आखिर Somnath Mandir क्यों है प्रसिद्ध? जाने इनका इतिहास

 इतनी बार ध्वस्त किया गया, फिर भी शान से खड़ा है Somnath Mandir, जाने इनका इतिहास
 
आखिर Somnath Mandir​​​​​​​ क्यों है प्रसिद्ध? जाने इनका इतिहास

सोमनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ था

सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है जो भारत के गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है यह एक अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है जो हिंदुओं के देवता भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

वर्तमान सोमनाथ मंदिर की स्थापना की आधारशिला राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को रखी इसके बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 11 मई 1951 को इस मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना की 1962 में यह मंदिर पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया।

इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस सोमनाथ मंदिर में स्थापित भगवान शिव इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते है।

सोमनाथ मंदिर का इतिहास ( history of Somnath Temple )


सोमनाथ मंदिर गुजरात के पश्चिमी तट पर वेरावल बंदरगाह के निकट स्थित है इस मंदिर इतिहास में उत्थान और पतन का प्रतीक माना जाता है क्योंकि प्राचीन समय में इस विशाल और भव्य सोमनाथ मंदिर पर मुस्लिम और पुर्तगालियों ने कई बार आक्रमण कर इसे ध्वस्त किया तो दूसरी ओर कई हिन्दू शासकों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण भी करवाया। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कहा जाता है कि यह भव्य मंदिर एक ईसा से भी पहले से आस्तित्व में था इस मंदिर की प्रारंभिक स्थापना का कोई भी ऐतिहासिक और प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है इतिहास में ऐसा कहा गया है कि करीब 7 वीं शताब्दी में वल्लभी के मैत्रिक सम्राटों ने सोमनाथ मंदिर का दूसरी बार निर्माण करवाया था। इसके बाद आठवीं शताब्दी में 725 ईसवी के करीब सिंध के अरबी शासक अल-जुनायद ने इस वैभवशाली मंदिर पर हमला कर इसे ध्वस्त कर दिया था हालांकि इतिहास में इस मंदिर पर सिंध के अल-जुनायद के हमला करने का कोई भी ठोस प्रमाण नहीं है।

जिसके बाद 9वीं शताब्दी में 815 ईसवी के करीब गुर्र प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इस मंदिर का तीसरी बार निर्माण करवाया था उन्होंने लाल पत्थरों का उपयोग कर इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। 

11वीं शताब्दी में इस मंदिर पर पुनः एक बार आक्रमण हुआ 1024 ईसवी में महमूद गजनवी ने अपने करीब 5 हजार साथियों के साथ इस वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर दिया था और इस मंदिर से करोड़ों की संपत्ति लूटी। 

महमूद गजनवी ने न सिर्फ इस मंदिर की करोड़ों की संपत्ति लूटी बल्कि इस मंदिर के शिवलिंग और मूर्तियो को भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया सिर्फ यहीं नहीं उसने इस लूट में हजारों बेकसूर लोगों की भी हत्या कर दी महमूद गजनवी के द्वारा सोमनाथ मंदिर पर किया गया यह हमला इतिहास में भी वर्णित है।

भारत यात्रा पर आए अरबी यात्री अलबेरूनी ने भी अपने यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर की इस विशाल भव्यता और समृद्धता का वर्णन किया है।

सोमनाथ मंदिर पर गजनवी द्वारा आक्रमण करने के बाद इस मंदिर का चौथी बार पुर्नर्निमाण मालवा के राजा भोज और सम्राट भीमदेव ने करवाया इसके प्रश्चात सिद्धराज जयसिंह ने 1093 ईसवी में इस मंदिर की प्रतिष्ठा और निर्माण में अपना योगदान दिया।

1168 ईसवी में विजयेश्वरे कुमारपाल और सौराष्ट्र के सम्राट खंगार ने भी इस मंदिर के निर्माण का कार्य किया उन्होंने इस मंदिर के सौंदर्यीकरण को अच्छा बनाने पर जोर दिया। इसके बाद दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने 1297 ईसवी में गुजरात पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के दौरान इस मंदिर को ध्वस्त कर इस मंदिर की प्रतिष्ठित शिवलिंग को खंडित कर दिया इसके साथ ही उसने इस मंदिर में जमकर लूटपाट भी की।

