंत्र के सॉफ्टवेयर में खुद को छिपाते हुए काम करने लगा पर अपनी लाख कोशिशों के बावजूद यह ईरान के सिस्टम को केवल धीमा कर पाया. इसके बाद अमेरिकी शोधकर्ताओं ने इसका नया वर्जन तैयार किया. यह ऑफलाइन नेटवर्क में तेजी से फैल सकता था और सेंट्रीफ्यूज को रीप्रोग्राम करने में सक्षम था, जिससे वह खुद ही तबाह हो जाए.
ईरान के संयंत्र में सीआई-मोसाद के एक इंसाइडर एजेंट ने नए वर्जन के मालवेयर को डाला, जो देखते ही देखते पूरे संयंत्र के नेटवर्क पर काबिज हो गया. हालांकि, इसका प्रभाव केवल परमाणु संयंत्र तक नहीं रहा और यहां पूरे ईरान के साथ ही दुनिया भर के कंप्यूटर में फैल गया. स्टक्स्नेट के अनियंत्रित होने के बावजूद सीआईए ने अपना ऑपरेशन नहीं रोका, क्योंकि उसे भरोसा था कि नाटांज में कभी इसकी मौजूदगी का पता नहीं चलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ.
साइबर सिक्योरिटी फर्म सिमैंटेक ने इसे पकड़ लिया और इस मालवेयर पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी जारी की. ईरान को भी इसका आभास हो गया और उसने अपने परमाणु कार्यक्रम को सुरक्षित करने के लिए तमाम उपाय कर लिए. मालवेयर द्वारा पहुंचाए गए नुकसान के बावजूद ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखने में सफल रहा.
दरअसल, साल 2009 तक ईरान ने अपने नाटांज संयंत्र में 7000 सेंट्रीफ्यूज स्थापित किए थे, जिनसे से केवल 1000 को ही स्टक्स्नेट नुकसान पहुंचा पाया था. ईरान ने इससे प्रभावित उपकरणों को बदल दिया. इससे उसके परमाणु कार्यक्रम में सालों का विलंब हुआ.