महुआ के फायदे, जानिए क्यों कहा जाता है महुआ को अमृत?

भारतीय लोक जीवन और आदिवासी परंपरा में महुए का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत में पाया जाने वाला महुए का पेड़ सर्वगुण संपन्न है। इसके फूल का रस ताकत देता है तो फल की स्वादिष्ट सब्जी बनाई जा सकती है।

 
महुआ के फायदे, जानिए क्यों कहा जाता है महुआ को अमृत?

भारतीय लोक जीवन और आदिवासी परंपरा में महुए का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत में पाया जाने वाला महुए का पेड़ सर्वगुण संपन्न है। इसके फूल का रस ताकत देता है तो फल की स्वादिष्ट सब्जी बनाई जा सकती है।

विशेष बात यह है कि इसके फल की गुठली से निकाला गया तेल खाने के काम तो आता ही है, साथ ही उसके अन्य उपयोग भी हैं। महुआ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह शरीर में ताकत का संचार करता है। आयुर्वेद ने महुए को विशेष माना है।

बड़ी बात यह है कि अब यह शहरों में भी मिलने लगा है और विभिन्न उत्पाद बेचने वाली बड़ी कंपनियां इसे आसानी से घरों तक पहुंचा रही हैं।


महुए के पेड़ की विशेषता यह है कि इसकी छाल, पत्ती, फूल, फल से लेकर गुठली तक उपयोग में आती हैं। इन सभी के अलग-अलग गुण हैं और आयुर्वेद में इन सभी के गुणों आदि की विस्तार से जानकारी दी गई है। इसका वानस्पतिक नाम Madhuca Longifolia/Mahua है और यह एक भारतीय उष्णकटिबन्धीय वृक्ष है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इसके पत्ते आमतौर पर वर्ष भर हरे रहते हैं। महुआ के पेड़ का प्राचीन भारतीय प्राचीन आदिवासी समाज का बहुत गहरा नाता है।

कहा जाता है कि जब भोजन की समस्या आती थी तो आदिवासी समाज महुआ के फूल-फल को खाकर अपना जीवन गुजारते थे। इस समाज के लोकगीतों में महुआ से जुड़े कई लोकगीत प्रचलित हैं।

एक लोकगीत की बानगी देखिए कि “मधुर मधुर रस टपके, महुआ चुए आधी रात। मनवा भइल मतवारा, महुवा बिनन सखी जात।” यानी आधी रात को महुआ के फूल पेड़ों से टपक रहे हैं और पूरा वन महुआ के पीलेपन से जुड़कर बौरा देने वाली सुगंध से मदमस्त हो रहा है। हे सखी, अब मैं महुआ बीनने जा रही हूं। यानी महुआ आदिवासी समाज के जीवन में गहराई से जुड़ा हुआ है। 

पहले इसके पेड़ की विशेषताएं जान लें. फरवरी से अप्रैल माह में महुआ के पेड़ पर पीले फूल आना शुरू हो जाते हैं। यह फूलों से पूरी तरह आच्छादित हो जाता है। जितने भी रसीले फूल खिलते हैं, जिनकी गंध बेहद मादक मानी जाती है। जब रात को फूल झड़ जाते हैं।

ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति ने पेड़ के नीचे पीला कालीन बिछा दिया हो। सुबह होते ही ग्रामीण इन फूलों को बीन लेते हैं। इन रसीले पीले फूलों को धोकर निचोड़ा जाए तो उनमें से ढेर सारा रस चू पड़ता है।

इस रस को आटे में डालकर उसका हलवा बनाया जाता है, पुए तले जाते हैं जो बेहद स्वादिष्ट होते हैं। इसके फूलों को सुखाने के बाद उन्हें बाजार में बेचा जाता है। ये सूखे फूल कई आयुर्वेदिक दवाओं व बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं।

