नूरपुरबेदी: जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में शहीद हुए ब्लॉक नूरपुरबेदी के गांव झज्ज के लांस नायक बलजीत सिंह का आज गांव के श्मशानघाट में सरकारी व सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान शहीद की अंतिम यात्रा में राजनीतिक हस्तियों के अलावा जिले के प्रशासनिक व सिविल अधिकारियों सहित लोगों का भारी जन सैलाब उमड़ा।

बता दें कि भारतीय सेना की 57 इंजीनियर रेजिमेंट की द्वितीय पैरा स्पेशल फोर्स में तैनात 29 वर्षीय लांस नायक बलजीत सिंह पुत्र संतोख सिंह मंगलवार को ड्यूटी के दौरान उस समय शहीद हो गए थे, जब मंजाकोट क्षेत्र में दुश्मनों से मुठभेड़ के दौरान सेना का वाहन दुर्घटनाग्रस्त होकर 200 फीट गहरी खाई में गिर गया था। इस वाहन में सवार 4 अन्य जवान गंभीर रूप से घायल हो गए थे जबकि इस हादसे में सैनिक बलजीत सिंह शहीद हो गए। ड्यूटी के दौरान सैनिक बलजीत सिंह पी.एम.के.जी. गन पर तैनात थे।

आज सबसे पहले भारतीय सेना के अधिकारियों ने जवान के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर उनके गृह गांव झज्ज पहुंचाया। जहां पारिवारिक सदस्यों के अलावा अधिकारियों व लोगों ने शहीद को अंतिम श्रद्धांजलि दी। इसके बाद शहीद के पार्थिव शरीर को श्मशानघाट लाया गया, जहां चंडीमंदर से पहुंची सेना की टुकड़ी ने हवा में फायर कर शहीद को सलामी दी।

इसके बाद पंजाब सरकार की तरफ से पहुंचे एस.डी.एम. श्री आनंदपुर साहिब राजपाल सिंह सेखों, नायब तहसीलदार रितु कपूर, डी.एस.पी. अजय सिंह, एस.एच.ओ. गुरविंदर सिंह ढिल्लों के अलावा विधायक चड्ढा के पिता राम प्रसाद पाली चड्ढा जो कि राजनीतिक व सामाजिक शख्सियतों में शामिल हैं, ने शहीद को फूल मालाएं अर्पित की। वहीं रूपनगर के विधायक दिनेश चड्ढा, पूर्व विधायक अमरजीत सिंह संदोआ, अजयवीर सिंह लालपुरा, तिलक राज पम्मा, स्वतंत्र सैनी, जेपीएस ढेर, दिलबारा सिंह बाला, गौरव राणा, दीपक पुरी, गुरजीत गोल्डी कलवां व सतनाम झज्ज समेत बड़ी संख्या में लोगों ने शहीद को नमन किया। इससे पहले क्षेत्र के सभी स्कूलों के विद्यार्थियों ने सड़कों पर खड़े होकर शहीद के वाहन पर पुष्प वर्षा की। उसके बाद सैनिक के भाई सुलखन सिंह ने चिता को मुखाग्नि दी।

शहीद की पत्नी व मां का रो-रो कर हुआ बुरा हाल

गौरतलब है कि 10 वर्ष पूर्व सेना में भर्ती हुए सैनिक की करीब 1 वर्ष पूर्व शादी हुई थी। विधवा पत्नी अमनदीप कौर के हाथों की मेहंदी भी नहीं सूखी थी, का रो-रो कर बुरा हाल था। इसके अलावा उनकी मां सुखविंदर कौर भी गहरे सदमे में थीं। जिन्हें संभालने में परिवार जुटा हुआ था। जबकि सैनिक के पिता की पहले ही मौत हो चुकी है। इस गमगीन माहौल में हर व्यक्ति व ग्रामीण की आंखें नम थी।