श्री जगन्नाथ मंदिर, जिसे श्रीमंदिर के नाम से भी जाना जाता है, उड़ीसा के पुरी में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. इस मंदिर की सबसे बहुमूल्य संपत्ति है ‘श्री रत्न भंडार’. मंदिर के नियमों और प्रथाओं के अनुसार, श्री जगन्नाथ महाप्रभु को अर्पित की गई सभी सोने, रत्नों आदि को रत्न भंडार में संग्रहीत किया जाता है. यह खजाना जगन्नाथ मंदिर को विश्वभर के भक्तों द्वारा किए गए योगदान और दानों से समृद्ध हुआ है. रत्न भंडार मंदिर के जगमोहन के उत्तर की ओर स्थित है.
रत्न भंडार जगन्नाथ मंदिर का खजाना कक्ष है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विभिन्न आभूषण और रत्न रखे गए हैं. इसमें सोने और चांदी के मुकुट, रत्नजड़ित कंगन और हार, विभिन्न प्रकार के बर्तन अन्य आभूषण और अनमोल धार्मिक कलाकृतियां शामिल हैं. रत्न भंडार में मौजूद खजाने का सटीक मूल्यांकन करना कठिन है, क्योंकि इसे बहुत कम बार खोला गया है और यह रहस्य से घिरा हुआ है. हालांकि, इसकी कीमत अरबों रुपये में मानी जाती है.
इसलिए बंद है रत्न भंडार
रत्न भंडार 1978 से सुरक्षा कारणों और इसमें रखे गए कीमती सामानों की सुरक्षा के लिए बंद किया गया है. हाल के वर्षों में इसे खोलने के प्रयास हुए हैं, लेकिन तकनीकी और सुरक्षा कारणों से ये सफल नहीं हो पाए. 2018 में मंदिर प्रशासन ने इसे खोलने का प्रयास किया, लेकिन भीतर प्रवेश नहीं कर सके.
दो कक्षों में है संग्रहित
मंदिर के नियमों और प्रथाओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ को अर्पित किए गए सभी सोने और आभूषणों को रत्न भंडार के दो कक्षों आंतरिक कक्ष और बाहरी कक्ष में संग्रहीत किया जाता है. बाहरी कक्ष को देवताओं के विभिन्न अनुष्ठानों के लिए खोला जाता है और वहां रखे गए आभूषणों और कीमती वस्तुओं का उपयोग भगवान जगन्नाथ के ‘सुनाबेशा’ (सोने के वस्त्र) के दौरान किया जाता है. आंतरिक कक्ष को 1978 के बाद से नहीं खोला गया है, जब इसे आखिरी बार सूची बनाने के लिए खोला गया था.
आंतरिक कक्ष का ऑडिट
जगन्नाथ मंदिर अधिनियम के अनुसार, रत्न भंडार के आंतरिक कक्ष में रखे गए सभी कीमती सामानों का हर तीन साल में एक ऑडिट होना चाहिए. हालांकि, 1978 के बाद से आंतरिक कक्ष का कोई उचित ऑडिट नहीं हुआ है. मंदिर के आधिकारिक क्रॉनिकल ‘मदाला पंजी’ के अनुसार, राजा अनंगभीम देव ने भगवान जगन्नाथ के सोने के आभूषण बनाने के लिए 250 किलोग्राम से अधिक सोना दान किया था.
मौजूदा आभूषण और अन्य वस्तुएं
इस वर्ष जनवरी में उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में, मंदिर प्रशासन ने कहा कि रत्न भंडार में लगभग 149.47 किलोग्राम सोने के आभूषण और 198.79 किलोग्राम चांदी के आभूषण और बर्तन हैं. पिछले साल सितंबर में, ओडिशा उच्च न्यायालय ने रत्न भंडार में रखे आभूषणों सहित कीमती वस्तुओं की सूची तैयार करने की निगरानी के लिए एक उच्च शक्ति समिति के गठन का आदेश दिया था, जिसके बाद इस वर्ष फरवरी में पिछली सरकार ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरिजित पसायत की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय समिति का गठन किया था. समिति के अन्य सदस्यों में प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. रमाकांत पांडा, पूर्व इलाहाबाद बैंक के CMD बिधुभूषण सामल, पुरी गजपति महाराजा दिव्यसिंह देव और मंदिर के विभिन्न सेवायत शामिल हैं.
राजनीतिक मुद्दा
रत्न भंडार की चाबी के गायब होने का मामला 2018 में प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया था. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने विधानसभा चुनावों के दौरान इस मामले को उछाला और इसे ‘ओड़िया अस्मिता’ (ओड़िया गर्व) से जोड़कर जनता दल (बीजेडी) को मात देने का प्रयास किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य शीर्ष भाजपा नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान रत्न भंडार की चाबी के गायब होने का मुद्दा उठाया था.