महुआ के फल हरे लंबे बेर जैसे होते हैं। इनको छीलकर सफेद गूदे की पौष्टिक सब्जी बनाई जाती है तो फल में से निकले बीजों से तेल निकाला जाता है। इसमें पाए जाने वाले गुण देसी घी या मक्खन के समान होते हैं। तभी अंग्रेजी में इसके पेड़ को बटर ट्री (Butter Tree) भी कहा जाता है। आदिवासी लोग इसके तेल को भोजन में प्रयोग करने के अलावा गठिया, पुराने अल्सर, गलसुओं की सूजन (Tonsillitis) और मसूढ़ों की बीमारियों से बचने के लिए भी इस्तेमाल करते थे।


महुआ की उत्पत्ति की बात करें तो यह भारतीय उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। माना जाता है कि यह हजारों वर्षों से मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में उगता है। 

देश के कुछ अन्य भागों में इसके पेड़ मिलते हैं, लेकिन उनके फूल-फल की क्वॉलिटी थोड़ी कमजोर होती है। आज से करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व लिखे गए भारतीय के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में महुए के के फूल से आसव बनाने का वर्णन है और कहा गया है कि यह आसव कफ का नाश करता है। तीसरी-चौथी शताब्दी के प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने अपने काव्य ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा नदी के आसपास जिन भव्य व मनोरम पीले वनों का वर्णन किया है, उन्हें महुए के वन ही माना जाता है।

महुए का उपयोग आदिवासी क्षेत्रों से निकलकर देश के शहरी इलाकों में भी बढ़ चला है। विभिन्न तरह के उत्पाद बेचने वाली देसी-विदेशी कंपनियां महुए के सूखे फूल और इसका तेल बेच रही हैं। विशेष बात यह है कि भारत सरकार के ग्रामीण विकास व प्रौद्योगिक केंद्रों ने भी महुए का प्रचार-प्रसार हो रहा है। वहां महुए से बिस्किट, स्वीटनर, चॉकलेट, जूस, पाचक चूर्ण आदि कई पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार किए जा रहे हैं। आपको यह भी बताते चलें कि महुए का फूल वर्षों से पाक कला में नाम कमा रहा है, आदिवासी इलाकों में इसका उपयोग मदिरा के लिए भी किया जाता है।

अगर महुआ के पेड़ की बात करें तो इसके फूल, फल, गुठली से लेकर पत्ते और छाल तक शरीर के लिए लाभकारी माने जाते हैं। भारतीय जड़ी-बूटियों, फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन इनके सभी गुणों का वर्णन विस्तार से किया है। 

उनका कहना है कि इसके फूल गजब हैं। वे शरीर में कई प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं। ये फूल मधुर, स्निग्ध, बलकारक, स्पर्म पैदा करने वाले शरीर की गर्मी को रोकने वाले, धातुवृद्धिकर, वात-पित्तनाशक, श्वास व क्षयनाशक होते हैं। इसके बीज मृदुकारी, विरेचक (पेट साफ करने वाले) होते हैं। इसके बीजों का तेल मधुर, कषाय, बेहद चिकना, पित्त तथा कफ शामक और दर्द को कम करने वाला माना जाता है। यह ज्वर और शरीर की गर्मी भी कम करता है। 

महुआ के फल मधुर, शीत, धातुवर्धक, बलकारक, मलावरोधक, व वात-पित्तनाशक होते हैं। इसकी छाल शरीर के घावों को भर देती है। दूसरी ओर वर्ष 2010 में इंडियन जर्नल ऑफ नेचुरल प्रोडक्ट्स एंड रिसोर्सेज में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार महुआ की विशेषता यह है कि शीतलता प्रदान करता है, कफ को रोकता है, वायु का नाश करता है।

महुआ के पेड़ को देवीय माना जाता है और कहा जाता है कि यह कभी नहीं सूखता है. संस्कृत साहित्य में इसके पेड़ों का वर्णन है। गुणों की बात करें तो मधुमेह से पीड़ित लोगों को महुआ लाभ पहुंचाता है। इसकी पत्तियों का अर्क भी शुगर को कंट्रोल करता है। 

दूध और महुआ का मिश्रण उच्च रक्तचाप को रोकने में भी मदद करता है। महुआ के फूलों का अधिक सेवन शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। जो लोग शुगर की मेडिसिन लेते हैं, उन्हें महुए से परहेज करना चाहिए।