ग्वालियर। विश्व नदी दिवस हर साल नदियों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व का सम्मान करने के लिए मनाया जाने वाला एक विशेष अवसर है। यह लोगों को नदियों को संरक्षित करने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करता है। ऐसे में कुछ जागरूक लोगों ने शहर के बीच से निकली मुरार नदी को जीवित करने का बीड़ा उठाया है। इससे लगभग खत्म हो चुकी नदी के जिंदा होने की उम्मीद फिर से जग उठी है। यह जन सहभागिता से संभव हो रहा है।

जन प्रतिनिधियों की मेहनत और आमजन की जागरूकता से करीब एक किलोमीटर हिस्से में नदी प्रवाहित होती दिखाई दे रही है। अभी भी मुरार नदी के कुछ हिस्से अतिक्रमण की चपेट में है। इस कारण इसे नाले से नदी बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल ने मुरार नदी को बचाने के लिए पसीना बहाया है। हुरावली क्षेत्र में जिस रूप में यह नदी आज दिखाई दे रही है उसके पीछे पूर्व विधायक के साथ आमजन की मेहनत है।

नमामि गंगे प्रोजेक्ट से भी मिलेगा नदी को जीवन

केंद्र सरकार के ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ के तहत इस नदी के जीर्णोद्धार के लिए लगभग 40 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। इस प्रोजेक्ट के तहत मुरार नदी को सुंदर व रमणीय स्थल में परिवर्तित करने के लिए कई कार्य किए जाएंगे, लेकिन इस पूरे प्रोजेक्ट में सबसे अहम काम है। नदी के अंदर सीवर व नालों की गंदगी को रोकना।

इन चुनौतियों से करना होगा सामना

मुरार नदी में करीब 24 नाले मिलते हैं, साथ ही थाटीपुर व मुरार के काफी हिस्से की सीवरेज सीधे नालों के जरिए बहकर मुरार नदी में आती है। इस चुनौती का सामना इसे नवजीवन देने के दौरान करना पड़ेगा। इतना ही नहीं 80 फीट चौड़ी मुरार नदी वर्तमान समय में अतिक्रमण और कचरा डंप होने के कारण सिकुड़ गई है, लेकिन कड़े संघर्ष के बाद नदी का कुछ हिस्सा अतिक्रमण से मुक्त कराकर जीवित अवस्था में लाने का प्रयास हुआ है।

नदी का ऐतिहासिक महत्व

बताते हैं कि वर्ष 1754 से पहले यह नदी सातऊं की पहाड़ी से निकलती थी। इस नदी पर चार बांध कछाई, जड़ेरुआ, बहादुरपुर, गुठीना पर बने हैं। यह नदी जड़ेरुआ से रमौआ बांध के रास्ते में डिफेंस एरिया नाला, काल्पी ब्रिज, नदी पार टाल, गांधी रोड, मेहरा गांव नाला, हुरावली ब्रिज, पृथ्वी नगर, सिरोल गांव, डोंगरपुर रोड, अलापुर नाला, डोंगरपुर रोड, बाइपास ब्रिज से गुजरती है। 1985 से पूर्व इस नदी में साफ पानी बहता था।