हरियाणा के सियासी लैब में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने नया फॉर्मूला तैयार किया है. 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस फार्मूले से कांग्रेस बीजेपी को कांटे की टक्कर देने में सफल रही था, उसी राजनीतिक समीकरण के जरिए विधानसभा चुनाव की जंग जीतने की बिसात बिछाई है. इस बात को कांग्रेस और बीजेपी के घोषित उम्मीदवारों की लिस्ट से बखूबी समझा जा सकता है, क्योंकि टिकट वितरण में दोनों दलों ने सीट के जातीय समीकरण के लिहाज से उम्मीदवार उतारे हैं. ऐसे में देखना है कि हरियाणा चुनाव में किसकी सोशल इंजीनियरिंग हिट रहती है?
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अभी तक 67 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है.कांग्रेस ने सिर्फ 41 सीट पर ही कैंडिडेट के नाम घोषित किए हैं. बीजेपी ने गैर-जाट जातियों को साधकर 2014 और 2019 में जीत का परचम फहरा चुकी है लेकिन इस बार जाट वोटों को अपने पाले में करने का दांव चला है. इसलिए बीजेपी ने ओबीसी, ब्राह्मण, पंजाब, दलित के साथ जाट समुदाय के उम्मीदवारों पर भी भरोसा जताया है. बीजेपी की इस जातीय समीकरण को मात देने के लिए कांग्रेस ने जाट, दलित और ओबीसी पर खास फोकस किया है. इन्हीं समुदाय से ज्यादातर उम्मीदवारों को उतारा है.
बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग
बीजेपी अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए लगातार दो बार हरियाणा में सरकार बना चुकी है और अब सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए उतरी है. बीजेपी ने इस बार जाट समुदाय को भी साधने का दांव चला है. इसलिए बीजेपी ने अपने 67 उम्मीदवारों की सूची में जाट, ओबीसी, दलित के साथ ब्राह्मण और पंजाबी समुदाय को भी महत्व दिया है. बीजेपी की 67 उम्मीदवारों में से 46 टिकट ओबीसी, जाट, दलित और ब्राह्मणों के हिस्से आए हैं. बीजेपी ने ओबीसी समुदाय को 20 फीसदी टिकट दिए हैं तो जाट समुदाय को 19 फीसदी, पंजाब को 12 फीसदी, ब्राह्मण समुदाय को 13 फीसदी, दलित समुदाय को 19 फीसदी और वैश्य समुदाय को सात फीसदी टिकट दिए हैं.
ओबीसी पर खेला दांव
बीजेपी ने 16 टिकट ओबीसी जातियों को दिए हैं, जिसमें पांच गुर्जर और पांच यादव शामिल हैं. इसके अलावा कुम्हार, राजपूत, कश्यप और सैनी को भी टिकट देकर बड़ा दांव खेला है. बीजेपी ने सीएम नायब सिंह सैनी को आगे करके पहले ही ओबीसी पर दांव खेलने के संकेत दिए थे. बीजेपी पिछले दो चुनावों में ब्राह्मण और पंजाब कॉम्बिनेशन के साथ सत्ता हासिल करने में कामयाब रही. इसी वजह से एक बार फिर बीजेपी ने नौ ब्राह्मण और 8 पंजाबी प्रत्याशी उतारकर बड़ा दांव चला है.
जातीय समीकरण को साधा
हरियाणा की सियासत में बीजेपी ने मजबूत सोशल इंजीनियरिंग का खाका खींचने के लिए 13 सीटों पर जाट समुदाय के प्रत्याशी उतारे है.पिछले चुनाव में हारने वाले जाट समुदाय के ओम प्रकाश धनखड़ को बादली और कैप्टन अभिमन्यु को नारनौंद सीट से टिकट देकर जाट समुदाय के सियासी संदेश देने की कवायद की है.बीजेपी ने इस बार जिस तरीके से जाटों को साधने की सियासी जुगत भिड़ाई है उससे राजनीतिक मकसद जगजाहिर है. बीजेपी ने 13 आरक्षित सीटों पर दलित उम्मीदवार उतारे हैं तो पांच सीटें वैश्य समुदाय को दी हैं. दो राजपूत और एक सिख को भी अपनी पहली सूची में जगह देकर बीजेपी ने जातीय समीकरण को साधने का दांव चला है.
कांग्रेस का क्या है सोशल फॉर्मूला?