इसके प्रश्चात भी इस मंदिर का उत्थान और पतन का सिलसिला जारी रहा। गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने 1395 ईसवी में इस मंदिर में लूटपाट की और फिर 1413 ईसवी में उसके बेटे अहमदशाह ने भी इस मंदिर पर हमला किया।

17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने भी अपने शासनकाल के दौरान इस मंदिर पर दो बार आक्रमण किया 1665 ईसवी में उसने इस मंदिर पर अपना पहला आक्रमण किया जबकि 1706 ईसवी में उसने इस मंदिर पर दूसरा आक्रमण किया किया दूसरे हमले में औरंगजेब ने न सिर्फ इस मंदिर को ध्वस्त किया बल्कि यहां जमकर लूटपाट और कई लोगों की हत्या भी कर दी।

18वीं सदी के अंत में 1783 ईसवी में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई ने सोमनाथ जी के मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर सोमनाथ महादेव जी के एक और मंदिर का निर्माण करवाया। 

इस वर्तमान मंदिर का निर्माण भारत के पूर्व गृह मंत्री स्वर्गीय सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने करवाया था  सन् 1951 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने इस मंदिर में ज्योर्तिलिंग की स्थापना की।

साल 1962 में भगवान शिवजी को समर्पित यह मंदिर पूर्ण रुप से बनकर तैयार हो गया इसके बाद भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 1 दिसंबर 1995 को राष्ट्र की आम जनता को यह मंदिर समर्पित कर दिया  वर्तमान समय में यह मंदिर हिंदुओं का एक विशाल और भव्य तीर्थ स्थल है और वर्तमान समय में यह मंदिर  लाखों हिंदुओं की आस्था का केन्द्र है।

सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा


सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था जिसका उल्लेख हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से किया गया है इस ग्रंथ के अनुसार सोम यानि चंद्रदेव ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ विवाह किया था इस प्रकार चंद्रदेव की 27 पत्नियां थी।

इन सभी पत्नियों में से वे सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे चंद्रदेव रोहिणी को जितना प्रेम और सम्मान देते थे उतना सम्मान वे अपनी शेष 26 पत्नियों को नही देते थे अपनी पुत्रियों के साथ हो रहे इस अन्याय को देखकर राजा दक्ष अत्यंत क्रोधित हुए उन्होंने क्रोध में आकर चंद्रदेव को यह श्राप दिया कि उनका तेज यानी चमक प्रत्येक दिन घटता जाएगा और जिस दिन उनका तेज समाप्त हो जाएगा उस दिन उनका अंत हो जाएगा।

श्राप के कारण प्रत्येक दूसरे दिन चंद्रदेव का तेज घटता जा रहा था जिसके कारण चंद्रदेव अत्यंत दुखी और विचलित रहने लगे। 

इस श्राप से मुक्त होने के लिए चंद्रदेव ने भगवान शिव की कठोर आराधना शुरू की चंद्र देव की आराधना से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए भगवान शिव ने चन्द्रदेव को न सिर्फ राजा दक्ष के द्वारा दिए हुए श्राप सेे मुक्त किया बल्कि उन्हें अमरत्व का भी वर प्रदान किया ।

भगवान शिव ने चंद्रदेव को यह वरदान दिया कि कृष्णपक्ष में चन्द्रदेव की चमक कम होगी जबकि शुक्ल पक्ष में उनकी चमक बढ़ेगी और प्रत्येक पूर्णिमा को उन्हें अपना पूर्ण चंद्रत्व का स्वरूप प्राप्त होता रहेगा और प्रत्येक अमावस्या को वह पूर्ण रुप से छीन हो जाएंगे।

इसके प्रश्चात चन्द्रदेव ने भगवान शिव से माता पार्वती के साथ गुजरात के इस स्थान पर निवास करने की विनती की जिसके बाद भगवान शिव ने चन्द्रदेव की आराधना को स्वीकार किया जिसके बाद भगवान शिव माता पार्वती के साथ ज्योतर्लिंग के रुप में यहां आकर रहने लगे।