ऐतिहासिक दान
इतिहास में विभिन्न राजा-रानियों और धनी व्यक्तियों ने मंदिर को कई कीमती वस्तुएं और आभूषण दान किए हैं. विशेष रूप से, गजपति राजवंश के राजाओं का इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उदाहरण के लिए, राजा अनंगभीम देव ने भगवान जगन्नाथ के सोने के आभूषण बनाने के लिए 250 किलोग्राम से अधिक सोना दान किया था. ‘मदला पंजी’ (उत्कल विश्वविद्यालय प्रकाशन-पृष्ठ 31) के अनुसार, राजा अनंगभीम देव ने भगवान जगन्नाथ के सोने के आभूषण तैयार करने के लिए 2,50,000 ‘मधास’ (1 मधा = 1/2 तोला = 5.8319 ग्राम) सोना दान किया था.
इन्होनें भी दिया था दान
उड़ीसा के सूर्यवंशी शासकों ने भी भगवान जगन्नाथ के लिए कीमती आभूषण और सोना दान किया. जगन्नाथ मंदिर की दीवार पर एक शिलालेख में लिखा है कि गजपति कपिलेंद्र देव ने 1466 ईस्वी में भगवान जगन्नाथ को बड़ी मात्रा में सोने और रत्नों के आभूषण और बर्तन दान किए थे. प्रसिद्ध इतिहासकार आर.डी. बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘उड़ीसा का इतिहास’ (पृष्ठ 30) में उल्लेख किया है कि 1466 ईस्वी में भगवान को दिए गए कई आभूषण 1893 में भी उपयोग में थे.
हुंडी और अन्य दान
मंदिर के नाटा मंडप में 23 अगस्त 1983 को एक हुंडी स्थापित की गई थी. भक्तजन इस हुंडी में सोना, चांदी और नकद दान करते हैं. जगन्नाथ मंदिर प्रशासन द्वारा प्रकाशित एक बयान के अनुसार, अक्टूबर 2009 तक हुंडी से 980.990 ग्राम सोना और 50,217.832 ग्राम चांदी एकत्र की गई थी. भक्तजन ‘सहान मेला’ दर्शन और ‘परिमाणिक’ दर्शन के दौरान रत्न सिंहासन पर रखे ज्हारिस पिंडिका में भी सोने और चांदी के आभूषण दान करते हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि हुंडी और पिंडिका से एकत्र किए गए सोने और चांदी के आभूषण रत्न भंडार में रखे जाते हैं या कहीं और. इनका उचित मूल्यांकन किया जा रहा है या नहीं, यह भी अनिश्चित है.
रत्न भंडार की सुरक्षा
रत्न भंडार की सुरक्षा का जिम्मा मंदिर प्रशासन के पास है. इसके अलावा, ओडिशा सरकार की पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां भी इसकी सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी और निगरानी में रखी जाती है.
जरूरी है रत्न भंडार की सुरक्षा और पारदर्शिता!
रत्न भंडार के कीमती सामग्रियों का उचित मूल्यांकन और सुरक्षित संरक्षा आवश्यक है. भक्तों के मन में किसी प्रकार का संदेह न हो, इसके लिए पारदर्शी तरीके से रत्न भंडार की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए. रत्न भंडार के आभूषणों का समय-समय पर उचित मूल्यांकन और ऑडिट होना चाहिए, ताकि इसके सुरक्षित संरक्षा के साथ-साथ भक्तों की श्रद्धा और विश्वास बना रहे. रत्न भंडार के भीतर और बाहरी खजानों की सूची और उनका विवरण स्पष्ट रूप से सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि भक्तों को यह भरोसा हो सके कि उनके द्वारा अर्पित की गई वस्तुएं सही ढंग से संरक्षित की जा रही हैं.
खजाना नहीं, बल्कि ओडिशा की संस्कृति, इतिहास और श्रद्धा का प्रतीक है रत्न भंडार
जगन्नाथ पुरी का रत्न भंडार केवल एक खजाना नहीं, बल्कि ओडिशा की संस्कृति, इतिहास और श्रद्धा का प्रतीक है. इसके भीतर छिपे अनमोल रत्न और आभूषण न केवल ऐतिहासिक महत्व रखते हैं, बल्कि भक्तों की अपार श्रद्धा और भक्ति का भी प्रतीक हैं. रत्न भंडार की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार और मंदिर प्रशासन को मिलकर काम करना चाहिए. भक्तों का विश्वास बनाए रखने और उनकी आस्था का सम्मान करने के लिए रत्न भंडार की सभी संपत्तियों का समय-समय पर उचित मूल्यांकन और ऑडिट किया जाना चाहिए. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मंदिर की संपत्ति सही ढंग से संरक्षित रहे और इसके प्रबंधन में किसी प्रकार की लापरवाही न हो.