हरियाणा की सियासत में बीजेपी के राजनीतिक उभार के बाद से कांग्रेस लगातार जाट-दलित समीकरण पर काम कर रही है. कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में अपनी वापसी के लिए इसी फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. कांग्रेस ने 41 उम्मीदवारों की सूची अभी तक घोषित की है, जिसमें 29 फीसदी टिकट जाट समुदाय के दिए हैं, उसके बाद 22 फीसदी टिकट दलित समुदाय से हैं. कांग्रेस ने 22 फीसदी टिकट ओबीसी और सात फीसदी मुस्लिम, सात फीसदी ब्राह्मण और नौ फीसदी के करीब पंजाबी समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं. कांग्रेस के उम्मीदवारों के जरिए कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग को समझा जा सकता है.
कांग्रेस ने चला बड़ा सियासी दांव
कांग्रेस ने अभी तक 12 जाटों को उम्मीदवार बनाया है. ओबीसी समुदाय से 9 उम्मीदवार अभी उतारे हैं. इसके बाद 9 दलित समुदाय को टिकट कांग्रेस ने दिए हैं. तीन मुस्लिम, चार पंजाबी, तीन ब्राह्मण, एक सिख समुदाय को टिकट दिया है. कांग्रेस ने हरियाणा के जातीय समीकरण के लिहाज से टिकट दिए हैं, जिस जाति की जितनी आबादी, उसे उतने ही टिकट दिए हैं. इस तरह कांग्रेस ने जाट और दलित के साथ ओबीसी समुदाय के लोगों को टिकट देकर बड़ा सियासी दांव चला है.
कांग्रेस का फोकस जाट-दलित
कांग्रेस ने जाट-दलित फॉर्मूले को जमीन पर उतारने के लिए संगठन की कमान हरियाणा में दलित समुदाय के हाथों में 2014 से ही दे रखी है. पहले अशोक तंवर, उसके बाद कुमारी शैलजा और अब उदयभान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं, तीनों ही नेता दलित समुदाय से आते है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस आगे करके चुनाव मैदान में उतरी है, जो जाट समुदाय से आते हैं. इस तरह कांग्रेस का पूरा फोकस जाट और दलितों समुदाय के वोटों परं है, इसी समीकरण के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस समीकरण के जरिए सियासी बिसात बिछा रही है.
मुसलमान किसके साथ जाएंगे
बीजेपी की पहली सूची में किसी भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया है. हालांकि, बीजेपी ने मेवात की मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. वहीं, कांग्रेस ने मेवात की सभी सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. तीनों सीटों पर मौजूदा मुस्लिम उम्मीदवारों को पार्टी ने फिर से मौका दिया है. हरियाणा में सात फीसदी के करीब मुस्लिम है और टिकट भी उनकी आबादी के लिहाज से पार्टी ने दिए हैं. 2019 चुनाव में कांग्रेस ने दो मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे, लेकिन जीत नहीं सके. इस बार भी कई मुस्लिम नेता बीजेपी से टिकट की दावेदारी कर रखी है.
कांग्रेस की ओर मुस्लिमों का झुकाव
हरियाणा में मुस्लिम समुदाय की आबादी सात फीसदी के करीब है और छह विधानसभा सीटों पर निर्णायक स्थिति में है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मेवात इलाके की सीटों पर मुस्लिमों का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहा है. 2023 में नूंह इलाके में हुए दंगे के बाद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है. मुस्लिमों का झुकाव कांग्रेस की तरफ हुआ है जबकि इससे पहले तक उनके वोटों में बिखराव होता रहा है. विधानसभा चुनाव में देखना है कि मुस्लिमों का झुकाव किसकी तरफ रहता है?
हरियाणा का जातीय समीकरण
हरियाणा की सियासत में सबसे अहम भूमिका जाट समुदाय की है. जाट समुदाय की आबादी करीब 28 से 30 फीसदी के करीब है. कांग्रेस ने उम्मीदवार भी उसी लिहाज से उतारे हैं. इसके बाद 20 फीसदी के करीब दलित समुदाय के है और कांग्रेस ने उनकी आबादी से ज्यादा टिकट दिए हैं. बीजेपी ने ऐसे ही सबसे ज्यादा ओबीसी, उसके बाद जाट और फिर दलित समुदाय को टिकट दिए हैं. इसके अलावा बीजेपी ने ब्राह्मण और पंजाबी समुदाय को टिकट देकर समीकरण बनाने की कोशिश की है. बीजेपी ने इस बार ओबीसी-जाट-दलित-ब्राह्मण-पंजाबी समीकरण बनाने का दांव चला है तो कांग्रेस ने जाट-दलित-ओबीसी के साथ मुस्लिम और अन्य जातियों को भी साधने की स्ट्रैटेजी बनाई है. कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने जातीय समीकरण के लिहाज से उम्मीदवार उतारे हैं. ऐसे में देखना है कि किसकी सोशल इंजीनियरिंग कामयाब होती है?