चंद्रदेव ने गुजरात के पावन प्रभास क्षेत्र में भगवान शिव को समर्पित इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया  इस मंदिर की महिमाा विश्व भर में इसके अतिरिक्त इस सोमनाथ मंदिर की ज्योतिर्लिंग की महिमा का उल्लेख हिन्दू धर्म के महाकाव्य  श्रीमद्धभागवत, महाभारत और स्कंदपुराण आदि में किया गया है।

सोमनाथ मंदिर की विशेषता


गुजरात में स्थित इस सोमनाथ मंदिर सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इस नष्ट और पुननिर्माण है इतिहास की माने तो अब तक 17 बार इस मंदिर पर आक्रमण कर इसे ध्वस्त किया जा चुका है और प्रत्येक बार इस मंदिर का फिर से पुननिर्माण किया गया एक और कई विदेशी और अरबी आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर हमला कर इसे लूटा और इसे ध्वस्त किया वहीं दूसरी ओर कई हिंदू शासको ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण भी करवाया भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के प्रथम गृह मंत्री स्वर्गीय सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया ।

सोमनाथ मंदिर की रूपरेखा


इस मंदिर की रूपरेखा भी इसकी विशेषता को कई गुना बढ़ा देती है सोमनाथ मंदिर तीन प्रमुख भागों गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप में विभाजित है। इस मंदिर का शिखर 150 फुट ऊंचा है तथा इस मंदिर के शिखर पर स्थित कलश का भार 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊॅंची है।

इस मंदिर की वास्तुकला के कारण यह मंदिर सभी के लिए एक आकर्षण का केंद्र है सोमनाथ मन्दिर के निकट दो प्रमुख धार्मिक स्थल है जिसके कारण इस क्षेत्र का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है।

एक ओर इस मन्दिर से पांच किमी. की दूरी पर हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भालका तीर्थ स्थित है लोक कथाओं के अनुसार यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देह त्यागा था वहीं दूसरी ओर इस मंदिर से एक किलोमीटर दूरी पर तीन प्रमुख नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती नदी का महासंगम होता है इन तीन नदियों के महासंगम को त्रिवेणी कहा जाता है धार्मिक दृष्टि से इस त्रिवेणी नदी मैं में स्नान का काफी महत्त्व है क्योंकि हिन्दू मान्यता के अनुसार इसी त्रिवेणी पर श्रीकृष्ण जी की नश्वर देह का अंतिम संस्कार किया गया था।   

सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला


सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला अत्यंत ही भव्य है इस मंदिर का निर्माण चालुक्य स्थापत्य वास्तुशिल्प के आधार किया गया है इसके साथ ही इस मंदिर की बनावट को प्राचीन हिन्दू वास्तुकला का नायाब नमूना भी माना जाता है। 

इस मंदिर की जटिल और विस्तृत नक्काशी संरचना असाधारण दिखाई देती है इस मंदिर की अनूठी वास्तुकला एवं बनावट  यहां आने वाले भक्तों का ध्यान अपनी तरफ आर्कषित करती हैं। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में आर्कषक खंभे बने हुए हैं जिन्हें बाणस्तंभ कहा जाता हैं वहीं इस खंभे के ऊपर कलश के बीचों-बीच एक तीर रखा गया है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह तीर यह प्रदर्शित करता है कि इस पवित्र सोमनाथ मंदिर और पृथ्वी के दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का अन्य कोई भी हिस्सा नहीं है।

इस मंदिर के पत्थरों की दीवारों पर अनगिनत मूर्तियाँ उकेरी गयी है जो जीवंत दिखाई देती है देश और विदेश से करोड़ों श्रद्धालु इस मंदिर की वास्तुकला और भव्यता को देखने के लिए आते है । 

यह मंदिर सात मंजिलो में बना है जिसकी ऊंचाई लगभग 155 फ़ीट है इस मंदिर के सबसे ऊपर पत्थर से एक कलश का निर्माण किया गया है जिसका वजन करीब 10 टन है इसी के साथ इस मंदिर के शिखर पर लगी ध्वजा की लम्बाई 27 फुट है। 

मंदिर के प्रवेश द्वार के निकट एक फोटो गैलरी बनाई गई है इस फोटो गैलरी में मंदिर के खंडहर , उत्खनन और जीर्णोद्धार के तस्वीरें है । अंदर से यह मंदिर तीन भागो में विभाजित है मंदिर में प्रवेश करने पर पहले नृत्यमंडप आता है इसके बाद सभा मंडप स्थित है और अंत में मंदिर शिखर के नीचे गर्भगृह स्थित है जिसमें भगवान शिव को समर्पित ज्योतिर्लिंग स्थित है।

सोमनाथ मंदिर का क्षेत्रफल व आस-पास की जगहें


सोमनाथ मंदिर करीब 10 किलोमीटर के विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ है जिसमें करीब 42 मंदिर है। इस मंदिर में माता पार्वती, माता लक्ष्मी, मां गंगा, माता सरस्वती, और नंदी की मूर्तियां विराजित हैं।

 इस मंदिर के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की ऐक सुंदर मूर्ति स्थापित है।

इस मंदिर के परिसर में भगवान गणेश जी की एक अत्यंत सुंदर मंदिर स्थित है इसके साथ ही इस मंदिर में गौरीकुण्ड नामक सरोवर बना हुआ है इस सरोवर के निकट भगवान शिव का एक शिवलिंग भी स्थापित है। इसके अलावा सोमनाथ मंदिर के परिसर में माता अहिल्याबाई द्वारा निर्मित मंदिर और महाकाली का भी एक विशाल और सुंदर मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ मंदिर की प्रसिद्धि


हिंदुओं का एक विशाल तीर्थ स्थल होने के कारण सोमनाथ मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है प्रत्येक वर्ष देश और विदेश से करोड़ों श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं इस मंदिर की सुंदरता अत्यंत विशाल और भव्य है विश्व भर में इस मंदिर की प्रसिद्धि का सबसे प्रमुख कारण इस मंदिर का इस मंदिर का बार-बार नष्ट और पुनर्निर्माण होना है।


सोमनाथ मंदिर कैसे पहुंचे


सोमनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा साधन सड़क मार्ग है क्योंकि सड़क मार्ग द्वारा सोमनाथ मंदिर जाने के लिए कई विकल्प उपलब्ध है सोमनाथ कई छोटे – बड़े शहरों से घिरा हुआ है जिसके कारण इस मंदिर में जाने के लिए कई बस सेवाएं उपलब्ध है इन बसों की समय सीमा भी निर्धारित है गुजरात के राजकोट, पोरबंदर और अहमदाबाद जैसे शहरों के नजदीकी स्थानों से भी बसो के द्वारा सोमनाथ मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है इसके अतिरिक्त यहां जाने के लिए निजी बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

रेल मार्ग द्वारा सोमनाथ मंदिर कैसे पहुंचे


सोमनाथ मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ‘ वेरावल जंक्शन ‘ है जो इस मंदिर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है यह रेलवे स्टेशन अहमदाबाद, मुंबई और गुजरात के क‌ई अन्य महत्वपूर्ण शहरों के रेलमार्ग से भी जुड़ा है। एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों को मिलाकर वेरावल जंक्शन से प्रतिदिन 28 ट्रेनें गुजरती है जो इस जंक्शन में भी रूकती है वेरावल जंक्शन से सोमनाथ मंदिर पहुंचने के लिए आपको क‌ई ऑटो व टैक्सी मिल जाएंगे जिसके माध्यम से सोमनाथ मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।

हवाई मार्ग द्वारा सोमनाथ मंदिर कैसे पहुंचे


सोमनाथ मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा ‘ दीव हवाई अड्डा ‘ है जो इस मंदिर से से लगभग 63 किमी की दूरी पर स्थित है इस एयरपोर्ट से सोमनाथ मंदिर पहुंचने के लिए आपको नियमित बसें और लक्जरी बसें भी मिल जाएंगे। इसके अलावा इस मंदिर से 120 किलोमीटर दूरी पर पोरबंदर हवाई अड्डा एवं 160 किलोमीटर की दूरी पर राजकोट हवाई अड्डा स्थित है जहां से सोमनाथ मंदिर में आसानी से पहुंचा जा सकता है।